साझीदारी की अहमियत

साझीदारी की अहमियत

यूरोप और भारत एक-दूसरे की अहमियत जानते हैं। यही वजह है कि दोनों ही तरफ इस बात का एहसास है कि उच्च स्तरीय संवाद और बातचीत के ज़रिए एक-दूसरे के पक्ष को समझते हुए आगे बढ़ा जाए। पिछले माह जहां ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन और यूरोपीय संघ (ईयू) की प्रमुख उरसुला वान दर लियां …

यूरोप और भारत एक-दूसरे की अहमियत जानते हैं। यही वजह है कि दोनों ही तरफ इस बात का एहसास है कि उच्च स्तरीय संवाद और बातचीत के ज़रिए एक-दूसरे के पक्ष को समझते हुए आगे बढ़ा जाए। पिछले माह जहां ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन और यूरोपीय संघ (ईयू) की प्रमुख उरसुला वान दर लियां भारत आए वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों तीन देशों के यूरोप दौरे पर हैं।

भारत-यूरोपीय संघ का प्रमुख रणनीतिक साथ ही तीसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार है। यूरोप के लिए भी भारत न केवल एक बड़ा बाजार है बल्कि सप्लाई चेन मजबूत बनाने की कोशिशों का केंद्र भी है। इसलिए यूरोपीय यूनियन और भारत के बीच साझेदारी की बड़ी अहमियत है। यूरोपीय यूनियन और भारत स्वाभाविक सहयोगी हैं।

यूक्रेन पर रूस के हमले ने खतरे को सीधे यूरोप की सीमा तक ला दिया है। चीन अब यूरोप के लिए दूर का खतरा नहीं है, भारत भी ख़ुद को मुश्किल में देख रहा है। चीन को लेकर भारत की चिंता इतनी गंभीर है कि भारत क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) को स्वीकार नहीं करने वाला इकलौता देश बन गया और बीआरआई में शामिल होने से भी भारत ने इनकार कर दिया।

ऐसे में यूरोपीय संघ और भारत को भविष्य की पटकथा मिलकर लिखनी चाहिए। इसके बावजूद कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में यूरोपीय संघ-भारत की साझेदारी में दूरी नजर आ जाती है। भारत ईयू का 10 वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और सामानों के मामले में ईयू के व्यापार में उसका हिस्सा 1.8 प्रतिशत है। ये चीन के आंकड़े 16.1 प्रतिशत से काफ़ी कम है।

दोनों पक्षों के बीच व्यापार के आंकड़े निराशाजनक बने हुए हैं। यूरोपीय संघ और भारत के बीच भू-रणनीति और राजनीति के सवाल पर भी असहमति दिखती है। रूस और यूक्रेन को लेकर दोनों पक्षों के द्वारा अपनाए गए रवैये में यह बात दिखाई देती है। ईयू ने भारत से अनुरोध किया कि वो रूस के हमले की निंदा करने में सख्त रुख़ अपनाए जबकि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में वोटिंग के दौरान अनुपस्थित रहा।

ईयू और भारत को वास्तविक रूप में एक साथ लाने के लिए क्या किया जा सकता है और साथ मिलकर एक भविष्य लिखने की शुरुआत कैसे हो सकती है? ईयू को इस तथ्य को भी मान्यता देनी होगी कि पश्चिमी देश उदारवादी मूल्यों के अकेले अभिभावक नहीं हैं। यूरोप में भारत को लेकर और भारत में यूरोप को लेकर बेहतर समझ को बढ़ावा देने में ज्यादा कोशिश और निवेश करने की जरूरत है।