व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार निरंकुश अधिकार नहीं :हाई कोर्ट 

व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार निरंकुश अधिकार नहीं :हाई कोर्ट 

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक जोड़े की सुरक्षा याचिका पर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार निरंकुश अधिकार नहीं है। धर्म दिल और दिमाग की गहराई से उत्पन्न आस्था का मामला है। अगर कोई व्यक्ति किसी सांसारिक लाभ के लिए किसी अन्य धर्म को अपनाता है, तो यह धार्मिक कट्टरता होगी। किसी अन्य धर्म को अपनाकर विवाह करने का यह अर्थ नहीं है कि उसे पिछली शादी और पत्नी को छोड़ने की अनुमति मिल गई। धर्म शोषण की वस्तु नहीं है, जिसके आधार पर किसी का शारीरिक और मानसिक शोषण किया जाए। प्रत्येक व्यक्तिगत कानून के तहत विवाह की संस्था एक पवित्र संस्था है। 

वर्तमान मामले में याचियों द्वारा उत्तर प्रदेश गैर कानूनी धर्म परिवर्तन अधिनियम की धारा 8 और 9 का कोई अनुपालन नहीं किया गया है। इसके अलावा रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं रखा गया जिससे यह सिद्ध हो कि याचियों द्वारा विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह के लिए कोई आवेदन दाखिल किया गया है। याचियों द्वारा विपक्षियों के लिए एक निर्देश जारी करने की प्रार्थना की गई थी, जिसमें उन्हें पति और पत्नी के रूप में याचियों की शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप न करने का निर्देश दिया जाए। दोनो जोड़े अलग-अलग जाति और धर्म से संबंधित है। उनका तर्क है कि उन्हें अपने जीवन का निर्णय लेने का अधिकार है, लेकिन याचियों के संबंध को गैरकानूनी मानते हुए न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल की पीठ ने याचिका खारिज कर दी।

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