मौत का डाक्टर के नाम से कुख्यात इस ब्रिटिश डॉक्टर का बंगला आज भी लोगों को डराता है, अभी भी खुदाई में नजर आ जाते हैं कंकाल

मौत का डाक्टर के नाम से कुख्यात इस ब्रिटिश डॉक्टर का बंगला आज भी लोगों को डराता है, अभी भी खुदाई में नजर आ जाते हैं कंकाल

चंपावत जिले का लोहाघाट स्थित एबट माउंट से थोड़ा आगे जाएंगे तो आपको एक खंडहर चर्च और ईसाई धर्म का कब्रिस्तान नजर आएगा बस इसी रास्ते से आगे की ओर एमसी डेविड की कोठी तक पहुंचेंगे जो मोनाल रिजॉर्ट के नाम से संचालित हैं, वहां से आगे बड़ने पर पेडों से घिरा एक बंगला नजर …

चंपावत जिले का लोहाघाट स्थित एबट माउंट से थोड़ा आगे जाएंगे तो आपको एक खंडहर चर्च और ईसाई धर्म का कब्रिस्तान नजर आएगा बस इसी रास्ते से आगे की ओर एमसी डेविड की कोठी तक पहुंचेंगे जो मोनाल रिजॉर्ट के नाम से संचालित हैं, वहां से आगे बड़ने पर पेडों से घिरा एक बंगला नजर आएगा जो कि डाक्टर मॉरिस का बंगला है।

हजारों एकड़ में फैले घास के मैदान, बांज, बुरांस, चिनार और देवदार के वृक्षों के मध्य स्थित यह बंगला योरोपियन शैली में बना है। इस बंगले में ही मौत के डाक्टर के नाम से जाने जाना वाले डाक्टर मॉरिस का अस्पताल मौजूद है। बताया जाता है कि डा. मॉरिस सबसे पहले मुक्ति कोठी में अस्पताल चलाता था फिर मरीजों की तादाद बढ़ने पर उसने जॉन एबट से वह बंगला 1947 से पहले 36 हजार रुपए में खरीदा और उस बड़े बंगले में शुरू किए अपने प्रयोग जो मौत और ज़िंदगी के बीच की उस पतली लकीर को खोजने के लिए थे।

मॉरिस दरअसल आदमी की मौत के वक्त उसके दिमाग की स्थिति क्या होती है इस पर रिसर्च कर रहे थे। स्थानीय लोगों का कहना है कि मुक्ति कोठी में उसने बहुत से मरीजों पर यह प्रयोग किए वहां के पड़ोस की जमीनों में अभी भी खुदाई करने पर नर कंकाल निकलते हैं।

मिस्टर एबट का पूरा नाम जॉन हेरॉल्ड एबट था जो उन्नीसवीं सदी की शुरुवात में पिथौरागढ़ की इन सुंदर वादियों में पहुंचे। वह यूनाइटेड प्रोविंसेज के झांसी के रहने वाले थे। झांसी में वह एक ख्यातिप्राप्त व्यापारी और नेता थे। इनका जन्म 10 जनवरी 1863 को स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग में हुआ था और सन् 1920 के आस पास उन्होंने यहां जमीन खरीदकर करीब 13 कोठियां बनवाईं और अपनी पत्नी की याद में सन 1942 में एक चर्च का भी निर्माण कराया जो फिलहाल बन्द है और वहां कोई भी प्रार्थना करने नहीं जाता लोग इस चर्च में भूत का वास मानते हैं।

बताया जाता है कि एबट माउंट अपने बेटों के लिए छोटे विमानों को उड़ाने के लिए एक हवाई पट्टी बनाना चाहते थे पर यह निर्माण नहीं हो पाया। बताया जाता है कि खेल के मैदान के समीप खुदाई के दौरान एक मंदिर निकला जिसके बाद से वहां रह रहे अंग्रेजों के साथ अनहोनी होना शुरू हुई। किसी के बच्चे की मौत हो गयी तो किसी की पत्नी चलबसी। एबट की पत्नी कैथरीन की सन 1942 में मृत्यु हुई, तो एबट ने कैथरीन की याद में एक खूबसूरत चर्च बनाया, जो अब भूतहा चर्च के नाम से विख्यात है। इसके बाद एबट की मृत्यु 82 वर्ष की उम्र में 28 जून 1945 को रामगढ़ कुमाऊं में हुई और उसकी अंतिम इच्छानुसार उसे लोहाघाट लाकर इसी जगह दफनाया गया।

