बाबू कुँवर सिंह का बलिदान और उनका शौर्य

बाबू कुँवर सिंह का बलिदान और उनका शौर्य

इतिहास की नज़र से यदि इस कथन की विवेचना की जाय तो इसमे कुछ भी असत्य नही लगता है। भगवान रामचन्द्र जी से लेकर आधुनिक युग मे चन्द्र शेखर आज़ाद तक को बुंदेलखंड मे शरण लेने के प्रमाण मौजूद हैं । 1857-58 की क्रांति मे भी हम पाते हैं कि अनेक क्रांतिकारियों जैसे तात्या टोपे, …

इतिहास की नज़र से यदि इस कथन की विवेचना की जाय तो इसमे कुछ भी असत्य नही लगता है। भगवान रामचन्द्र जी से लेकर आधुनिक युग मे चन्द्र शेखर आज़ाद तक को बुंदेलखंड मे शरण लेने के प्रमाण मौजूद हैं । 1857-58 की क्रांति मे भी हम पाते हैं कि अनेक क्रांतिकारियों जैसे तात्या टोपे, राव साहब आदि न मालूम कितने क्रांतिकरी थे जिनको बुंदेलखंड मे शरण मिली । तो जब बाबू कुँवर सिंह को भी जगदीश पुर छोड़ना पड़ा तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए उनको भी बुंदेलखंड आना पड़ा । इस लेख मे केवल कुँवर सिंह के बांदा और काल्पी मे आने के बारे मे जो मैंने जाना और पढ़ा वही साझा कर रहा हूँ ।

25जुलाई,1857 को दानापुर कि फौजी छावनी मे जब अंग्रेजों ने देशी सैनिकों से हथियार लेने की योजना पर अमल लाना शुरू किया तब 7वीं और 8वीं रेजीमेंट के सैनिकों ने बगावत कर दी | ये सैनिक अपने हथियारों को साथ लेकर फुलवारी के मार्ग से आरा की तरफ चल दिए। सोन नदी को क्रास करके यह दल 27जुलाई को आरा पाहुचता है । आरा मे इन सैनिकों ने तीन काम किए। जेल मे बंद कैदियों को आज़ाद कर दिया, खजाने मे रखे 85 हज़ार रुपयों पर अधिकार कर लिया और बाबू कुँवर सिंह के पास खबर भेज कर जगदीश पुर से आरा आने का निवेदन किया । 27जुलाई को कुँवर सिंह का आरा मे आगमन होता है।

मैदान मे उनको सिपाहियों ने सलामी दी । डा० श्याम बिहारी के अनुसार इस बुढ़ापे की उम्र मे भी इस सिंह ने सेना के प्रमुख संचालक के पद को स्वीकार किया। विस्तार मे नहीं जाना है मुझको क्योंकि मुझे तो उनके बुंदेलखंड मे आने के बारे मे बात साझा करना है। यह जानिए कि ३अगस्त को मेजर विन्सेंट आरा पर अधिकार कर लेता है। कुँवर सिंह आरा छोड़ कर जगदीश पुर आ जाते हैं | लेकिन ११-१२ अगस्त को मेजर आयर ने जगदीश पुर पर भी कब्जा कर लिया। अब जो कहानी है वह कुँवर सिंह के व्यक्तिगत शौर्य, लोकप्रियता, संगठन छमता, नेत्रत्व चमाता, छापामार युद्ध कला और अपराजेय मनोबल कि ही कहानी है।

मिर्जापुर होते हुए वे रीवा आते हैं, पर वहाँ पर भी सहाता न मिलने पर वे सित्न्बर मे बांदा कि तरफ चलते हैं और बंदा के ओरन मे डेरा डालते हैं | बांदा के बागी नवाब अली बहादुर ने अपने सिपाहियों को कुँवर सिंह के पास भेज कर उनको दल-बल सहित बांदा बुलवाया। नवाब के आमंत्रण पर कुँवर सिंह अपने साथ मे चालीसवीं देशी पलटन के दो हज्जर बागी सिपाहियों को लेकर बांदा पहुंचे। बांदा की छावनी मैदान कुँवर सिंह ने अपना पड़ाव डाला। नवाब की रारफ से वहाँ एक बाज़ार भी लगा दिया गया। बिहार से बाबू कुँवर सिंह के अन्य बागी सिपाही बांदा आने लगे। इस तरह लगभग चार हज़ार बागी सैनिक बांदा पाहुचे।

बांदा मे इस दल के आने के बारे मे नवाब के महल मे एक पत्र मिला था। उसमे विद्रोही नेताओं का एक पत्र मिला था जिससे यह भी पता चलता है कितने सैनिक बांदा आए थे और उनके नेता कौन थे | पत्र इस प्रकार है ….इस प्रकार सातवीं पलटन के पूरे जवान तथा चालीसवीं पलटन के दो सो जवान प्रांतीय पलटन २८ अगस्त को बांदा आ पाहुचे । आपके भक्त सेवक बांदा नवाब अली बहादुर ने कई काफिरों को मौत कि गोद मे सुला कर अच्छा काम किया उन्होने आपकी स्वीक्र्ति की आशा मे हम लोगों को बांदा बुलाया है । हस्ताक्षरकर्ता- भवानी सिंह सूबेदार मेजर, रंजीत सिंह सूबेदार मेजर, शिव चरण अवस्थी जमादार, पहलवान सिंह, हीरा सिंह जमादार तथा सातवीं पलटन के अन्य सूबेदार तथा जमादार, बेजुराम सूबेदार, निहाल जमादार, तथा चालीसवीं पलटन के अन्य देशी अधिकारी

देवेंद्र सिंह

ये भी पढ़ें- अतीत के पन्ने : मुरादाबाद के नाम दर्ज है 1888 की ओलावृष्टि का यह खौफनाक इतिहास