जन-मन और मेले

जन-मन और मेले

भारत एक अनोखा राष्ट्र है, जिसका निर्माण विविध भाषा, संस्कृति, धर्म के तानों बानों, अहिंसा और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित स्वतंत्रता संग्राम तथा सांस्कृतिक विकास के समृद्ध इतिहास द्वारा एकता के सूत्र में बांध कर हुआ है। भारत भौगोलिक रूप तथा रहन-सहन की दृष्टि से भिन्न है, लेकिन आंतरिक रूप से यह अभिन्न है। …

भारत एक अनोखा राष्ट्र है, जिसका निर्माण विविध भाषा, संस्कृति, धर्म के तानों बानों, अहिंसा और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित स्वतंत्रता संग्राम तथा सांस्कृतिक विकास के समृद्ध इतिहास द्वारा एकता के सूत्र में बांध कर हुआ है। भारत भौगोलिक रूप तथा रहन-सहन की दृष्टि से भिन्न है, लेकिन आंतरिक रूप से यह अभिन्न है। इस बार देश आजादी के 75 वर्ष पूरे कर रहा है। आजादी के अमृत महोत्सव में हो रहे विभिन्न आयोजनों का संदेश है कि देशवासी अपने कर्तव्य का पूरी निष्ठा से पालन करें।

रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात कार्यक्रम’ के जरिये कहा कि अमृतकाल हर देशवासी के लिए कर्तव्य काल की तरह है। देश में अलग- अलग राज्यों में आदिवासी समाज के भी कई पारंपरिक मेले होते हैं। इनमें से कुछ मेले आदिवासी संस्कृति से जुड़े हैं, तो कुछ का आयोजन आदिवासी इतिहास और विरासत से जुड़ा है। ‘मेले’, अपने आप में, हमारे समाज, जीवन की ऊर्जा का बहुत बड़ा स्रोत होते हैं। उनके इतिहास और विरासत से जुड़े हैं। मेले जन और मन दोनों को जोड़ते हैं, इनका अपना सांस्कृतिक महत्व है। हमारी सांस्कृतिक परम्पराओं की उत्कृष्टता के कारण ही आज अमेरिका और यूरोप के लोग भारतीय जीवन पद्धतियों को अपना रहे हैं।

ऐसे युग में जो गतिशीलता और आगे बढ़ने की सुविधा प्रदान करता है। समय और तकनीक ने संपर्क और संचार के मामले में दूरियों को कम कर दिया है। विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के सामान्य दृष्टि कोण के द्वारा आपसी रिश्तों में मजबूती लाना और राष्ट्र-निर्माण महत्वपूर्ण है। देश हर क्षेत्र में सफलता का आकाश छू रहा है। आपसी समझ और विश्वास भारत की ताकत की नींव हैं। आधुनिक समय में समाज की ये पुरानी कड़ियां ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत करने के लिए बहुत ज़रूरी है।

एक साझा इतिहास के बीच आपसी समझ की भावना ने विविधता में विशेष एकता को सक्षम किया है। सांस्कृतिक विविधता एक खुशी है जिसे विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लोगों के बीच पारस्परिक संपर्क और पारस्परिकता के माध्यम से मनाया जाना चाहिए ताकि देश भर में समझ की एक सामान्य भावना प्रतिध्वनित हो। युवाओं को इनसे जरूर जुड़ना चाहिए। दायित्व है कि वह उत्सवों का आयोजन कर सांस्कृतिक एकता को दृढ़ करने के प्रयास करें। इससे लोगों के बीच समझ और आपसी संबंध मजबूत होंगे, जिससे राष्ट्रीय एकता की भावना में समृद्धि हासिल होगी।

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