Najm
साहित्य 

जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है

जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रक्खा है उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रक्खा है पत्थरो आज मिरे सर पे बरसते क्यूँ हो मैं ने तुम को भी कभी अपना ख़ुदा रक्खा है …
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साहित्य 

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ…

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ… तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को कि मैं आप का सामना चाहता हूँ ज़रा सा तो दिल हूँ मगर शोख़ इतना वही लन-तरानी सुना चाहता हूँ कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल …
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साहित्य 

आ गई याद शाम ढलते ही…

आ गई याद शाम ढलते ही… आ गई याद शाम ढलते ही बुझ गया दिल चराग़ जलते ही खुल गए शहर-ए-ग़म के दरवाज़े इक ज़रा सी हवा के चलते ही कौन था तू कि फिर न देखा तुझे मिट गया ख़्वाब आँख मलते ही ख़ौफ़ आता है अपने ही घर से माह-ए-शब-ताब के निकलते ही तू भी जैसे बदल सा जाता …
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साहित्य 

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन देखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के भूले से मुस्कुरा तो दिए थे वो आज ‘फ़ैज़’ मत पूछ वलवले दिल-ए-ना-कर्दा-कार के दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैं तुम क्या गए कि रूठ …
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साहित्य 

झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं

झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता मिरी तरह तिरा दिल बे-क़रार है कि नहीं वो पल कि जिस में मोहब्बत जवान होती है उस एक पल का तुझे इंतिज़ार है कि नहीं तिरी …
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साहित्य 

आग़ाज़-ए-इश्क़ उम्र का अंजाम हो गया…

आग़ाज़-ए-इश्क़ उम्र का अंजाम हो गया… आग़ाज़-ए-इश्क़ उम्र का अंजाम हो गया नाकामियों के ग़म में मिरा काम हो गया तुम रोज़-ओ-शब जो दस्त-ब-दस्त-ए-अदू फिरे मैं पाएमाल-ए-गर्दिश-ए-अय्याम हो गया मेरा निशाँ मिटा तो मिटा पर ये रश्क है विर्द-ए-ज़बान-ए-ख़ल्क़ तिरा नाम हो गया दिल चाक चाक नग़्मा-ए-नाक़ूस ने किया सब पारा पारा जामा-ए-एहराम हो गया अब और ढूँडिए कोई जौलाँ-गह-ए-जुनूँ सहरा …
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साहित्य 

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो जहाँ उमीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता कहाँ चराग़ जलाएँ कहाँ गुलाब रखें छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं ज़बाँ मिली …
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