बढ़ता वर्चस्व

बढ़ता वर्चस्व

वैश्विक माहौल में विगत एक वर्ष में काफी महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। इन दिनों जर्मनी में जी-7 देशों का शिखर सम्मेलन चल रहा है। यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब रूस-यूक्रेन युद्ध को चलते चार माह से ज्यादा का समय हो चुका है। जी-7 समूह ने रूस पर सख्त रुख अपनाने का …

वैश्विक माहौल में विगत एक वर्ष में काफी महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। इन दिनों जर्मनी में जी-7 देशों का शिखर सम्मेलन चल रहा है। यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब रूस-यूक्रेन युद्ध को चलते चार माह से ज्यादा का समय हो चुका है। जी-7 समूह ने रूस पर सख्त रुख अपनाने का फैसला किया है। एक अमेरिकी अधिकारी ने सोमवार को कहा कि रूस की ऊर्जा कमाई पर अंकुश लगाने के मकसद से रूसी तेल पर कीमत की सीमा को आगे बढ़ाने के लिए जी-7 देश एक समझौते की घोषणा करने वाले हैं।

यह कदम यूक्रेन का समर्थन करने के एक संयुक्त प्रयास का हिस्सा है, जिसमें रूसी सामानों पर शुल्क बढ़ाना और युद्ध का समर्थन करने वाले सैकड़ों रूसी अधिकारियों और संस्थाओं पर नए प्रतिबंध लगाना शामिल है। साथ ही सम्मेलन में की गई प्रारंभिक घोषणाओं में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकासशील देशों को छह खरब डॉलर की ढांचागत सहायता शामिल है। इसे चीन की बैल्ट एंड रोड- योजना के प्रति पश्चिमी देशों के जवाब के रूप में देखा जा रहा है। चीन पर यह आरोप रहा है कि वह खरबों डॉलर की बैल्ट एंड रोड योजना के माध्यम से कम आय वाले देशों को मंहगे ऋणों के जाल में फंसा रहा है।

जी-7 दुनिया की सात सबसे बड़ी विकसित और उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है। जिसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं। पहले यह छह देशों का समूह था। जिसकी पहली बैठक 1975 में हुई थी। इस बैठक में वैश्विक आर्थिक संकट के संभावित संसाधनों पर विचार किया गया था। फिर इस समूह में कनाडा शामिल हो गया और इस समूह के सदस्यों की संख्या सात हो गई। हालांकि भारत इस समूह का सदस्य नहीं है।

परंतु चीन की लगातार विकराल होती चुनौती का प्रभावी तोड़ निकालने के लिए विकसित औद्योगिक देशों को अपना दायरा विस्तृत करने की ज़रूरत महसूस हो रही है। ऐसी कवायद में भारत प्रमुख साझीदार के रूप में उभरा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सम्मेलन में विशेष रुप से आमंत्रित हैं। जी-7 के साथ बढ़ती भारत की सक्रियता ने पश्चिम के साथ पहले से ही बढ़ती उसकी सहभागिता को एक नया क्षितिज दिया है।

भारत भी उन देशों के साथ रिश्तों की पींगें बढ़ा रहा है। यही कारण है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पश्चिम के साथ भारत की प्रगाढ़ता फिलहाल सबसे उच्च स्तर पर है। जी-7 में भारत की मौजूदगी, उसकी अंतर्निहित शक्ति के लिए किसी अनुपम उपहार से कम नहीं है। उसकी इस अंतर्निहित शक्ति को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए।