औरंगजेब के शासनकाल के कुछ ऐसे तथ्य जो इतिहास की तह से निकलकर आ रहे सामने, जानिए

औरंगजेब के शासनकाल के कुछ ऐसे तथ्य जो इतिहास की तह से निकलकर आ रहे सामने, जानिए

जब से ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर के मुद्दों पर समाचार पत्रों में लिखा जाने लगा तब से औरंगजेब पर लोगों की रूचि बढ़ रही है। कुछ मेधावी विद्वान औरंगजेब के पक्ष में इतिहास की तह से तथ्य निकाल रहे हैं। एक तर्क औरंगजेब की बर्बरता के बारे में है तो दूसरा औरंगजेब के मज़हबीपन, मितव्ययिता, …

जब से ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर के मुद्दों पर समाचार पत्रों में लिखा जाने लगा तब से औरंगजेब पर लोगों की रूचि बढ़ रही है। कुछ मेधावी विद्वान औरंगजेब के पक्ष में इतिहास की तह से तथ्य निकाल रहे हैं। एक तर्क औरंगजेब की बर्बरता के बारे में है तो दूसरा औरंगजेब के मज़हबीपन, मितव्ययिता, शाही ख़ज़ाने के उपयोग पर संजीदगी का है। औरंगजेब पर जितना मेरा अध्ययन है, मैं सीमित ही कहूँगा क्योंकि मैं कोई इतिहासकार तो हूँ नहीं, उसी पर मैं अपनी राय देना चाहूँगा।

औरंगजेब ने मंदिरों को ध्वस्त किया इसके पीछे राजनैतिक कारण थे न कि धार्मिक। यह तर्क कुछ लब्ध प्रतिष्ठित इतिहासकार देते हैं । वह राजनैतिक कारण क्या थे और वह मुग़ल सत्ता के लिये कितना बड़ा ख़तरा थे इसका ज़िक्र कम ही मिलता है। औरंगजेब खाली समय में टोपी सिलता था और उससे अपना खर्चा निकालता था। आज तक कहीं नहीं मिला कि एक इतना शक्तिशाली शासक कितनी टोपी सिलता था और उसे कहाँ बेचता था जिससे उसका ख़र्चा निकल जाता था। जबकि शाही शानोशौकत तो वैसी ही चल रही थी जैसी चलती आ रही थी। आज भी क्या टोपी सीकर और बेंचकर ख़र्चा निकाला जा सकता है ? माना यह तथ्य प्रतीकात्मक है और उसको शासक के सैद्धांतिक विचार से लिया जाये न कि इस बात से कि इससे शासक का जीवन यापन चलता था।

अगर यह भी मान लिया जाये तब भी एक युद्धरत शासक के पास कितना वक़्त था इस कार्य के लिये ? हॉबी होती है लोगों की बड़े आदमियों की ज़्यादा होती है। औरंगजेब की हॉबी टोपी सिलना रहा होगी , उसको ख़ाली समय में टोपी सिलना अच्छा लगता रहा होगा या इस प्रक्रिया में शांति मिलती होगी जैसे बहुत से लोगों को लिखने -दौड़ने – पेड़ लगाने या वजह – बेवजह के विमर्श में होती है। यह भी हो सकता है युद्ध की भयावहता से मन हटाने के लिये वह टोपी सिलता हो पर पर टोपी सीने को ऐसा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है जैसे कि वह ईश्वर की आराधना हो गया।

एक और तर्क दिया जाता है कि औरंगजेब के शासनकाल में हिंदू प्रतिनिधित्व 22 से 32 प्रतिशत बढ़ गया था इसलिये वह समन्वयवादी शासक था पर यह प्रतिशत किसका बढ़ा था ? क्या रोज़गार बढ़ गये थे ? यह मनसबदारों की संख्या है । कुछ चंद उम्मीदों के लिये कार्य करने वाले मुट्ठी भर मनसबदारों की संख्या से एक सामान्य अवधारणा विकसित करके इतिहास की किताबों में यह बताया जा रहा कि वह अकबर – शाहजहाँ की तुलना में अधिक समन्वयवादी था । ए . जान कैसर का एक अनुसंधान है संभवतः उसी के आधार पर यह कहा जा रहा है। ज़रा अनुसंधान ही देख लेते हैं ।

