जानें हिंदी के पंडित फ़ादर कामिल बुल्के का इतिहास, किसके बने भक्त

जानें हिंदी के पंडित फ़ादर कामिल बुल्के का इतिहास, किसके बने भक्त

फादर कामिल बुल्के 26 वर्ष की उम्र में बेल्जियम से भारत एक मिशनरी के रूप में ईसाई धर्म का प्रचार करना आये थे लेकिन यहॉ आकर मृत्यु पर्यंत तक अपना पूरे जीवन हिन्दी भाषा, तुलसीदास व महर्षि वाल्मीकि के भक्त बन कर रहे। फादर कामिल बुल्के का जन्म बेल्जियम में वर्ष 1909 में हुआ था …

फादर कामिल बुल्के 26 वर्ष की उम्र में बेल्जियम से भारत एक मिशनरी के रूप में ईसाई धर्म का प्रचार करना आये थे लेकिन यहॉ आकर मृत्यु पर्यंत तक अपना पूरे जीवन हिन्दी भाषा, तुलसीदास व महर्षि वाल्मीकि के भक्त बन कर रहे। फादर कामिल बुल्के का जन्म बेल्जियम में वर्ष 1909 में हुआ था और उन्होंने वहॉ के ल्यूबेन विश्वविद्यालय से सिविल इजिनियरिग की डिग्री ली थी।

फादर ने लिखा है कि जब वह भारत आये तो उन्हें यह देखकर दुख व आश्चर्य हुआ कि अनेक शिक्षित लोग अपनी सांस्कृतिक परंपराओं से अनजान थे और इंगलिश बोलने में गर्व महसूस करते थे। मैंने अपने कर्तव्यों पर विचार किया कि मैं इन लोगों की देशज भाषा की महत्ता को सिद्ध करूँगा ।

फादर कामिल बुल्के ने निश्चय किया कि अब उनकी कर्मभूमि भारत है और भारत को जानने और समझने के लिये उन्हें यहॉ की भाषा सीखनी व समझनी होगी । बुद्धि से बेहद कुशाग्र व लगन से उन्होंने अगले पॉच सालों में उत्तर भारत की सभी भाषाओं की जननी संस्कृत पर भी अपनी मज़बूत पकड़ बना ली ।

फादर कामिल बुल्के ने 1940 में हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से विशारद की परीक्षा पास की जिसके लिये उन्हें पुजारी की उपाधि दी गई । फादर कामिल बुल्के ने इसके बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय से संस्कृत में मास्टर की डिग्री ली और 1945 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में डाक्टरेट की डिग्री ली । फादर कामिल बुल्के के शोध पत्र का शीर्षक ‘ राम कथा की उत्पत्ति और विकास ‘ था ।

फादर कामिल बुल्के का शोध ग्रंथ राम कथा की उत्पत्ति और विकास वैज्ञानिकता और तार्किकता पर आधारित भगवान राम का चरित्र चित्रण है। उनका शोध साबित करता है कि भगवान राम वाल्मीकि के कल्पित पात्र नहीं बल्कि इतिहास पुरुष थे। फादर कामिल बुल्के के इस शोध ग्रंथ ने पहली बार कई उद्धरणो से साबित किया है कि भगवान राम की कथा केवल भारत की नहीं अंतरराष्ट्रीय कथा है । वियतनाम से लेकर इंडोनेशिया तक यह कथा फैली हुई है ।

फादर कामिल बुल्के ने राम कथा की उत्पत्ति और विकास के अलावा हिंदी भाषा पर कई शोध ग्रंथ लिखे है । फादर कामिल बुल्के का हिंदी अंग्रेज़ी शब्द कोष किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं । भारत सरकार ने फादर कामिल बुल्के को हिंदी साहित्य की सराहनीय सेवा के लिये देश का तीसरा सबसे बड़ा सम्मान ‘ पद्म भूषण ‘ से 1974 में सम्मानित किया था। हिंदी साहित्य की कई केंद्रीय समितियों में भी वह नामित रहे थे।

मैं अपने को भाग्यशाली मानता हूँ कि अपने विद्यार्थी जीवन में मैं कई बार उनके सम्पर्क में आया हूँ क्योंकि मैंने अपना ग्रेजुएशन रॉची विश्वविद्यालय से किया था और फादर रॉची के सेंट ज़ेवियरस कालेज के हिंदी व संस्कृत के विभागाध्यक्ष थे।