लखीमपुर-खीरी: कलेक्टर आवास पर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे नसीरुद्दीन, सीतापुर जेल में हुई थी फांसी

लखीमपुर-खीरी: कलेक्टर आवास पर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे नसीरुद्दीन, सीतापुर जेल में हुई थी फांसी

लखीमपुर-खीरी, अमृत विचार। जिले के तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था और अपनी शहादत दी थी। इनमें लखीमपुर शहर के मोहल्ला थरवरनगंज निवासी नसीरुद्दीन उर्फ मौजी भी थे। वह अंग्रेज कलेक्टर (जिलाधीश) आवास पर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। उन्होंने अपने दो साथियों के साथ मिलकर 26 अगस्त 1920 को तत्कालीन अंग्रेज …

लखीमपुर-खीरी, अमृत विचार। जिले के तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था और अपनी शहादत दी थी। इनमें लखीमपुर शहर के मोहल्ला थरवरनगंज निवासी नसीरुद्दीन उर्फ मौजी भी थे। वह अंग्रेज कलेक्टर (जिलाधीश) आवास पर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। उन्होंने अपने दो साथियों के साथ मिलकर 26 अगस्त 1920 को तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर विलोबी की आवास में घुसकर हत्या कर दी थी। तीनों को सीतापुर जिले में फांसी दी गई थी।

शहर के कचहरी रोड पर शहीद नसीरुद्दीन मौजी के नाम पर भवन है। यह आजादी से पूर्व यह भवन अंग्रेज कलेक्टर का आवास था। शहर के मोहल्ला थरवपनगंज निवासी मसरुद्दीन उर्फ मौजी कलेक्टर आवास पर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। इस वजह से उनका कलेक्टर आवास में बेरोकटोक आना जाना था। इससे उन्हें अंग्रेज कलेक्टर रॉबर्ट विलियम डगलस विलोबी की हत्या करने में काफी आसानी हुई थी। बात करीब सौ साल पहले की है।

कांग्रेस की स्थापना के बाद स्वाधीनता आंदोलन के दौरान जिले में जहां एक तरफ अहिंसात्मक आंदोलन चल रहा था। वहीं दूसरी तरफ क्रांति के रणबांकुरे 26 अगस्त 1920 को बकरीद के दिन अपने दो साथियों बसरुद्दीन और माशकू अली के साथ मिलकर अंग्रेज कलेक्टर के आवास पर पहुंचे थे। नसरुद्दीन को अंग्रेज कलेक्टर के आवास में आने-जाने में इसलिए कोई दिक्कत नहं हुई और न ही उन्हें तलाशी आदि से गुजरना पड़ा, क्योंकि वह कलेक्टर विलोबी के आवास के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। उन पर किसी को कोई शक भी नहीं था। जिस समय नसरुद्दीन मौजी साथियों के साथ आवास में घुसे।

उस वक्त अंग्रेजी कलेक्टर रॉबर्ट विलियम डगलस विलोबी अपने आवास में बने अपने कैंप में बैठा हुआ था। इसी दौरान क्रांतिकारियों ने ललकारने के बाद तलवार से उसका सिर कलम कर दिया था और साथियों के साथ भागकर शहर के कसाई टोला में जा छुपे थे। पुलिस तीनों की तलाश में शहर का चप्पा-चप्पा खंगाल डाला था, लेकिन कोई पता नहीं लगा सकी थी। काफी तलाश के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें मुखबिर की सूचना गिरफ्तार कर लिया था। नसीरुद्दीन मौजी और उनके दोनों साथियों पर मुकदमा चला।

नसरुद्दीन मौजी से सफाई में गवाहों की सूची मांगी गई तो उन्होंने महात्मा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद और मौलाना शौकत अली का नाम दिया था। अदालत ने इन गवाहों को तलब करने की इजाजत नहीं दी। मुकदमे की औपचारिकता पूरी करने के बाद इन तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई। तीनों को सीतापुर जेल में फांसी दई गई। क्रांतिकारी नसरुद्दीन उर्फ मौजी, बसरुद्दीन और माशूक अली इंकलाब जिंदा बाद के नारे लगाते हुए फंदे पर झूल गए थे।

बकरीद से पखवाड़े भर पहले बनाई थी हत्या की योजना
देश के रण बांकुरों के सीने में उस समय स्वाधीनता आंदोंलन की आग धधक रही थी। स्वाधीनता आंदोलन भी अपने चरम पर था। अंग्रेजी कलेक्टर विलोबी के साथ ही पुलिस अधीक्षक समेत कई अधिकारियों की हत्या करने की योजना नसरुद्दीन उर्फ मौजी ने अपने साथियों के साथ बनाई थी, लेकिन यह योजना अंग्रेजों के मुखबिर के कारण पूरी सफल नहीं हो सकी और वह विलोबी के हत्या करने के बाद पकड़े गए। तीनों को फांसी के तख्त पर झूलना पड़ा।

अंग्रेजों ने विलोबी की याद में बनवाया था विलोबी हाल
शहर के विलोबी मेमोरियल हाल का निर्माण 1924 रॉबर्ट विलियम डगलस विलोबी की हत्या के बाद उनकी याद में ईस्ट इंडिया कंपनी ने विलोबी मेमोरियल हाल का निर्माण कराया था। 26 अप्रैल 1936 को विलोबी मेमोरियल लाइब्रेरी की स्थापना की गई थी। जिसमें इस मेमोरियल का नाम नसीरुद्दीन मेमोरियल हाल दिया गया था।

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