इसके बाद 1871 में लोहाघाट में एपिस्कोपल मेथोडिस्ट चर्च द्वारा अस्पताल का निर्माण हुआ। बाद में सन 1875 में एक स्कूल खोला गया। मिशनरीज एबट माउंट के बसने से पहले से यहां काम कर रही थी और एबट फैमिली के उजड़ने के बाद भी मिशनरीज ने यहां काम किया। एमडी स्टोन, एमसी डेविड जैसे लोगों ने इस स्थान को आबाद रखा मिस्टर एबट के बाद सन 1940 के आस पास एक डाक्टर मॉरिस एबट माउंट आया जिसने मिस्टर एबट से उनका सबसे बड़ा बंगला 36 हजार रुपए में खरीदा था। इस बंगले के चारों तरफ बड़े घास के मैदान और देवदार, बुरांश तथा बांज के पेड़ हैं. इस बंगले के बरामदे के आगे दो विशाल देवदार के पेड़ हैं जिन्हें मिस्टर एबट व उनकी पत्नी ने लगाया था। डा. मॉरिस भयानक बीमारियों से ग्रस्त मरीजों का इलाज कर उन्हें ठीक किया करता था। मॉरिस के इस अस्पताल में नेपाल तक से मरीज आते थे, मॉरिस के इस अस्पताल में मरीजों के ठहरने व खाने पीने का इंतजाम भी मुफ्त था।

बताया जाता है कि डाक्टर मॉरिस एक विशेष प्रयोग कर रहे थे और यदि वह सफल होता तो मेडिकल साइंस को एक नायाब तोहफा मिल जाता कि इंसान की मौत के वक्त उसके दिमाग में क्या तब्दीली होती है। मजेदार बात यह है कि डाक्टर मॉरिस यह भी बता देते थे कि कौन मरीज़ कितने दिनों में मरने वाला है, और उस मरीज़ की मौत मॉरिस के बताए हुए समय पर ही होती थी। पूरे कुमायूं में यह बात फैल चुकी थी कि डाक्टर मॉरिस मौत की सही सही भविष्यवाणी करते हैं।

जब भी किसी मरीज को वह बताते की अब वह फलां रोज मर जाएगा, तो उसे वह मुक्ति कोठरी में भेज देते, और बताए गए मुकर्रर वक़्त पर वह रोगी मर जाता पहाड़ो की दुरूह चढ़ाई पर पहाड़ के गरीब लोग जब किसी रोगी को लाते तो मौत की तारीख़ तय हो जाने पर वह उसे वापस नही ले जा पाते या जिन मरीजों का कोई नही होता वह भी मुक्ति कोठरी में मर जाता जिसे वहीं पास में दफ़ना दिया जाता था।

मरीज को अच्छा खाना और दवाओं के साथ-साथ रहना भी फ्री था डाक्टर मॉरिस के अस्पताल में, इस कारण भी लोग अपने मरीज़ों के प्रति बेपरवाह हो जाते थे। लोगों का कहना है की डाक्टर मॉरिस जिन रोगियों की मौत की तारीख तय करता था, उन्हें मौत की कोठरियों में भेजकर उनके दिमाग के अध्ययन के लिए खोपड़ियों को चीर कर दिमाग में यह पता लगाता था कि वह कौन सी हरकत है जो मौत और जिंदगी के बीच की कड़ी है। वह मरीजों के तमाम अंगों को चीरता फाड़ता और उन पर तमाम तरह के प्रयोग करता था और यही वजह थी मुक्ति कोठी कालांतर में मौत की कोठरियों के नाम से जानी जाने लगी और डाक्टर मॉरिस मौत के डॉक्टर के नाम से कुख्यात हो गए।

कई लोगों का कहना है जासूस था मॉरिस
बताया जाता है कि डा.मॉरिस को आज़ाद भारत की आर्मी ने भी एक बार गिरफ़्तार किया था। उनके पास से वायरलेस से किसी दूसरे देश में सम्पर्क करने की कोशिश की गयी थी। बहरहाल डा.मॉरिस कौन थे इस बात का आज तक पता नहीं लग पाया। लेकिल एबट माउंट, एबी हॉस्पिटल, मुक्ति कोठी और भुतहा चर्च को पूरी दुनिया में पहचान मिली।

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