China’s Final Warning के बारे में जानिए, आखिर क्यों उड़ता है इसका मजाक

China’s Final Warning के बारे में जानिए, आखिर क्यों उड़ता है इसका मजाक

बीजिंग। अमेरिकी हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा के चलते चीन और अमेरिका के बीच रिश्ते काफी तनावपूर्ण हो गए हैं। चीन ने अमेरिका को खुले तौर पर चेतावनी दी थी कि अगर हिम्मत है तो पेलोसी ताइवान में लैंड करके दिखाएं। लेकिन चीन की धमकी के बावजूद पेलोसी ताइवान पहुंच गई है। हालांकि …

बीजिंग। अमेरिकी हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा के चलते चीन और अमेरिका के बीच रिश्ते काफी तनावपूर्ण हो गए हैं। चीन ने अमेरिका को खुले तौर पर चेतावनी दी थी कि अगर हिम्मत है तो पेलोसी ताइवान में लैंड करके दिखाएं। लेकिन चीन की धमकी के बावजूद पेलोसी ताइवान पहुंच गई है। हालांकि चीन की धमकी को देखते हुए अमेरिकी युद्धपोतों, लड़ाकू विमानों को अलर्ट मोड पर रखा गया है। वहीं चीन ने अपनी ताकत दिखाते हुए 21 लड़ाकू विमानों को ताइवान के एयर डिफेंस जोन में भेज दिया।

पिछले 25 सालों में ताइवान का दौरा करने वाले पेलोसी शीर्ष स्तर की पहली अमेरिकी राजनेता हैं। पेलोसी लंबे समय से ताइवान की समर्थक रही हैं और वह इस मसले पर चीन की आलोचना करती रही हैं। एक तरफ जहां चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है तो दूसरी तरफ पेलोसी ताइवान में लोकतंत्र की वकालत करती हैं। जिस तरह से पेलोसी ने ताइवान जाने की बात कही थी उसके बाद चीन की ओर से कहा गया था कि यह चीन के आंतरिक मामलों में बड़ा हस्तक्षेप समझा जाएगा, इसके साथ ही चीन ने चेतावनी दी थी कि इसके गंभीर परिणाम होंगे।

वहीं इस पूरे संकट के बीच रूस की ओर से आधिकारिक तौर पर यह बयान सामने आया है कि अमेरिका चाहता है कि दुनिया में एक बार युद्ध हो जाए, फिर चाहे वह यूक्रेन का मुद्दा हो या ताइवान का मसला हो। अमेरिका चाहता है कि एक बार दुनिया में युद्ध हो। रूस की ओर से कहा गया कि यह बहुत ही उकसावे की हरकत हो सकती है, इससे इलाके का माहौल खराब हो सकता है, तनाव बढ़ सकता है। हालांकि इस समय रूस चीन के साथ खड़ा नजर आ रहा है लेकिन सोवियत यूनियन के विघटन से पहले रूस चीन की फाइनल वॉर्निंग का मजाक उड़ाता रहा है।

रूसी भाषा में चायनाज फाइनल वॉर्निंग (China’s final warning) बेहद ही लोकप्रिय मुहावरा है, जिसका लोग इस्तेमाल करते हैं। यह मुहावरा सोवियत यूनियन के समय में सामने आया था। इस मुहावरे का इस्तेमाल ऐसी धमकियों के लिए किया जाता है जिसके कोई परिणाम नहीं होते हैं। ऐसे में जिस तरह से चीन ने अमेरिका को धमकी दी है उसे भी इसी से जोड़कर देका जा रहा है। अब जबकि नैन्सी पेलोसी ताइवान पहुंच चुकी हैं और किसी भी तरह की चीन की ओर से सैन्य कार्रवाई नहीं की गई है उसके बाद इस फाइनल वॉर्निंग पर सवाल खड़े हो रहे हैं। अहम बात यह है कि चायनाज फाइनल वार्निंग का एक लंबा इतिहास है और इसपर विकीपीडिया पर बकायदा एक पूरा पेज है।

अमेरिका के कई अधिकारी 1950-1960 के बीच ताइवान के दौरे पर गए, जिसके बाद चीन लगातार अमेरिका को धमकी देता था। हर दूसरे दिन एक पत्र लिखा जाता था और कहा जाता था कि यह फाइनल वॉर्निंग हैं, लेकिन अंतत: किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की गई। जिसके बाद चीन की फाइनल वॉर्निंग का मजाक उड़ने लगा। लोग इस तरह की धमकी को इस तरह से लेने लगे कि यह धमकी फर्जी है, इसके कोई परिणाम नहीं होने वाले हैं।

रिपब्लिक ऑफ चायना और युनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के बीच ताइवान स्ट्रैट को लेकर 1950 और 1960 में संबंध काफी खराब हो गए थे। अमेरिका के लड़ाकू विमान लगातार ताइवान स्ट्रैट पर पेट्रोलिंग करते थे, जिसकी वजह से चायनीज कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से आधिकारिक तौर पर विरोध दर्ज कराया गया था और उस वक्त कहा गया था कि यह फाइनल वॉर्निंग है। लेकिन इसके कुछ खास परिणाम नहीं हुए, इन चेतावनी पर अमेरिका ने कोई ध्यान नहीं दिया और इसे नजरअंदाज किया।

चीन की ओर से अमेरिका को पहली फाइनल वॉर्निंग 7 सितंबर 1958 को दो गई थी, जब ताइवान स्ट्रेट संकट का दूसरा दौर शुरू हुआ। दरअसल जिस तरह से चीन ने अमेरिका को एक के बाद एक सैकड़ों फाइनल वॉर्निंग दी उसके बाद उसकी इस वॉर्निंग का मजाक उड़ने लगा। 1964 तक चीन ने अमेरिका को 900 से अधिक फाइनल वॉर्निंग दी थी। सोवियत यूनियन के विघटन के बाद फाइनल वॉर्निंग एक ऐसे मुहावरे के तौर पर सामने आया, जिसका इस्तेमाल सामान्य तौर पर लोग मजाक बनाने के लिए करते हैं। इस शब्द का इस्तेमाल इस्टोनिया में भी किया जाता है।

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