हल्द्वानी: मशरूम की खेती कर रही है स्वरोजगार की राह में बढ़ने को प्रेरित 

अश्विनी मेहरा हैं मशरूम के उत्पादन में सबसे आगे

हल्द्वानी: मशरूम की खेती कर रही है स्वरोजगार की राह में बढ़ने को प्रेरित 

मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़कर किया स्वरोजगार 15- 20 लोग करते हैं मशरूम प्लांट में काम पवन मेहरा और तरूण रौतेला भी बढ़े इसी राह पर आगे

हल्द्वानी, अमृत विचार। मशरूम को दिल की सेहत के लिए काफी अच्छा माना जाता है और इसके सेवन से कैंसर रोग से भी दूर रहा जा सकता है। इसकी खेती को रोजगार के रूप में अपनाकर स्वयं की आजीविका के साथ ही अन्य लोगों को भी रोजगार प्रदान किया जा सकता है।

गौलापार के तीन युवाओं ने इसी तर्ज पर मशरूम की खेती शुरू की। तीनों की कहानियां अलग-अलग है लेकिन उद्देश्य एक ही स्वरोजगार के साथ ही अन्य लोगों को भी रोजगार प्रदान करना। गौलापार निवासी 37 वर्षीय अश्विनी मेहरा बंगलुरू की एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी से इंजीनियर की नौकरी छोड़कर मशरूम की खेती करने तक की कहानी से प्रेरित होकर अपने घर से दूर बड़े-बड़े महानगरों में सरकारी तथा प्राइवेट नौकरी करने वाले युवा भी इस खेती को अपनाकर स्वरोजगार की राह में आगे बढ़ना चाहते हैं।

जिसके पास खेती के रकबे की भूमि है वह बैंक से ऋण लेकर इस खेती को स्वरोजगार के रुप में अपना सकता है। अश्विनी ने बताया कि मई 2018 में उन्होंने  2 क्रापिंग रूम से इस काम की शुरूआत की थी। शुरुआती तौर पर 150 किलो प्रतिदिन के हिसाब से प्रतिवर्ष  औसतन 54 टन मशरूम प्राप्त किया।

कोविड लॉकडाउन के बाद खेती में विस्तार करके 4 क्रापिंग रूम की स्थापना की जिससे उत्पादन बढ़कर 300 किलो प्रतिदिन के हिसाब से प्रतिवर्ष औसतन 108 टन हो गया। उन्होंने बताया कि 108 टन उत्पादन के हिसाब से 7- 8 लाख प्रतिमाह की कमाई हो जाती है जिसमें 3-4 लाख रुपए स्टॉफ का वेतन, बिजली बिल, ऋण की किस्त और कंपोस्ट बनाने तथा अन्य छोटे कामों में खर्च हो जाता है।

काम शुरू करने पर आई समस्याओं के बारे में उन्होंने कहा कि कई बैंकों ने उन्हें लोन देने के लिए मना कर दिया था इसके बाद अंतत: एक निजी बैंक ने लोन दिया। जब मशरूम की खेती को विस्तार देना शुरू किया तो कोविड के कारण लगे लॉकडाउन से राज्य से बाहर मशरूम सप्लाई करने में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

मशरूम को यूपी के गोरखपुर, लखीमपुर खीरी  शुरूआती तौर पर लगभग एक करोड़ से अधिक की लागत से पूरा सेटअप तैयार किया। जिसमें 50 प्रतिशत से अधिक की राशि ऋण के माध्यम से खर्च की गई। दूसरी तरफ गौलापार के ही पवन मेहरा भी कोविड के बाद बटन मशरूम की खेती कर रहे हैं। पवन मेहरा ने बताया कि कोविड के दौर में उनको पुराने व्यवसाय में बहुत हानि हुई। इसके बाद उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी।

मशरूम की खेती में शुरूआती दौर पर काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। बजट और मैनपावर की प्रमुख समस्या थी। मेहरा ने बताया कि वर्तमान में मशरूम की खेती में प्रतिवर्ष 80 टन का उत्पादन किया जा रहा है। खेती के लिए 1 करोड़ की लागत से काम शुरू किया गया, 15 लोगों का स्टाफ प्रतिदिन काम करता है। तीसरा नाम तरूण रौतेला का है जो इस खेती को अपने व्यवसाय के रूप में अपनाकर स्वरोजगार की राह में आगे बढ़ रहे हैं। वह भी प्रतिवर्ष 50 टन से अधिक मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं।

 

 

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