स्वाभाविक चिंता

स्वाभाविक चिंता

आर्थिक गतिविधियों में तेजी के बावजूद बढ़ती महंगाई अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का प्रमुख कारण है। महंगाई से आम आदमी ही नहीं रिजर्व बैंक भी परेशान है। केंद्रीय बैंक के समक्ष महंगाई पर काबू पाने के साथ अर्थव्यवस्था को गति देने की दोहरी चुनौती है। इस पर काबू पाने के लिए इसी महीने रिजर्व बैंक …

आर्थिक गतिविधियों में तेजी के बावजूद बढ़ती महंगाई अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का प्रमुख कारण है। महंगाई से आम आदमी ही नहीं रिजर्व बैंक भी परेशान है। केंद्रीय बैंक के समक्ष महंगाई पर काबू पाने के साथ अर्थव्यवस्था को गति देने की दोहरी चुनौती है। इस पर काबू पाने के लिए इसी महीने रिजर्व बैंक ने अपनी नीतिगत दरों में बदलाव कर रेपो दर में पचास आधार अंक की बढ़ोतरी की थी।

उसके कुछ दिनों पहले भी चालीस आधार अंक की बढ़ोतरी की गई थी। मगर अब भी इन कदमों का कोई उत्साहजनक परिणाम नजर नहीं आ रहा। खुदरा महंगाई की दर में जरूर मामूली कमी दर्ज हुई है, मगर थोक महंगाई दर का रुख अब भी ऊपर की तरफ बना हुआ है। इसके अलावा डालर के मुकाबले रुपए की कीमत लगातार घट रही है। रुपया गिरने का नुकसान महंगाई बढ़ने के रूप में देखने को मिल रहा है।

रुपया गिरने से पेट्रोल-डीजल, सीएनजी और रसोई गैस जैसे ईंधन महंगे हो रहे हैं क्योंकि इसका आयात ज्यादा होता है। वहीं, दूसरी आयात की जाने वाली तमाम चीजों पर भी असर पड़ता है। इनमें खाने के तेल से लेकर फर्टिलाइजर और स्टील तक हर तरह की चीजें शामिल हैं। आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्य माइकल पात्रा का कहना है कि रिजर्व बैंक के फैसले काफी हद तक महंगाई पर निर्भर करेंगे। हमारा अनुमान तीन या चार तिमाही आगे का है।

इस बीच खुदरा महंगाई की दर नीचे भी आ सकती है। अगर चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में महंगाई से राहत मिलती है तो ब्याज दरों में बढ़ोतरी का सिलसिला थम भी सकता है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने यह संकेत भी दिया है कि अगस्त में रेपो रेट को एक बार फिर बढ़ाया जा सकता है। यदि रेपो रेट फिर बढ़ता है तो आम आदमी पर कर्ज का बोझ भी बढ़ जाएगा।

मौजूदा और नया कर्ज लेने वालों को होम लोन, ऑटो लोन, पर्सनल लोन सहित तमाम तरह के खुदरा लोन पर ज्यादा ईएमआई का भुगतान करना पड़ेगा। थोक महंगाई बढ़ने का सीधा अर्थ है कि बाजार में खपत कम हो रही है, मांग घट रही है। इससे बड़े उद्योगों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। लोगों के रोजगार छिनने से क्रय शक्ति काफी घट गई है। ऐसे में बाजार में पूंजी का प्रवाह बढ़ाना एक चुनौतीपूर्ण काम है। अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए जरूरी है कि घरेलू और विदेशी बाजार में विस्तार हो। चूंकि केंद्रीय बैंक के लिए प्राथमिक लक्ष्य महंगाई को काबू में रखना है। इसलिए उसकी चिंता स्वाभाविक है।