हल्द्वानी: वेदना से स्याह हुई रात, दिन का उजाला भी हुआ काला…

सर्वेश तिवारी, हल्द्वानी। समय बड़े से बड़ा घाव भर देता है, लेकिन मन में लगी टीस ताउम्र नहीं भरती। तमाम खुशियों के बावजूद ये टीस कभी उभरी तो वेदना शूल बनकर चुभती है। उमा और कुसुम के मन में भी टीस है और ये टीस वेदना बनकर हर पल शूल सी इनके मन में चुभती …
सर्वेश तिवारी, हल्द्वानी। समय बड़े से बड़ा घाव भर देता है, लेकिन मन में लगी टीस ताउम्र नहीं भरती। तमाम खुशियों के बावजूद ये टीस कभी उभरी तो वेदना शूल बनकर चुभती है। उमा और कुसुम के मन में भी टीस है और ये टीस वेदना बनकर हर पल शूल सी इनके मन में चुभती है, इतना कि अब इन्हें वेदना के सिवा कुछ और याद नहीं।


वेदना का ये दंश अब हेमा और कुसुम की नियति बन चुकी है। रोटी मांगने पर लोग इन्हें मार भी देते हैं, लेकिन लोगों की मार इनकी दर्द भरी नजरों से आंसू बनकर नहीं छलक पाते। हेमा और कुसुम की नियति को टाला भी जा सकता था, अगर गौलापार-चोरगलिया रोड पर मानवता यातायात के शोर तले कुचली नहीं जाती। समय से मिले इनके जख्मों पर प्रशासन भी मरहम लगाना भूल गया।
उमा को सब याद है और यादों पर भारी है बेटे की मौत का गम
हल्द्वानी। ये अनहोनी घटना उमा देवी के साथ घटी। लक्षमपुर कुंवरपुर गौलापार निवासी उमा का पूरा परिवार है। पति मनोहर सिंह बसेड़ा है। पूर्व ग्राम प्रधान ललित प्रसाद आर्या के अनुसार ये घटना करीब 12 साल पहले घटी। उमा काम कर रही थी उनका मासूम बच्चा खेल रहा था। पास ही घास के एक ढेर में आग लगी थी और बच्चा खेलते-खेलते आग के ढेर में चला गया।
वह चीखा, लेकिन देर हो चुकी थी। उमा ने बेटे को बचाने के लिए अपने हाथ आग में डाल दिए और खुद उसे लेकर अस्पताल भागी, लेकिन वह नहीं बचा। इस सदमे को उमा बर्दाश्त नहीं कर सकीं और उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया।
आज इस वाक्ये को 12 साल से अधिक गुजर चुके हैं, लेकिन घर-परिवार होने के बावजूद उमा न सदमे को भूल सकीं और न घर लौट सकीं। हालांकि घरवालों ने इनके इलाज में कोई कसर बाकी नहीं रखी। बावजूद इसके कि उमा का परिवार आर्थिक रूप से बहुत अच्छा नहीं है। अब जब भी कोई उमा से परिवार की बात करता है, वह भड़क जाती हैं। ऐसा नहीं है कि उमा को गम के सिवा कुछ याद नहीं है, लेकिन सारी यादों पर गम भारी है।
अपना घर है, लेकिन पति की मौत का गम ठहरने नहीं देता
हल्द्वानी। ये भी नियति है कि अपनों की मौत के गम की मारी दोनों महिलाएं एक ही गांव की रहने वाली है। कुसुम बेलवाल भी लक्षमपुर की ही रहने वाली हैं। ललित के मुताबिक करीब 15 साल पहले एक हादसे में कुसुम के पति त्रिलोक बेलवाल की मौत हो गई। इस मौत ने कुसुम को अंदर तक झकझोर दिया।
बच्चे उस वक्त छोटे थे, लेकिन सिर पर सास का हाथ था तो समय कुछ वक्त तक कटा। हालांकि कुछ समय बाद सास भी साथ छोड़ कर चलीं गईं और बमुश्किल खुद को संभाल रही कुसुम अचानक मानसिक संतुलन खो बैठी। इस कदर आघात लगा कि बच्चे छोड़कर यहां-वहां बदहवास घूमने लगीं।
बच्चों को उनकी बुआ ने संभाला। एक बेटी की शादी कर दी, जबकि एक बेटे को गोद ले लिया। कुसुम का एक बेटा भी है, लेकिन उसका भी ठौर नहीं है। कुसुम के पास अपना एक घर है, लेकिन पति की मौत का गम उसे छत के नीचे ठहरने नहीं देता। कुसुम के घर में एक किराएदार है। न कुसुम की ससुराल में कोई बचा है और न मायके से कोई सुध लेने वाला।