शकील बदायुनी
साहित्य 

ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया

ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया कभी तक़दीर का मातम कभी दुनिया का गिला मंज़िल-ए-इश्क़ में हर गाम पे रोना आया मुझ पे ही ख़त्म हुआ सिलसिला-ए-नौहागरी इस …
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