बरेली: अब 'प्लास्टिक' के गमलों का जमाना...रंग-बिरंगे और टिकाऊ, वजन में भी हल्के
बरेली, अमृत विचार। कुम्हारी कला को बढ़ावा देने के लिए सरकार तमाम प्रयास कर रही है, लेकिन बदलते दौर में अब पौधे लगाने के लिए मिट्टी की जगह प्लास्टिक के गमलों का इस्तेमाल होने लगा है। सुंदर और टिकाऊ होने के कारण इनकी मांग भी तेजी से बढ़ी है। शहर और हाईवे किनारे पर जगह-जगह पौधे व गमलों की दुकानों पर छोटे से लेकर बड़े साइज के गमले बिक रहे हैं। शहर में प्लास्टिक के गमलों की एक दर्जन से अधिक दुकानें हैं।

दुकानदारों का भी मानना है प्लास्टिक के गमलों के आने के बाद मिट्टी के गमलों की मांग घटी है। पहले मिट्टी के गमलों का कोई विकल्प नहीं होने से लोग इन्हें ही खरीदा करते थे। जबकि हाल के वर्षों में बाजार में आए प्लास्टिक से बने गमले मिट्टी के गमलों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। दिखने में खूबसूरत और टिकाऊ होने के कारण प्लास्टिक के गमलों की मांग अचानक बढ़ गई है।
दुकानदारों का कहना है कुछ समय पहले तक सभी पौधे लगाने को मिट्टी के गमले का प्रयोग करते थे, लेकिन अब मिट्टी के गमले महंगे हो गए हैं और वजन ज्यादा होने के कारण इन्हें ढोना भी मुश्किल होता है। इसके अलावा गिरने से इनके टूटने की ज्यादा संभावना रहती है। इसलिए अब प्लास्टिक के गमलों से बगीचे सजने लगे हैं।

मिट्टी के गमलों की कम होती डिमांड की एक वजह यह भी
मिट्टी के बर्तन और गमले बनाने के लिए तालाबों की मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है। अब तालाब बड़ी संख्या में रहे नहीं, मिट्टी की किल्लत ने कुम्हारों से पुश्तैनी धंधा छुड़वा दिया। यही वजह है मिट्टी के बर्तनों का चलन भी समाप्त होता जा रहा है। पूजा-पाठ के अलावा मिट्टी के बर्तनों का उपयोग घरों में भी कम होता है। साथ ही अब मिट्टी के गमलों का इस्तेमाल भी सीमित हो गया है। इनका स्थान प्लास्टिक के गमले ले रहे हैं। कृषि वैज्ञानिक डा. वीरेंद्र गंगवार बताते हैं कि मिट्टी के गमलों का अलग स्थान है। मिट्टी के गमले पौधों को जीवन देते हैं। जहां तक प्लास्टिक के गमलों का सवाल है, यदि धूप मिलती रहे तो पौधों को कोई खतरा नहीं है।
इसलिए बढ़ा प्लास्टिक गमलों का प्रयोग
-वजन कम होने से छतों पर पहुंचाना आसान।
-एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में टूटने का खतरा नहीं।
-इनसे मिट्टी नहीं झड़ती, इससे सफाई की टेंशन नहीं।
-टूटने के बाद कबाड़ के रूप में बिक जाते हैं।
-मन पसंद रंग, साइज और डिजाइन में उपलब्धता।

चार से 24 इंच तक के मुंह वाले गमले उपलब्ध
प्लास्टिक के गमलों की कीमत इनके साइज के आधार पर निर्धारित की जाती है। ये गमले चार से लेकर 24 इंच तक के मुंह वाले आते हैं। बाजार में गमलों की तीन तरीके की वैराइटी उपलब्ध हैं। छोटे गमले छोटे पौधे के लिए हैं। बड़े गमलों में 20 साल तक चलने वाला पौधा भी लगाया जा सकता है। पिछले कुछ समय से आकर्षक होने के कारण मांग तेजी से बढ़ी है। -जय सिंह, माली
2500 रुपये तक के हैं प्लास्टिक गमले
विभिन्न रंगों और डिजाइन के प्लास्टिक गमले 15 रुपये से लेकर 2500 रुपये तक में बाजार में उपलब्ध हैं। अब प्लास्टिक गमलों का इस्तेमाल आसान है। किचन गार्डन कल्चर के कारण प्लास्टिक के गमलों का प्रयोग बढ़ा है। लोग अपनी जरूरत के हिसाब से सब्जियां तक उगाने लगे हैं। तमाम हर्बल, सजावटी और फूलों के पौधे भी किचन गार्डन का हिस्सा बन रहे हैं। -अरविंद गौतम, पूजा नर्सरी, पीलीभीत रोड
प्लास्टिक के गमलों का कुम्हारों पर असर
प्लास्टिक के गमलों के बाजार में आने से मिट्टी के बने गमलों की मांग घटी है। मिट्टी के गमलों के जल्दी टूटने और इनके बनाने के लिए मिट्टी भी नहीं मिलने के कारण इनका स्थान प्लास्टिक गमले लेते जा रहे हैं। इसका असर मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों पर पड़ रहा है। जिससे उनकी आमदनी कम हो रही है। -सुरजीत, माली
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