लखनऊ : थारू जनजाति के अनुवांशिक बीमारी को जांच से रोकने की तैयारी

लखनऊ : थारू जनजाति के अनुवांशिक बीमारी को जांच से रोकने की तैयारी

लखनऊ । रक्त से जुड़ी हुई बीमारी थैलेसीमिया असाध्य बिमारी मानी जाती है। भारत में प्रत्येक वर्ष में थैलेसीमिया मेजर (थैलेसीमिया का जटिल प्रकार) से ग्रसित बच्चे जन्म लेते हैं। जिनकी संख्या हजारों में बतायी जा रही है। वहीं उत्तर प्रदेश में थैलेसीमिया से पीड़ित मरीजों की भारी तादात बतायी जा रही है,जिसमें से करीब 800 …

लखनऊ । रक्त से जुड़ी हुई बीमारी थैलेसीमिया असाध्य बिमारी मानी जाती है। भारत में प्रत्येक वर्ष में थैलेसीमिया मेजर (थैलेसीमिया का जटिल प्रकार) से ग्रसित बच्चे जन्म लेते हैं। जिनकी संख्या हजारों में बतायी जा रही है। वहीं उत्तर प्रदेश में थैलेसीमिया से पीड़ित मरीजों की भारी तादात बतायी जा रही है,जिसमें से करीब 800 बच्चों का इलाज राजधानी स्थित एसजीपीजीआई व केजीएमयू में चल रहा है।

थैलेसीमिया एक अनुवांशिक बिमारी यानी की जेनेटिक डिसऑर्डर है,माइनर थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चा स्वस्थ जीवन जीता है,वहीं थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित बच्चे का जीवन सामाजिक व आर्थिक दोनों स्तर पर कठिनाईयों भरा होता है। इस समस्या से पीड़ित बच्चों को 21 दिन में एक बार रक्त चढ़ाया जाता है।

ऐसे में थैलेसीमिया मेजर जैसी जेनेटिक डिसऑर्डर पर लंबे समय से काम कर रही  केजीएमयू के सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च स्थित साइटोजेनेटिक लैब की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ नीतू निगम का साफ तौर पर कहना है कि इस समस्या से प्रदेश व देश को तभी निजात मिलेगी, जब थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों अथवा वयस्कों की समय रहते पहचान कर ली जाये,जिससे इस डिसऑर्डर के लिए दोषपूर्ण जीनों के वाहक महिला व परूष शादी करने से पहले जिस तरह कुंडली का मिलान कराते हैं उसी प्रकार चिकित्सक की सलाह पर कुछ जरुरी जांचे अवश्य करायें। जिससे उनकी संताने थैलेसीमिया मेजर की शिकार न हों और स्वस्थ जीवन जीने के साथ राष्ट्र निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। उन्होंने बताया कि थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित बच्चों को 21 दिन पर ट्रांसफ्यूजन थेरेपी करानी पड़ती है।

इसी को लेकर उन्होंने अभी हालही में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के आदिवासी समुदाय के 493 किशोरों की जांच करायी जिसमें से 108 किशोर मेजर थैलेसिमिया के वाहक आगे चलकर बन सकते हैं।

 उन्होंने बताया कि विकासशील देशों में, स्वास्थ्य मानव समुदाय की प्रमुख चिंताओं में से एक है। भारत में ज्यादातर आदिवासी समुदाय में विभिन्न प्रकार के विकार और बीमारियां होती हैं जैसे हीमोग्लोबिनोपैथी।

उन्होंने बताया कि हेमोग्लोबिनोपैथिस सबसे आम मोनोजेनिक रक्त विकार हैं। वैश्विक स्तर पर लगभग 5 प्रतिशत और भारत में 3.8 प्रतिशत लोग थैलेसीमिया के वाहक हैं। विभिन्न जनजातीय समूहों में 4 से 17 प्रतिशत की व्यापकता बहुत अधिक है। जनजाति समुदायों में कुपोषण अधिक आम है। विकासशील देश में एनीमिया एक प्रमुख स्वास्थ्य चिंता है जो अधिकतम लोगों को प्रभावित करती है।

उन्होंने बताया कि लखीमपुर खीरी के थारू आबादी में हीमोग्लोबिनोपैथी और थैलेसीमिया के एचबी प्रकार पर अध्ययन किया गया। इस अध्ययन के तहत मेगा स्वास्थ्य शिविर के दौरान खीरी जिले के विभिन्न स्कूल जाने वाले बच्चों से जनसांख्यिकीय विवरण और रक्त के नमूने एकत्र किए गए। जांच के बाद जो परिणाम आया वह काफी चौकाने वाला रहा,उनहोंने बताया कि 493 में से 108 (21.9 प्रतिशत) छात्र असामान्य हीमोग्लोबिनोपैथी से पीड़ित हैं।

लखीमपुर खीरी जिलों में थारू समुदाय में हीमोग्लोबिनोपैथी और थैलेसीमिया (21.9%) की उच्च घटनाएं देखी गईं। जिसमें थैलेसीमिया वाहक सबसे आम हीमोग्लोबिनोपैथी (59.26 प्रतिशत ) है, उसके बाद एचबीएस (34.26 प्रतिशत) है। इसके अलावा, यौगिक विषमयुग्मजी एचबीएस/बी-थैलेसीमिया लक्षण थारूसमुदाय में 6.48प्रतिशत पाया गया।

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