बरेली: रंगों में घुलेगा सब्जियों और फूलों से बना रंग
कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से पहली बार ग्रामीण महिलाओं को निशुल्क दिया जा रहा हर्बल गुलाल निर्माण का प्रशिक्षण
शिवांग पांडेय/बरेली, अमृत विचार। इस बार होली पर गांव का स्वदेशी हर्बल रंग भी रंगों में घुलेगा। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं केमिकल वाले रंगों से त्वचा को होने वाले नुकसान से बचाने का बेहतर विकल्प तैयार कर रही हैं। इसके लिए सब्जियों और फूलों से रंग तैयार किए जा रहे हैं। इसको तैयार कराने में आईवीआरआई के कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) महिलाओं को सपोर्ट कर रहा है।
स्वदेशी हर्बल कई तरह से फायदेमंद हैं। सिंथेटिक रंगों को लेकर कुछ समय से लोगों में जागरूकता बढ़ी है। जिससे वे हर्बल रंग को प्राथमिकता दे रहे हैं। केवीके के गृह विज्ञान विभाग की प्रभारी वाणी यादव बताती हैं कि पौधों व सब्जियों से अलग-अलग रंग तैयार किया गया। पिसी हुई पालक का प्रयोग करके हरा रंग बनाया है। इसके साथ गेंदा फूलों से पीला रंग बनाया गया है। यह रंग न तो त्वचा को किसी तरह का नुकसान पहुंचाते हैं और न ही पर्यावरण को।
उनका कहना है कि पौधों में कुदरती डाई होती है, जो गैर-विषैले, गैर-एलर्जी, गैर-कार्सिनोजेनिक होते हैं। हर्बल रंगों को तैयार करने के लिए अरारोट, गुलाब जल, ई-डेबिल कलर (खाने के सामान में प्रयोग करने वाले रंग) का प्रयोग किया गया। लाल रंग के लिए चुकंदर, गुलाब रंग के लिए गुलाब की पखुंडियां, पीला व ऑरेंज रंग के लिए गेंदा व वैकल्पिक व्यवस्था के तहत हल्दी का भी प्रयोग किया गया।
एक किलो हर्बल रंग बनाने में करीब 65 रुपये की आती है लागत
कृषि विज्ञान केंद्र में भोजीपुरा, बहेड़ी, दमखोदा ब्लॉक की 45 महिलाओं को हर्बल रंग बनाने का निशुल्क प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जा रहा है। हर्बल रंगों को बनाने की विधि आसान है। इसे कम समय और कम लागत में तैयार कर सकते हैं। 1 किलो हर्बल रंग बनाने में करीब 65 रुपये की लागत आ रही है। प्रशिक्षण लेने के लिए स्वयं सहायता समूह की ग्रामीण महिलाओं में भी उत्सुकता दिखाई दे रही है।
कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से पहली बार हुई पहल
कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष प्रधान वैज्ञानिक डा. बीपी सिंह ने बताया कि ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक रूप से और सशक्त बनाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में पहल की गई है। कृषि विज्ञान केंद्र ने पर्यावरण के अनुकूल हर्बल रंग बनाने को महिलाओं को प्रोत्साहित किया। उन्हें सिंथेटिक रंग के हानिकारक प्रभाव और हर्बल रंगों के फायदों के बारे में भी बताया है।
कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से लगातार महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए तमाम प्रशिक्षण उपलब्ध कराएं जा रहे हैं। सिंथेटिक रंग त्वचा को हानि पहुंचाते है। इसको ध्यान में रखते हुए सब्जियां व फूलों का इस्तेमाल किया गया है। जो किसी भी प्रकार से आंखों व त्वचा पर हानिकारक नहीं है। इससे महिलाएं आर्थिक रूप से भी मजबूत होंगी- वाणी यादव, प्रभारी, गृह विज्ञान विभाग, कृषि विज्ञान केंद्र।
महिलाओं की बात
पहली बार खाने की चीजों से रंग बनाया। कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से ये पहल हम महिलाओं के लिए फायदेमंद होगी। इससे महिलाएं स्किल होने के साथ ही आर्थिक रूप से मजबूत होगी।
रूमी विस्वाास, भुड़िया, स्वयं सहायता समूह
पालक को अभी तक सब्जियों में ही प्रयोग किया था। यहां आकर सीखा की इससे हरा रंग भी बन सकता है। गांव जाकर अन्य महिलाओं को भी इसके बारे में जागरूक करूंगी।-हरदेवी, चंद्रा स्वयं सहायता समूह, पचपेड़ा
ये भी पढ़ें- बरेली: किला पुल पर व्यू कटर लगेंगे...ताकि मांझे से नहीं कटे किसी की गर्दन