शीर्ष अदालतों में हिंदी

शीर्ष अदालतों में हिंदी

देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। बुधवार को संसद में चिंता जताई गई कि स्वतंत्रता के 75 वर्ष बीत जाने के बावजूद उच्चतम न्यायालय एवं देश के उच्च न्यायालयों में हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में कार्यवाही नहीं होती है। सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाहियां अनिवार्य रूप से ऐसी भाषा में संपन्न की जा …

देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। बुधवार को संसद में चिंता जताई गई कि स्वतंत्रता के 75 वर्ष बीत जाने के बावजूद उच्चतम न्यायालय एवं देश के उच्च न्यायालयों में हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में कार्यवाही नहीं होती है। सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाहियां अनिवार्य रूप से ऐसी भाषा में संपन्न की जा रही हैं, जो एक प्रतिशत से भी कम लोगों में बोली जाती है।

इस कारण देश के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों से अधिकांश जनता में अनभिज्ञता व गोपनीयता और पारदर्शिता का अभाव रहता है। बड़ी अदालतों में गरीब, किसान, मजदूर आदि कम पढ़े लिखे तबके को अपनी परेशानी बताने का मौका नहीं मिलता है और अपने मुकदमों की कार्यवाही एवं फैसलों के बारे में वकील की जानकारी पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी कह चुके हैं कि भाषायी सीमाओं के कारण वादी को न्याय पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। अंग्रेजी भाषा के प्रयोग के कारण गवाहों को भी परेशान होना पड़ता है, क्योंकि उनमें से अधिकांश को अंग्रेजी भाषा की अच्छी समझ नहीं होती है। संविधान के अनुच्छेद 348 में यह प्रावधान है कि जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी भाषा में होंगी।

हालांकि किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से हिंदी या अन्य राजभाषा को उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा का दर्जा दे सकता है। परंतु न्यायालय के निर्णय, आज्ञा अथवा आदेश केवल अंग्रेजी में ही होंगे जब तक संसद अन्यथा व्यवस्था न दे। साथ ही राजभाषा पर संसदीय समिति ने 28 नवंबर 1958 को संस्तुति की थी कि उच्चतम न्यायालय में कार्यवाहियों की भाषा हिंदी होनी चाहिए। इस संस्तुति को पर्याप्त समय बीत गया है, किंतु इस दिशा में आगे कोई सार्थक पहल नहीं हुई है।

देश में प्रशासनिक और न्यायिक कार्यों में हिंदी के प्रयोग में वृद्धि हो रही है। निचली अदालतों में हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं में काम हो रहा है। संसद में कानून हिंदी भाषा में बनाए जा रहे हैं और पुराने कानूनों का भी हिंदी अनुवाद किया जा रहा है।

अतः उच्चतम न्यायालय को हिंदी भाषा में कार्य करने में कोई कठिनाई नहीं है। राजभाषा हिंदी का प्रयोग जिस तरह से बढ़ रहा है, उससे उम्मीद बढ़ रही है। उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों में भारतीय भाषाओं में कार्यवाही होने की मांग का स्वागत किया जाना चाहिए। इसके लिए विधायी प्रक्रिया जल्द ही शुरू की जानी चाहिए। इससे राष्ट्र भाषा के प्रसार का एक नया अध्याय शुरू होगा।