चक्रवाती तूफान की तबाही से निपटने का भारतीय वैज्ञानिकों ने निकाला तोड़, खोज निकाली ऐसी सटीक तकनीक…

चक्रवाती तूफान की तबाही से निपटने का भारतीय वैज्ञानिकों ने निकाला तोड़, खोज निकाली ऐसी सटीक तकनीक…

नई दिल्ली। भारतीय वैज्ञानिकों की काबिलियत से एक बार फिर दुनिया रूबरू होने जा रही है। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी सटीक तकनीक खोज निकाली है जो सेटेलाइट की सूचना से भी पहले चक्रवाती तूफानों की जानकारी देगी। तूफानों का पहले पता लग जाने से जान-माल की हानि को काफी हद तक कम किया जा …

नई दिल्ली। भारतीय वैज्ञानिकों की काबिलियत से एक बार फिर दुनिया रूबरू होने जा रही है। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी सटीक तकनीक खोज निकाली है जो सेटेलाइट की सूचना से भी पहले चक्रवाती तूफानों की जानकारी देगी। तूफानों का पहले पता लग जाने से जान-माल की हानि को काफी हद तक कम किया जा सकेगा। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने कहा कि इस तरीके में समुद्र की सतह पर उपग्रह से तूफान का पूर्वानुमान लगाने से पहले पानी में भंवर के प्रारंभिक लक्षणों का अनुमान लगाया जाता है।

अब तक दूर संवेदी तकनीक के जरिये ही चक्रवात का पता लगाया जाता रहा है। इस रिमोट सेंसिंग तकनीक तभी कारगर थी जब समुद्र के पानी की ऊपरी सतह गर्म हो और कम दबाव का क्षेत्र बन रहा हो। समुद्री सतह पर गर्म वातावरण बनने और चक्रवात के वजूद में आने से पहले, वातावरण में अस्थिरता आने लगती है यानी हवा भंवरदार बनने लगती है।

इस गतिविधि से वातावरण में उथल-पुथल शुरू हो जाती है। इस तरह के बवंडर से जो वातावरण बनता है, वह आगे चलकर तेज तूफान बनाता है। DST के मुताबिक नई तकनीक से च्रकवात का पता लगाने और चक्रवात के वजूद में आने के बीच काफी लंबा अंतराल होता है, जिससे तैयारी करने का वक्त मिल जाएगा। हालांकि अभी इस तकनीक के आधिकारिक नाम की घोषणा नहीं की गई है।

चार भीषण चक्रवाती तूफानों का किया अध्ययन
वैज्ञानिकों ने मानसून के बाद आए चार भीषण चक्रवाती तूफानों पर यह अध्ययन किया। इसमें फालिन (2013), वरदा (2013), गज (2018) और मादी (2013) हैं जो उत्तर हिंद महासगार के ऊपर बने थे। मानसून के बाद आए दो तूफानों मोरा (2017) और आइला (2009) पर भी अध्ययन किया गया। पत्रिका ‘एट्मॉस्फियरिक रिसर्च’ में हाल ही में यह अध्ययन प्रकाशित किया गया।

90 घंटे पहले तूफान आने की मिलेगी जानकारी
वैज्ञानिकों के दल ने गौर किया कि इस तकनीक से 90 घंटे पहले (करीब चार दिन) पहले तूफान के आने का पता लगाया जा सकता है। यह भी देखा गया कि चक्रवात कब बनेगा और उस समय क्या हालात होंगे। इसमें मॉनसून से पहले और बाद, दोनों समय आने वाले तूफान शामिल हैं। बता दें कि चक्रवात वातावरण की ऊपरी सतह पर पनपते हैं और प्री-मानसून से पहले जल्दी पकड़ में आ जाते हैं, जबकि मॉनसून पश्चात इतनी तेजी से पकड़ना काफी चुनौती पैदा करता है।

27 किलोमीटर के समुद्री क्षेत्रफल पर असर
भारतीय वैज्ञानिकों की नई तकनीक का असर 27 किलोमीटर क्षेत्रफल पर देखा गया। इससे बनने वाली तस्वीर का मूल्यांकन करके पता लगाया जाता है कि तूफान की भावी दशा और दिशा क्या हो सकती है। इस अध्ययन में बवंडर और भंवरदार हवा की गहन पड़ताल की गई, उनके व्यवहार को जांचा-परखा गया तथा आम दिनों के वातावरण के साथ इसके नतीजों की तुलना की गई है।

आईआईटी खड़गपुर के वैज्ञानिकों का योगदान
अध्ययनकर्ता दल में आईआईटी, खड़गपुर से जिया अलबर्ट, बिष्णुप्रिया साहू तथा प्रसाद के भास्करन शामिल रहे। उन्होंने कहा कि मॉनसून के मौसम से पहले और बाद में विकसित होने वाले तूफानों के लिए कम से कम चार दिन और पहले सही पूर्वानुमान लगाने में यह नयी पद्धति कारगर हो सकती है। यह तकनीक समुद्री सतह के ऊपर की हलचल को उपग्रह द्वारा पकड़ने से भी तेज है।