युद्ध पर विराम लगे

युद्ध पर विराम लगे

रूस-यूक्रेन युद्ध लंबा खिंचता जा रहा है। युद्ध को चलते हुए लगभग चार महीने हो चुके हैं। नाटो महासचिव जनरल जेंस स्टोल्टेनबर्ग का आंकलन है कि युद्ध जल्द खत्म होने के आसार नहीं हैं। यह भी संभव है कि युद्ध वर्षों चलता रहे। जो बेदह गंभीर है। इसमें संशय नहीं है कि यह संघर्ष अब …

रूस-यूक्रेन युद्ध लंबा खिंचता जा रहा है। युद्ध को चलते हुए लगभग चार महीने हो चुके हैं। नाटो महासचिव जनरल जेंस स्टोल्टेनबर्ग का आंकलन है कि युद्ध जल्द खत्म होने के आसार नहीं हैं। यह भी संभव है कि युद्ध वर्षों चलता रहे। जो बेदह गंभीर है। इसमें संशय नहीं है कि यह संघर्ष अब नाक की लड़ाई बन चुका है। न रूस निर्णायक जीत के आसपास पहुंचा नजर आ रहा है और न यूक्रेन की हिम्मत पस्त पड़ती दिख रही है। प्रतीत हो रहा है कि युद्ध दुनिया को नए सामरिक संतुलन व संगठन बनाने के लिए थोपा गया है।

साथ ही एक और नए शीत युद्ध की शुरुआत भी इससे हो गई है। लगभग पचास लाख लोग यूक्रेन से पलायन कर गए हैं और शरणार्थी जीवन जी रहे हैं। निहत्थे नागरिक युद्ध का शिकार हो रहे हैं। हजारों बच्चे मारे गए हैं। युद्ध की कीमत सिर्फ इन दोनों देशों को नहीं बल्कि बाकी पूरी दुनिया को भी चुकानी पड़ रही है। युद्ध ने सभी आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर दिया और गेहूं से लेकर जौ, खाद्य तेल और उर्वरकों तक प्रत्येक वस्तु की कमी की स्थिति उत्पन्न की है।

ईंधन और खाद्यान्न की कमी वैश्विक संकट का रूप लेती जा रही है। परिणामस्वरूप खाद्य और उर्वरकों की कीमतें बढ़ रही हैं। रूसी आक्रमण के बाद से गेहूं की कीमतों में 21 प्रतिशत, जौ की कीमतों में 33प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है। एक रिपोर्ट के अनुसार, उर्वरक बाज़ारों पर युद्ध का प्रत्यक्ष प्रभाव सर्वप्रथम भारत और ब्राजील में खाद्य उत्पादन के मौसम में अनुभव किया जाएगा।

रूस-यूक्रेन संघर्ष ईंधन की बढ़ती कीमतों के लिए जिम्मेदार है क्योंकि आपूर्ति शृंखला बाधित हो गई है। कोरोना महामारी के बाद दुनिया के विभिन्न देशों में आर्थिक और अन्य कई मोर्चों पर जैसे-तैसे संभले हुए हालात बेकाबू हो सकते हैं। दुनिया के कई देशों में आर्थिक मंदी का भी डर पैदा हो गया है। इस युद्ध से पर्यावरण रक्षा के अभियान पर भी असर पड़ेगा।

दुनिया दो विश्वयुद्ध पहले देख चुकी है। प्रथम विश्वयुद्ध में मरने वालों की संख्या एक करोड़ से अधिक थी, जबकि द्वितीय विश्व युद्ध में मरने वालों की संख्या साढ़े पांच करोड़ से ज्यादा रही थी। दूसरे विश्व युद्ध में करीब साढ़े तीन करोड़ लोग जख्मी हुए थे और 1940 के दशक में तीस लाख लोग लापता हो गए थे। ऐसे में जल्द से जल्द युद्ध समाप्त हो, क्योंकि युद्ध जितना लंबा खिंचेगा, दुनिया में उतनी ही ज्यादा परेशानियों और मुसीबतों को जन्म देगा।