एमसीडी को मुकदमेबाजी करते समय सावधानी बरतनी चाहिए: उच्च न्यायालय

एमसीडी को मुकदमेबाजी करते समय सावधानी बरतनी चाहिए: उच्च न्यायालय

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि निजी व्यक्ति शक्तिशाली निगमों से नहीं लड़ सकता और सार्वजनिक निकाय के तौर पर दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को मुकदमा करते वक्त संयम और सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि अदालतों पर पहले से ही मुकदमों का अत्यधिक बोझ है। अदालत ने कहा कि नगरीय निकाय को न्याय …

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि निजी व्यक्ति शक्तिशाली निगमों से नहीं लड़ सकता और सार्वजनिक निकाय के तौर पर दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को मुकदमा करते वक्त संयम और सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि अदालतों पर पहले से ही मुकदमों का अत्यधिक बोझ है। अदालत ने कहा कि नगरीय निकाय को न्याय दिलाने में सहयोग और सहायता के लिए आगे आना चाहिए।

न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने श्रम अदालत के उस आदेश के खिलाफ निगम की याचिकाओं पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें औद्योगिक विवाद अधिनियम के संदर्भ में कुछ अधिकारों और लाभों की मांग करने वाले कामगारों के प्रासंगिक सेवा रिकॉर्ड के साथ जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया था। याचिकाकर्ता निगम ने इस आधार पर आदेश को चुनौती दी थी कि आदेश जारी करने से पहले प्रबंधन को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया था, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन है।

न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि औद्योगिक विवाद अधिनियम कल्याणकारी कानून है, जिसका उद्देश्य श्रमिकों को उनके विवादों को जल्द से जल्द निपटाने में सहायता करना है और श्रम न्यायालय, वर्तमान मामले में, आवेदन के अधिनिर्णय की दिशा में केवल आगे बढ़ रहा था और वह तब तक राहत देने के निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सका था।

अदालत ने दस्तावेज पेश करने के आदेश पर निगम द्वारा उठाई गई आपत्ति को ‘अजीब’ करार देते हुए कहा, ‘नियोक्ता, विशेष रूप से सरकार को इस तरह के मुकदमों में अधिक जिम्मेदार होना चाहिए’ और ‘निगम मामले के अंतिम निर्णय का इंतजार कर सकता था।’ अदालत ने निगम की याचिका खारिज करते हुए अपने हालिया आदेश में कहा, ‘मेरा मानना ​​है कि सबसे पहले एक सार्वजनिक निकाय के रूप में निगम को अदालत में मुकदमेबाजी करते समय अत्यधिक संयम और सावधानी बरतनी चाहिए।

अदालतें पहले से ही मुकदमों का अत्यधिक बोझ ढो रही हैं। मौजूदा मामले में संबंधित अधिनियम की धारा 33-सी(2) के तहत दायर आवेदन पर श्रम अदालत द्वारा फैसला किया जाना बाकी है।” अदालत ने स्पष्ट किया कि निगम अदालत के अंतिम आदेश से पीड़ित होने की स्थिति में उसे चुनौती दे सकता है।

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