रायबरेली: ऊंचाहार के चुनावी मैदान में मुस्लिम मतदाता बनेंगे गेम चेंजर, जानें कैसे…

रायबरेली: ऊंचाहार के चुनावी मैदान में मुस्लिम मतदाता बनेंगे गेम चेंजर, जानें कैसे…

रायबरेली। रायबरेली की सबसे पुरानी विधानसभा रही डलमऊ से बनी ऊंचाहार विधानसभा का चुनावी अखाड़ा तैयार हो गया। दलों के क्षत्रप रण जीतने के लिए जुट गए हैं। यह विधानसभा जब डलमऊ के नाम से थी तो शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रही। उसके बाद 2012 में जब यह ऊंचाहार बनी तो सपा ने …

रायबरेली। रायबरेली की सबसे पुरानी विधानसभा रही डलमऊ से बनी ऊंचाहार विधानसभा का चुनावी अखाड़ा तैयार हो गया। दलों के क्षत्रप रण जीतने के लिए जुट गए हैं। यह विधानसभा जब डलमऊ के नाम से थी तो शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रही। उसके बाद 2012 में जब यह ऊंचाहार बनी तो सपा ने इस विधानसभा पर कब्जा कर लिया। उसके बाद से सपा का दबदबा बना हुआ है।

वहीं भाजपा के हाथ कभी भी यह सीट नहीं आई। इस बार जिस समीकरण को साधकर विभिन्न दलों ने  प्रत्याशी उतारे हैं। उसने मुकाबले को रोचक तो बनाया है लेकिन मुस्लिम वोटर गेम चेंजर बन गया है।

ऊंचाहार क्षेत्र पहले डलमऊ विधानसभा सीट के अंतर्गत था, लेकिन साल 2008 में परिसीमन के बाद डलमऊ का नाम खत्म हो गया। डलमऊ का कुछ हिस्सा सरेनी विधानसभा सीट में चला गया और बाकी हिस्से को मिलाकर इस सीट को ऊंचाहार विधानसभा का नाम दे दिया गया। ऊंचाहार सीट पर अभी तक दो बार 2012 और 2017 में चुनाव हुए हैं। दोनों बार यहां से सपा उम्मीदवार के तौर पर मनोज पांडेय ने जीत दर्ज की।

दो दशक तक सलोन का हिस्सा भी रहा ऊंचाहार

आजादी के बाद करीब दो दशक तक उंचाहार का इलाका सलोन विधानसभा सीट का हिस्सा हुआ करती थी। 1952 से 1969 तक ऊंचाहार के लोगों ने सलोन विधानसभा सीट के लिए वोट किया। इस दौरान सलोन में सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस के बीच मुकाबला होता रहा है। 1971 के परिसीमन के बाद ऊंचाहार का इलाका सलोन सीट से काटकर डलमऊ विधानसभा सीट में शामिल कर दिया गया है।  जहां 1991 तक कांग्रेस का कब्जा रहा और पहली बार उसे 1993 में हार का मुंह देखना पड़ा है।

ऊंचाहार के शामिल होने के बाद डलमऊ विधानसभा सीट पर पहली बार 1974 में विधानसभा चुनाव हुआ और मुन्नू लाल द्विवेदी विधायक चुने गए। इसके बाद 1977 में दोबारा द्विवेदी विधायक बने।  इसके बाद कांग्रेस ने मुन्नूलाल द्विवेदी की जगह कुंवर हरिनारायण सिंह पर दांव लगाया। कांग्रेस से कुंवर हरिनारायण सिंह सबसे ज्यादा चार बार विधायक रहे. हरिनारायण सिंह कभी भी डलमऊ विधानसभा सीट से चुनाव नहीं हारे। कुंवर हरिनारायण सिंह के निधन के बाद 1993 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पहली बार हार का मुंह देखना पड़ा। 1993 में सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर गजाधर सिंह विधायक बने। इसके बाद लंबे समय से चुनावी मात खा रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा का दामन थामा।

स्वामी प्रसाद मौर्य 1996 में पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे और मायावती सरकार में मंत्री बने। इस सीट से पहले ओबीसी विधायक ही नहीं बल्कि मंत्री बनने वाले पहले नेता बने। इसके बाद वो 2002 चुनाव में दोबारा विधायक चुने गए. इसके बाद साल 2007 के विधानसभा चुनाव में कुंवर हरिनारायण सिंह के बेटे अजय पाल सिंह कांग्रेस से चुनावी मैदान में उतरे और स्वामी प्रसाद मौर्य को मात देकर कांग्रेस की वापसी कराई।

इसके बाद यह सीट डलमऊ से ऊंचाहार में बदल गई। ऊंचाहार विधानसभा सीट पर 2012 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें सपा से मनोज पांडेय, स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट मौर्य को मात देकर विधायक बने और अखिलेश सरकार में मंत्री बने।

सपा के मनोज पांडेय को 61930 वोट मिले जबकि बसपा प्रत्याशी उत्कृष्ट मौर्य को 59348 वोट मिले।  कांग्रेस के अजय पाल सिंह तीसरे और बीजेपी के रमेश मौर्या चौथे नंबर पर रहे। इसके बाद 2017 में मनोज पांडेय दोबारा विधायक चुने गए।

2022 के चुनाव में इस तरह का है चुनावी रण

कांग्रेस ने इस विधानसभा से भाजपा छोड़कर आए युवा नेता अतुल सिंह को उतारा है। अतुल सिंह लंबे समय से भाजपा की यूथ ब्रिगेड के नेता रहे। सपा ने पूर्व मंत्री मनोज पांडेय को तीसरी बार उतारा है। बसपा ने अंजलि मौर्या पर दांव लगाया है। जबकि भाजपा ने पैराशूट लैंडिंग कराकर प्रदेश महामंत्री अमरपाल मौर्य को उतारा है।

कांग्रेस ने 80 हजार ठाकुर मतदाता के कारण अतुल सिंह, सपा ने 90 हजार ब्राह्मण, 35 हजार यादव मतदाता के चलते प्रत्याशी बनाया है। बसपा ने 45 हजार मौर्य और 1.5 लाख दलित मतदाता के कारण अंजलि मौर्य को उतारा है। वहीं भाजपा ने सभी जातियों के वोटबैंक के भरोसे और बिल्कुल नए चेहरे को उतार कर पैराशूट लैंडिंग कराई है। इस समीकरण के चलते 60 हजार मुस्लिम मतदाता हार-जीत को तय करने और भाजपा की मुश्किल बढ़ाने का काम करेगा।

सामाजिक ताना-बाना

  • विधानसभा में कुल मतदाताओं की संख्या- 5,62,864
  • पुरुष मतदाता- 2,89,302
  • महिला मतदाता- 2,73,562
  • थर्डजेंडर मतदाता- 13
  • अनुमानित जातिगत मतदाता
  • ब्राह्माण– 90,000
  • क्षत्रिय– 80,000
  • पिछड़ा वर्ग– 1,80,000
  • दलित– 1,50,000
  • अल्पसंख्यक– 60,000
  • एक नजर में मतदान केंद्र
  • कुल मतदान केंद्रों की संख्या- 255
  • कुल बूथों की संख्या- 392
  • संवेदनशील बूथों की संख्या- 88
  • अतिसंवेदनशील बूथों की संख्या- 03

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