बरेली: अर्थी बनाकर अयोध्या की ओर बढ़े, पुलिस ने कर दिया लाठीचार्ज, राम जन्मभूमि आंदोलन को याद कर भावुक हो गए पूरन लाल प्रजापति

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Published By Om Parkash chaubey
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बरेली,अमृत विचार : राम जन्मभूमि के लिए आंदोलन में भागीदारी करने वालों में पूरन लाल प्रजापति भी हैं। मंदिर निर्माण और 22 को रामलला की प्राणप्रतिष्ठा से वह उत्साहित हैं। हालांकि कसक भी है कि कारसेवकों को अपेक्षित सम्मान नहीं मिला। राम जन्मभूमि आंदोलन को याद कर वह भावुक हो गए।

संघ से जुड़े और वकालत कर रहे पूरन लाल बताते हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने घोषणा की थी कि 30 अक्टूबर को अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा। जगह-जगह पुलिस की कड़ी चौकसी थी। हर मार्ग पर फोर्स तैनात थी। उन्होंने अपने साथियों के साथ अयोध्या में घुसने का प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली।

तब वे एक नकली अर्थी बनाकर सरयू की ओर से कूच करने लगे। पुलिस ने नाकेबंदी की थी लेकिन अर्थी देखकर जाने दिया। पुलिस की घेराबंदी हटते ही कुछ उत्साही युवक अर्थी से अलग होकर भागने लगे। ये देख पुलिस समझ गई कि अर्थी नाटक है। तब पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और लाठीचार्ज कर दिया। इससे वह घायल हो गये।

पूरन लाल बताते हैं कि सरयू किनारे बने सिंह द्वार टेंट पर उनके साथ डाकू मानसिंह, माधोसिंह, रणवीरा सिंह आदि ने भी कारसेवा की थी। पूरन लाल बताते हैं कि 2 नवंबर 1990 को लोग जत्थे के साथ अलग-अलग दिशाओं से जन्मभूमि की तरफ बढ़ रहे थे। वह दिगंबर अखाड़ा की तरफ से बढ़े तभी पुलिस ने गोलियां चला दीं।

कई कारसेवकों को गोली लगी और सड़क खून से लाल हो गई। एक पुलिस वाले ने उन पर भी गोली चलाई उससे पहले ही सड़क पर गिर गये। गोली दीवार पर लगी। यह देखकर वह घबरा गये और रोडवेज में कार्यरत नरसिंह आचार्य के मकान में घुसकर जान बचाई। इतने संघर्ष के बाद अशोक सिंघल ने सभी कारसेवकों से कहा कि रामलला के दर्शन किए बगैर कोई घर नहीं जाएगा।

इसके बाद सरकार ने 6 नवंबर को सभी को दर्शन करने की अनुमति दी। वह बताते हैं कि बरेली अपने घर लौटा। पुराना शहर चकमहमूद में अल्पसंख्यकों में अफवाह फैल गई कि वह मस्जिद गिराने गये थे। इससे वे नाराज हो गये थे। बवाल न होने पाए इसके लिए घर पर पुलिस लगी रही।

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