बरेली: 40 हजार करोड़ का निवेश 42 हजार रोजगार... जितना बड़ा दावा, उतना ही खोखला
अनुपम सिंह, बरेली, अमृत विचार। इन्वेस्टर समिट के जरिए बरेली में 40 हजार करोड़ के निवेश के साथ युवाओं को 42 हजार रोजगार देने के लिए जो सपनों का महल बनाया गया था, उसकी जमीन अभी से खिसकने लगी है। जिले से हुए 568 एमओयू में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां पाई गई हैं। यही नहीं, एमओयू साइन करने वाले कई उद्यमी अब उद्योग लगाने के समझौते से ही पीछे हट रहे हैं। इसकी वजह से अब सौ से ज्यादा एमओयू रद्द होने के आसार जताए जा रहे हैं। फिलहाल सत्यापन का निर्देश दिया गया है। आशंका है कि सत्यापन के बाद यह संख्या और बढ़ सकती है।
इन्वेस्टर्स समिट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सबसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रम था जिसके लिए अफसरों ने प्रदेश भर में जीजान लगाने का दावा किया था। फरवरी में लखनऊ में हुई इन्वेस्टर्स समिट में बरेली के लिए बड़ी संख्या में उद्यमियों ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। उस दौरान जिला उद्योग केंद्र ने पहले दावा किया था कि 534 इकाइयां उद्योग लगाने आगे आई हैं लेकिन अब यह संख्या बढ़ाकर 568 बताई जा रही है। बताया गया था कि इन एमओयू के जरिए 40.85 हजार करोड़ के निवेश पर करार हुआ है और इससे बरेली में 42051 लोगों को रोजगार मिलेगा।
अब जबकि सितंबर में लखनऊ में ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी (जीबीसी) होनी है तो उससे पहले ही निवेश और रोजगार के सपने बिखरने शुरू हो गए हैं। जिला उद्योग केंद्र के सूत्रों के मुताबिक कागजों में तो ऐसी 568 इकाइयां हैं लेकिन कई-कई इकाइयों के लिए पोर्टल पर ऑनलाइन करार करने वाले तमाम उद्यमी अब एक भी इकाई लगाने को तैयार नहीं हैं। इस कारण पोर्टल पर तमाम इकाइयों के शुरू न होने की जानकारी प्रदर्शित हो रही है और शासन इस पर लगातार जवाब मांग रहा है। अफसरों के मुताबिक इसके बाद ऐसे उद्यमियों से संपर्क भी करने की कोशिश की गई लेकिन वे इस मुद्दे पर बात करने को भी तैयार नहीं हो रहे हैं।
अब इसके बाद अलग-अलग विभागों से सत्यापन के बाद उन उद्यमियों की सूची मांगी गई है जो एमओयू के मुताबिक औद्योगिक इकाई लगाने के लिए तैयार हैं ताकि पोर्टल पर उनकी जानकारी अपलोड की जा सके और बरेली में इन्वेस्टर समिट के जरिए लगाए जाने वाले उद्योगों की सही स्थिति स्पष्ट हो सके। माना जा रहा है कि जिन 568 इकाइयों के लिए करार हुआ है, उनमें फिलहाल सौ से ज्यादा इकाइयां कम हो सकती हैं। यह संख्या बढ़ भी सकती है। ऐसी स्थिति में न सिर्फ हजारों करोड़ का निवेश प्रभावित होगा बल्कि युवाओं के रोजगार के सपनों पर भी अच्छा-खासा ग्रहण लगना तय है।
25 विभागों को उद्यमियों से संपर्क कर जल्द सही स्थिति बताने का निर्देश
औद्योगिक इकाई लगाने के लिए पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करने के बाद फाइलें उस विभाग के पास जाती हैं जिससे संबंधित उद्योग होता है। विभाग उसका अनुमोदन करता है। वास्तविकता के मुकाबले कागजों पर इकाइयाें की संख्या ज्यादा दिखने पर ऐसे 25 विभागों से जानकारी मांगी गई है। विभागाध्यक्षों को निर्देश दिया गया है कि वे अपने विभाग से संबंधित उद्यमियों से संपर्क कर सही स्थिति के बारे में जल्द से जल्द सूचना दें। कहा जा रहा है कि अगले दो-तीन दिन में इस संबंध में सूचनाएं उच्चाधिकारियों तक पहुंच जाएंगी जिसके बाद स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।
झूठ का महल, जीबीसी की तैयारी, शुरू हुई तो पता चली असलियत
सितंबर में लखनऊ में जीबीसी होनी है। इससे पहले ज्यादा से ज्यादा इकाइयों को तैयार करने पर जोर दिया जा रहा है। इसी कारण सरकार ने उद्यमियों की समस्याओं की जानकारी लेने और उन्हें दूर कराने के लिए उद्यमी मित्र भी भेजे हैं। इसी प्रक्रिया में जीबीसी के लिए इकाइयों को फाइनल करने के दौरान पोर्टल पर लंबित इकाइयों की संख्या ज्यादा दिखने और एक नाम से कई इकाइयां दिखने की पड़ताल की गई तो गड़बड़ी सामने आ गई।
उद्यमियों से संपर्क किया गया तो पता चला कि उन्होंने कई इकाइयों के लिए ऑनलाइन करार किया था, लेकिन अब वे एक इकाई भी लगाने की स्थिति में नहीं हैं। इसके बाद उनकी इकाइयों को डुप्लीकेट मानकर हटाने की कार्रवाई भी शुरू हो गई है। अगर जीबीसी न होनी होती तो शायद फर्जी आंकड़ों में ही जिले के अफसर निवेश और रोजगार के सपने सजाते रहते।
कमिश्नर ने मांगी वास्तविक स्थिति की जानकारी
बताया जा रहा है कि सारी स्थिति की जानकारी कमिश्नर सौम्या अग्रवाल को दे दी गई है। उन्होंने इसे बेहद गंभीरता से लेते हुए सभी विभागों को पत्र जारी किया है। इसमें जल्द से जल्द सही स्थिति से अवगत कराने का आदेश दिया गया है। मामला डीएम के भी संज्ञान में हैं। सोमवार को डीएम ने उद्योग विभाग से भी इस बारे में जानकारी ली। इन गड़बड़ियों से अफसर इतने सकते में हैं कि कोई कुछ खुलकर बोलने को भी तैयार नहीं है।
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