कुल राजस्व की 61.5 % भाग 445 मनसबदार खा जाते थे। 4 शहज़ादे कुल राजस्व का 8.2 % हड़प कर जाते थे। 114 मनसबदार सकल राजस्व का 44% खा जाते थे। शाहजहाँ के समय अनुमानित मालगुज़ारी 880 करोड़ रुपये थी। यह आँकड़ा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 की धज्जी उड़ा रहा जिसमें यह कहा गया है कि संपदा का संकेंद्रण न हो हो और राज्य के संसाधनों का जनता के लिये उपयोग हो । इस पर कार्य न करके इतिहासकारों ने इसका प्रयोग किया यह दिखाने के लिये वह एक समन्वयवादी शासक था।
यह जो दस प्रतिशत बढ़ा है वह कोई ऐसा तथ्य नहीं दे रहा कि हम घोषणा कर दें वह महान समन्वयवादी था । कुल 450 की संख्या के आँकड़े पर उछलने वाले इतिहासवेत्ता कुछ और प्रयास करें उसे महान सिद्ध करने के लिये ।

वह संगीत के प्रति लगाव रखता था। उसके समय में संगीत पर ज़्यादा किताबें लिखी गयीं । यह हर जगह लिखा जाता है पर क्या यह तथ्य संगीत को नेस्तनाबूत करने के प्रयत्न से किसी तरह से बचाव करता है। औरंगजेब ने जो हाल राज्य का किया वह जगज़ाहिर है । दक्कन का युद्ध बग़ैर किसी खास उद्देश्य के लिये लड़ा गया , मात्र अहम की तुष्टि के लिये । ग़रीब रियाया के बारे में सोचने का तो समय ही नहीं था । एक किसी गानेवाली से प्रेम हो गया तो इतिहासकार लिख बैठे देखो उसका संगीत प्रेम  अगर संगीत प्रेम न होता तब कैसे वह प्रेम होता ? लिप्सा , आसक्ति , वासना से उपजा संबंध संगीत के प्रति प्रेम को व्याख्यायित कर रहा।

औरंगजेब चार भाई और तीन बहन थे। गौहर शुजा के प्रति स्नेहशील थी तो रौशन और जहाँ आरा क्रमशः औरंगजेब और दाराशिकोह के प्रति । रौशनआरा ने औरंगजेब के लिये गुप्तचरी की और कहा जाता है कि एक बार यह योजना बनी कि समझौते के बहाने औरंगजेब को दिल्ली बुलाकर गिरफ़्तार कर लिया जाये पर इस योजना की सूचना रौशनआरा ने औरंगजेब को दे दी थी और इस एहसान के कारण औरंगजेब के राज्य में उसका रसूख़ था पर उसको ही औरंगजेब ने ज़हर देकर मार दिया क्योंकि वह दिल्ली के किसी बाग में एक पुरूष के साथ पायी गयी।

मुग़ल शहज़ादों के विवाह बहुत शानोशौकत से होते थे पर मुग़ल शहज़ादियों के विवाह का ज़िक्र तो कम ही मिलता नहीं , कारण कुछ भी हो पर हक़ीक़त तो यही है जो बयाँ करती है एक विकृत मानसिकता की । शाहजहाँ के बेटों का विवाह तो बहुत धूमधाम से हुआ और दारा का विवाह तो बहुत ही अधिक पर शाहजहाँ की तीन शहज़ादियों रौशन – जहाँ – गौहर का विवाह नहीं हुआ। औरंगजेब ने इस विवाह के शानोशौकत से अपने को अलग रखा। जहाँआरा पर तो बरनियर शाहजहाँ के साथ के संबंधों पर आपत्तिजनक टिप्पणी करता है।

औरंगजेब के पास क्रूरता की पराकाष्ठा थी । मुराद के साथ मिलकर उत्तराधिकार का युद्ध लड़ा पर उसको धर्म विरोधी करार देकर उसकी हत्या कर दी , रौशन आरा को ज़हर दिया , दारा ही नहीं दारा के परिवार की नृशंसतापूर्ण हत्या की। अपने बेटे तक को उसने दंड कर लिया। सिख गुरुओं के साथ क्या किया यह जग ज़ाहिर है ।मुझे ज्ञानवापी मस्जिद या उसके विवाद के बारे में न तो कुछ पता है न ही कुछ कहना है ।

मेरी आपत्ति मात्र औरंगजेब को एक नायक सिद्ध करने के प्रयास पर है। मुझे वह कहीं से भी एक नायक नहीं दिखता। जिसका पिता ही कहे , तुमसे अच्छे तो वह हिंदू हैं जो अपने मृत पितरों को पानी देते हैं और तुम एक जीवित पिता को पानी नहीं दे रहे और जिसने अपने पिता को आठ वर्षों तक यातना दी और अपने भाई का सिर काटकर थाल में सजाकर अपने पिता को प्रस्तुत किया हो उसे नायक के रूप में प्रस्तुत करने वाले एक विक्षिप्त मानसिकता का प्रतिनिधित्व करते हैं।