लखनऊ: एक ही चिता पर गुरनूर-साहिबा को दी गई मुखाग्नि, होटल में एक साथ टूटी थी सांसे
शबाहत हुसैन विजेता, अमृत विचार लखनऊ। फरवरी में जिस अग्नि के फेरे लेकर दोनों को सात जन्म का साथ निभाने की कसमें खानी थीं। शादी के लाल जोड़े में दुल्हन की तरह सजना था। उसी अग्नि की लपटों के बीच जिंदगी तलाशते दोनों की सांसें धुएं के गुबार ने लील लीं। जीते जी दोनों का …
शबाहत हुसैन विजेता, अमृत विचार
लखनऊ। फरवरी में जिस अग्नि के फेरे लेकर दोनों को सात जन्म का साथ निभाने की कसमें खानी थीं। शादी के लाल जोड़े में दुल्हन की तरह सजना था। उसी अग्नि की लपटों के बीच जिंदगी तलाशते दोनों की सांसें धुएं के गुबार ने लील लीं। जीते जी दोनों का साथ ऊपर वाले को मंजूर न था, लेकिन मृत्यु के बाद अंतिम विदाई में मंगेतर संग एक ही चिता पर मुखाग्नि नसीब हो गई।
साहिबा कौर को फरवरी में दुल्हन का जोड़ा पहनना था। साहिबा के पिता नहीं हैं इसलिए उसकी शादी का जोड़ा उसके मामा ने खरीदा था। दो दिन पहले वह मंगल ज्वेलर्स के यहां अपनी शादी के जेवर देखने गई थी। उसने वहीं पर कई जेवर पहनकर खुद को आईने में देखा। उसकी ख़ूबसूरती पर शायद आइना भी शरमा गया होगा। घर वाले उसकी खुशी पर फूले नहीं समा रहे थे। आज सुबह घर की औरतों ने उसे वही जोड़ा पहनाया जो उसके मामा उसकी शादी के लिए लेकर आये थे।
शादी के जोड़े में सजी साहिबा को घर से विदा कर दिया गया। शादी में लड़की विदा होती है तो जिस अंदाज में रोना धोना होता है आज उससे कई गुना जोर से घरवाले रो रहे थे। औरत, मर्द, बच्चे यहां तक कि पड़ोसियों की भी हिचकियां बंध गई थीं। साहिबा कौर को घर से विदा कर बैकुंठ धाम पहुंचाया गया। जहां पर गुरनूर आनंद के साथ एक ही चिता पर उसे अग्नि को समर्पित कर दिया गया। गुरनूर और साहिबा की सोमवार को शहर के लेवाना होटल में लगी आग की वजह से दम घुटने से मौत हो गई थी। दोनों ने ही अपने-अपने पिता को बहुत जल्दी खो दिया था। दोनों की माताओं ने उन्हें बड़ी मोहब्बत से पाल पोसकर काबिल बनाया। साहिबा ने शुरुआती पढ़ाई सिटी मांटेसरी स्कूल से की और आगे की पढ़ाई के लिए वह दिल्ली चली गई। दिल्ली में उसने ब्यूटी पार्लर का कोर्स किया।
साहिबा अपने घर वालों को बड़े गर्व से बताती थी कि फिल्म अभिनेत्रियां तक उसके पास अपना मेकअप कराने आती हैं। घर वालों ने उसकी शादी मोतीनगर में रहने वाले गुरनूर आनंद के साथ तय की थी। गुरनूर इवेंट मैनेजमेंट का काम करता था। उसने कम वक्त में अच्छा नाम और अच्छा पैसा कमा लिया था। शादी से पहले उसने अपने रहने के लिए एक बहुत शानदार कमरा तैयार किया था। उस कमरे में सुख-सुविधा का हर इंतजाम किया था।
फरवरी में शादी थी इसलिए दोनों तरफ ही तैयारियां चल रही थीं। दोनों की इंगेजमेंट पहले ही हो चुकी थी। रविवार को छुट्टी होती है इसलिए उस दिन दोनों परिवारों ने मिलकर लेवाना होटल में एक रस्म करने का फैसला किया। उसमें दोनों के कई रिश्तेदार शामिल हुए। सभी बहुत खुश थे। देर रात तक फंक्शन चला। फिर एक-एक कर सभी चले गए लेकिन गुरनूर और साहिबा वहीं रुक गए। सुबह होटल में आग लग गई और जिन्दगी की सारी खुशियां धुआं हो गईं।
होटल से निकलकर दोनों अपने-अपने घर तो गए मगर जिंदा नहीं शीशे के कफ़न में कैद होकर गए। आज दोनों अपने घरों से आख़िरी सफ़र पर निकले तो दोनों परिवारों की रजामंदी से बैकुंठधाम में दोनों के लिए एक ही चिता सजाई गई। अब फेरे लेने की बारी अग्नि की थी। दुल्हन के लिबास में साहिबा अपने गुरनूर के नूर में खो गई। होटल का धुआं खत्म हो चुका है। दोनों की चिता भी खामोश हो गई है। धुआं अब कहीं नहीं है मगर चिता की राख को इंतजार है उन जिम्मेदारों को होने वाली सजा का जिनकी लापरवाही ने हंसते-खेलते परिवारों में आंसुओं का समुद्र उड़ेल दिया है।
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