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तुलसीदास
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रूद्र–शिव सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ देव–जगदगुरु
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ऋग्वेद के दितीय मंडल के सूक्त तैतीस के मन्त्र में मंत्र् -दृष्टा ने रूद्र -शिव की स्तुति करते हए उदघोष किया। श्रेष्ठो जातस्य रूद्र श्रियासी तव्स्त्मस्तावासम वज्रबाहो /पर्षि णह पारंमहसः स्वस्ति विश्वा अभीती रपसो युयोधि –अर्थात हे रूद्र तुम ऐश्वर्य में सब प्राणियों की अपेक्षा श्रेष्ठ हो। हे वज्रबाहू तुम बड़े हुए लोगों में अतिशय …
निराला ने तुलसीदास को अपनी काव्यात्मक भूमि पर उतारा है जो श्लाध्य है…
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‘तुलसीदास’ में गोसाई जी के चरित्र का मौलिक रूप हमारे सामने आता है। मध्यकालीन इतिहास से ज्ञात होता है कि मुसलमानों की शक्ति अटूट और अपार थी, उस महान शक्ति से लोहा लेने के लिए राणा प्रताप जैसे महान त्यागी, देशभक्त और योद्धा भी विफल रहे तब कर्तव्यच्युत, स्पर्धागत उद्धत क्षत्रिय और चाटुकार ब्राह्मण उनके …
जीतने के लिए कोई शत्रु नहीं, सभी मित्र हैं, तो यह तुलसी का राम राज्य या Ideal State है…
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सूर का एक कूट पद और तुलसी का आदर्श राज्य सूरदास का (व्रज भाषा में ) एक ‘कूट’ पद देखिए: “कहत कत परदेसी की बात। मंदिर अर्ध अवधि बदि हमसों, हरि अहार चरि जात। नखत वेद ग्रह जोरि अर्ध करि, को बरजे हम खात। मघ पंचक हरि लियो सांवरो, ताते हैं अकुलात। सूरदास प्रभु बिनु …
तुलसीदास के जीवन की यह खास घटना गोकुलनाथ की दो सौ बावन वैष्णव की वार्ता में है वर्णित
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तुलसीदास में इतिहास और जनश्रुतियों का अद्भुत समावेश है। तुलसीदास के शिष्य बेनी माधव विरचित मूल गुसाई चरित्र के अनुसार तुलसीदास का जन्म सं 1554 में रजियापुर में हुआ था। उनके पांडित्य, रूप और गुण पर मुग्ध होकर उन्हें यमुनापार के एक ब्राह्मण ने दामाद बनाया था- रसकेली में पाँच वर्ष बीत जाने पर रत्ना …
तुलसीदास महाकवि निराला की सांस्कृतिक चेतना का है उज्ज्वलतम इतिहास
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तुलसीदास महाकवि निराला की सांस्कृतिक चेतना का उज्ज्वलतम इतिहास है। यह निराला जी का ऐसा जीवित स्मारक है जिसकी तुलना कामायनी से सहज ही की जा सकती है। इसमें राष्ट्रीय भावना , ज्ञान और भक्ति से सम्पन्न कवि का लोक मंगलकारी रूप का मनोहारी चित्रण है । साथ ही प्रकृति स्वरूपा नारी की शक्ति , …
तुलसीदास का नजरिया: हमारे अन्दर नहीं बचा है किसी तरह का आत्मसम्मान और आत्मबोध
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यह जनश्रुति है तुलसीदास कभी मथुरा आए थे और मथुरा के किसी प्रसिद्ध मंदिर में दर्शन करने गए, वहां श्रीकृष्ण का बड़ा सुंदर श्रृंगार किया गया था, तुलसीदास उस मूर्ति को देखकर विमुग्ध हो गए। वे श्रीकृष्ण के आनंद में डूब गए, लेकिन भगवान के सामने सिर नहीं नवाया। वहीं पर उन्होंने गद्गद् कंठ से …
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