न्याय की आस

न्याय की आस

लखीमपुर हिंसा और बवाल पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से घटना की पूरी रिपोर्ट मांगी है। फिलहाल मामले की सुनवाई शुक्रवार तक के लिए टाल दी गई है। उच्चतम न्यायालय में सुनवाई शुरू होने से लोगों में राहत व समुचित न्याय की उम्मीद जगी है। इससे पहले कांग्रेस …

लखीमपुर हिंसा और बवाल पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से घटना की पूरी रिपोर्ट मांगी है। फिलहाल मामले की सुनवाई शुक्रवार तक के लिए टाल दी गई है। उच्चतम न्यायालय में सुनवाई शुरू होने से लोगों में राहत व समुचित न्याय की उम्मीद जगी है। इससे पहले कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और एडवोकेट कपिल सिब्बल ने उच्चतम न्यायालय पर सवाल खड़े किए थे। दरअसल मामले को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान ना लिए जाने पर सिब्बल ने एक ट्वीट में हैरानी जताते हुए कहा था कि लोग मारे जा रहे हैं, लेकिन सर्वोच्च अदालत संज्ञान नहीं ले रहा।

उन्होंने देश की सबसे बड़ी अदालत से इस मामले में कार्रवाई के लिए अनुरोध किया था। गुरुवार को प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इसे दो वकीलों की जनहित याचिका (पीआईएल) के तौर पर पंजीकृत किया जाना था और कुछ “गलतफहमी” की वजह से इसे स्वत: संज्ञान के मामले के तौर पर सूचीबद्ध कर दिया गया।

हालांकि तीन दिन पूर्व एक किसान संगठन की याचिका पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने लखीमपुर खीरी की घटना को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया था। अदालत ने टिप्पणी की थी कि जब इस तरह की घटनाएं होती हैं तो कोई भी जान-माल का नुकसान होने की जिम्मेदारी नहीं लेता है। इस घटना ने उत्तर प्रदेश में सियासी भूचाल खड़ा कर दिया है। मामले में नामजद आरोपी केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्र की गिरफ्तारी नहीं होने से भी प्रदेश पुलिस बैकफुट पर है। विपक्ष मांग कर रहा है कि अगर जांच निष्पक्ष करनी है तो गृह राज्य मंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए।

मामले की सेवानिवृत्त न्यायधीश नहीं बल्कि उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायधीश से जांच करवानी चाहिए। सवाल उठ रहे हैं कि विपक्षी दलों को पीड़ितों से मिलने से रोकने में ताकत लगा दी गई जबकि आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई। प्रदेश सरकार की ओर से आज उच्चतम न्यायालय में बताया गया कि सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जज प्रदीप कुमार श्रीवास्तव को पूरे कांड की जांच का जिम्मा सौंपा है।

एक सदस्यीय जांच आयोग को जांच के लिए दो महीने का वक्त दिया गया है। सरकार की ओर से पीड़ित परिवारों को समझौते के जरिए राहत देने की कोशिश गई, परंतु आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई शिथिल ही रही। मामले में प्रभावशाली लोगों के शामिल होने के कारण लोगों में आक्रोश है और सरकार पर पक्षपाती रवैया अपनाने का आरोप लगाया जा रहा है। इसलिए मामले में न्याय के लिए शीर्ष अदालत की ओर देखा जा रहा है।