पीआईएल मजाक नहीं

पीआईएल मजाक नहीं

शीर्ष अदालतों में लंबित मामलों की संख्या पहले से ही अधिक है और जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग बढ़ रहा है। जनहित याचिका (पीआईएल) की अवधारणा के दुरुपयोग को लेकर गत दिनों मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमण ने अदालतों में महत्वहीन याचिकाएं दाखिल …

शीर्ष अदालतों में लंबित मामलों की संख्या पहले से ही अधिक है और जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग बढ़ रहा है। जनहित याचिका (पीआईएल) की अवधारणा के दुरुपयोग को लेकर गत दिनों मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमण ने अदालतों में महत्वहीन याचिकाएं दाखिल किए जाने पर चिंता जताते हुए कहा कि कभी-कभी परियोजनाओं को रोकने या सार्वजनिक प्राधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए पीआईएल का इस्तेमाल किया जा रहा है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि पीआईएल ने जनहित में बहुत काम किया है लेकिन जनहित याचिका की अर्थपूर्ण अवधारणा कभी-कभी निजी हित याचिका में बदल जाती है। इसके चलते महत्वहीन याचिकाओं की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है। एक मामले में पीआईएल को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने पहले भी कहा है कि राजनीतिक एजेंडा वाले लोगों द्वारा जनहित याचिका का दुरुपयोग किया जा रहा है और इसकी बारंबारता न्यायिक प्रक्रिया के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही है।

इन दिनों देश में धार्मिक स्थलों से जुड़े कई विवाद चर्चा में हैं। गुरुवार को इनमें से ताजमहल के बंद कमरों को खोलने की मांग पर दाखिल जनहित याचिका खारिज करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाई कि पीआईएल को मजाक ना बनाएं। पर्याप्त शोध के बाद ही याचिका दायर की जाए। उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच में सुनवाई के दौरान न्यायाधीश डीके उपाध्याय ने कड़ी टिप्पणी की कि ताजमहल किसने बनवाया, पहले जाकर रिसर्च करो। रिसर्च से कोई रोके तब हमारे पास आना।

अब इतिहास को आपके मुताबिक नहीं पढ़ाया जाएगा। जनहित याचिका की अवधारणा संविधान के अनुच्छेद 39 ए में निहित सिद्धांतों के अनुकूल है ताकि कानून की मदद से त्वरित सामाजिक न्याय की रक्षा और उसे विस्तारित किया जा सके। कानून में पीआईएल का मतलब जनहित की सुरक्षा के लिए याचिका या मुकदमा दर्ज करना है। यह पीड़ित पक्ष द्वारा नहीं बल्कि स्वयं न्यायालय या किसी अन्य निजी पक्ष द्वारा विधिक अदालत में पेश किया गया मुकदमा है।

जानकारों के मुताबिक पीआईएल द्वारा ऐसे कम ही मुद्दों को उठाया जा रहा है जो वास्तव में लोकहित या वास्तविक कारणों को समर्पित होते हैं। ऐसी याचिकाएं न्यायिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता के लिए भी गंभीर खतरा पैदा करती हैं। हालांकि दुरुपयोग की आशंका को समझते हुए अदालतें अब इन पर विचार करने में अत्यधिक सतर्क हैं। फिर भी पीआईएल का दुरुपयोग इसे अप्रभावी बना सकता है। अतः पीआईएल के संदर्भ में अब पुनर्विचार और पुनर्गठन की आवश्यकता है।