gazal

ये पैरहन जो मिरी रूह का उतर न सका

ये पैरहन जो मिरी रूह का उतर न सका तो नख़-ब-नख़ कहीं पैवस्त रेशा-ए-दिल था मुझे मआल-ए-सफ़र का मलाल क्यूँ-कर हो कि जब सफ़र ही मिरा फ़ासलों का धोका था मैं जब फ़िराक़ की रातों में उस के साथ रही वो फिर विसाल के लम्हों में क्यूँ अकेला था वो वास्ते की तिरा दरमियाँ भी …
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मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता

मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता नई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मिरा किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव …
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दश्त-ए-विग़ा में नूर-ए-ख़ुदा का ज़ुहूर है

दश्त-ए-विग़ा में नूर-ए-ख़ुदा का ज़ुहूर है दश्त-ए-विग़ा में नूर-ए-ख़ुदा का ज़ुहूर है ज़र्रों में रौशनी-ए-तजल्ली-ए-तूर है इक आफ़्ताब-ए-रुख़ की ज़िया दूर दूर है कोसों ज़मीन अक्स से दरिया-ए-नूर है अल्लाह-रे हुस्न तबक़ा-ए-अम्बर-सरिश्त का मैदान-ए-कर्बला है नमूना बहिश्त का हैराँ ज़मीं के नूर से है चर्ख़-ए-लाजवर्द मानिंद-ए-कहरुबा है रुख़-ए-आफ़्ताब-ए-ज़र्द है रू-कश-ए-फ़ज़ा-ए-इरम वादी-ए-नबर्द उठता है ख़ाक से …
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ये दौर-ए-ख़िरद है दौर-ए-जुनूँ इस दौर में जीना मुश्किल है

ये दौर-ए-ख़िरद है दौर-ए-जुनूँ इस दौर में जीना मुश्किल है अँगूर की मय के धोके में ज़हराब का पीना मुश्किल है जब नाख़ुन-ए-वहशत चलते थे रोके से किसी के रुक न सके अब चाक-ए-दिल-ए-इन्सानिय्यत सीते हैं तो सीना मुश्किल है इक सब्र के घूँट से मिट जाती तब तिश्ना-लबों की तिश्ना-लबी कम-ज़र्फी-ए-दुनिया के सदक़े ये …
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ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा

ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा इस रात की तक़दीर सँवर जाए तो अच्छा जिस तरह से थोड़ी सी तिरे साथ कटी है बाक़ी भी उसी तरह गुज़र जाए तो अच्छा दुनिया की निगाहों में भला क्या है बुरा क्या ये बोझ अगर दिल से उतर जाए तो अच्छा वैसे तो तुम्हीं …
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सुना है

सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है सुना है शेर का जब पेट भर जाए तो वो हमला नहीं करता दरख़्तों की घनी छाँव में जा कर लेट जाता है हवा के तेज़ झोंके जब दरख़्तों को हिलाते हैं तो मैना अपने बच्चे छोड़ कर कव्वे के अंडों को परों से थाम लेती …
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