हल्द्वानी: 60 साल से रावण का पुतला बना रहे शंभू बाबा

हल्द्वानी: 60 साल से रावण का पुतला बना रहे शंभू बाबा

आदित्य प्रकाश पंत, हल्द्वानी। दशहरे के दिन धू-धू कर जलने वाले रावण के पुतले को बनाने का काम अब लगभग अंतिम चरण में पहुंच गया है। 50 फीट ऊंचे पुतले को बनाने वाली टीम के मुखिया शंभू बाबा हैं। शंभू बताते हैं कि पुतला बनाने का काम उनकी तीन पीढ़ी से चल रहा है। आज …

आदित्य प्रकाश पंत, हल्द्वानी। दशहरे के दिन धू-धू कर जलने वाले रावण के पुतले को बनाने का काम अब लगभग अंतिम चरण में पहुंच गया है। 50 फीट ऊंचे पुतले को बनाने वाली टीम के मुखिया शंभू बाबा हैं। शंभू बताते हैं कि पुतला बनाने का काम उनकी तीन पीढ़ी से चल रहा है। आज से लगभग 125 साल पहले उनके दादा स्व. बाबू राम भी इसी जगह पर रावण का पुतला बनाते थे।

दादा के निधन के बाद उनके पिता स्व. राम सिंह ने इस हुनर को सीखा और काम को आगे बढ़ाते हुए रावण का पुतला बनाना शुरू किया। पिता भी अंतिम समय तक हर साल रामलीला में रावण का पुतला बनाते रहे, पिता की मौत के बाद इस काम को शंभू बाबा ने संभाल लिया और वह पिछले 60 सालों से रामलीला मैदान में हर साल रावण का पुतला तैयार करते हैं।

मूलरूप से किच्छा बहेड़ी क्षेत्र सीकरी ब्रहमदेव के महंत शंभू गिरी बाबा महाराज (75) ने बताया कि वह पेशे से मूर्तिकार हैं और अपने माता-पिता के इकलौती संतान हैं। आज से करीब 45 साल पहले उनकी पत्नी का निधन हो गया तब से वह पूरी तरह सन्यासी बन गए और मूर्ति, पुतले आदि बनाने के लिए नई पीढ़ी को सिखाने में जुट गए। आज उनके साथ करीब 20 लोगों की टीम है जो अगली पीढ़ी के लिए पुतला, मूर्ति आदि बनाने के तैयार हो चुकी है।

एक लाख रुपये तक आती है लागत
रावण के 50 फीट ऊंचे पुतले को बनाने में लगभग एक लाख रुपये की लागत आती है। इसमें पुतले में लगने वाली सामग्री और उनके साथ काम कर टीम का खर्चा आदि भी शामिल होता है। अभी शंभू की टीम नैनीताल के लिए तीन, काठगोदाम के लिए दो, चारधाम मंदिर हल्द्वानी के लिए दो, गौलापार के लिए एक और शीशमहल के लिए एक पुतले का निर्माण करने में जुटी है। इन सभी पुतलों का काम अब लगभग अंतिम चरण में पहुंच चुका है। रावण के इस पुतले में बांस, डोरा, सुतली, कागज, तमड़ा, टांट आदि का प्रयोग किया जा रहा है।

युवाओं को बनना चाहिए हुनरमंद
शंभू बाबा ने आने वाली युवा पीढ़ी पर चिंता जताते हुए कहा कि आज के युवाओं में हुनर का बड़ा अभाव है जबकि हुनर इंसान को सक्षम और समृद्ध बनाता है। पहले जमाने के लोग जीवन में कोई न कोई काम ऐसा पकड़ लेते थे, जिससे कि उनको आने वाले समय किसी प्रकार की दिक्कत न हो, लेकिन आज हर युवा नौकरी की चाह में इधर-उधर भटक रहा है। हमारा सनातन धर्म है हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को पढ़ाई के साथ-साथ हुनरमंद भी बनाना चाहिए। इसके अलावा अपने रीति-रिवाज, संस्कृति और धर्म से जोड़ते हुए उन्हें आगे बढ़ाना चाहिए। अगर युवा हुनरमंद होंगे तो हमारा समाज और देश निश्चित ही आगे बढ़ेगा।