सुरक्षा पर सवाल

सुरक्षा पर सवाल

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में कचहरी परिसर के रिकार्ड रूम में सोमवार सुबह एक अधिवक्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई। वकील की हत्या से प्रदेश में पुलिस की कार्यप्रणाली व अदालत परिसरों की सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लग गया है। अदालत परिसर में प्रवेश के लिए लोगों को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था से …

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में कचहरी परिसर के रिकार्ड रूम में सोमवार सुबह एक अधिवक्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई। वकील की हत्या से प्रदेश में पुलिस की कार्यप्रणाली व अदालत परिसरों की सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लग गया है। अदालत परिसर में प्रवेश के लिए लोगों को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था से गुजरना होता है। इसके बावजूद हथियारबंद हमलावर कैसे अंदर पहुंच गए, यह एक बड़ा सवाल है। उधर इस मामले में विपक्ष ने प्रदेश सरकार को घेरा है।

विरोधियों कहना है कि यूपी के मुख्यमंत्री दावा करते थे कि गुंडे-बदमाश प्रदेश छोड़कर भाग गए हैं। यहां तो गुंडे-बदमाश अदालत में घुसकर वकील की हत्या कर रहे हैं। बहरहाल, यूपी में किसी वकील की हत्या का ये पहला मामला नहीं है। बार एंड बेंच के मुताबिक 2019 में आगरा बार काउंसिल की महिला अध्यक्ष दरवेश यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। हमलावरों ने आगरा कोर्ट में उनके चैंबर में घुसकर उन्हें गोलियां मारी थीं। 2019 में ही एटा में हथियारबंद हमलावरों ने वकील नूतन यादव की उनके आफिस में घुसकर हत्या की थी। वो उत्तर प्रदेश सरकार की वकील थीं। इसी तरह बिजनौर में अदालत परिसर में हत्या की वारदात हो चुकी है।
गौरतलब है कि न्यायाधीशों और अदालतों के लिए एक विशेष सुरक्षा बल गठित किए जाने की मांग समय-समय पर की जाती रही है।

पिछले अगस्त में बार कॉउंसिल ऑफ इंडिया ने उच्चतम न्यायालय से जजों-वकीलों की सुरक्षा के लिए स्पेशल फोर्स गठित करने की मांग की थी। क़ॉउंसिल ने अपने प्रस्ताव में कहा था कि अदालत के सुरक्षा अधिकारियों को परिस्थितियों से निपटने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। बार काउंसिल ने कहा था कि हमारी कानूनी प्रणाली को ब्लैकमेल, उत्पीड़न और शारीरिक हमलों जैसे खतरों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी परिस्थितियों में यह संपूर्ण न्याय प्रशासन प्रणाली के स्वतंत्र कामकाज के लिए खतरा है। झारखंड में एक अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, उत्तम आनंद की हत्या के संबंध में स्वत: संज्ञान मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा था कि अदालतों की सुरक्षा राज्यों पर छोड़ दी जाए,

क्योंकि इसके लिए स्थानीय पुलिस के साथ दिन-प्रतिदिन समन्वय की आवश्यकता होती है। इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अदालतों और जजों की सुरक्षा को लेकर राज्यों को व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए थे। देखा जाना कि चाहिए कि क्या प्रदेश में इन दिशा निर्देशों का पालन सही से किया जा रहा है।

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