कोरोना और अर्थव्यवस्था

कोरोना और अर्थव्यवस्था

कोरोना वायरस से अभी भी कई देश जूझ रहे हैं। भारत भी ऐसे देशों में है जिसने कोरोना की मार झेली। महामारी ने आदमी की सेहत को ही नुकसान नहीं पहुंचाया बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी पीछे धकेल दिया। महामारी ने देश में हो रहे संरचनात्मक विकास की दिशा पर वार किया है। भारतीय …

कोरोना वायरस से अभी भी कई देश जूझ रहे हैं। भारत भी ऐसे देशों में है जिसने कोरोना की मार झेली। महामारी ने आदमी की सेहत को ही नुकसान नहीं पहुंचाया बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी पीछे धकेल दिया। महामारी ने देश में हो रहे संरचनात्मक विकास की दिशा पर वार किया है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पिछले दिनों वर्ष 2021-2022 के लिए मुद्रा और वित्त पर जारी रिपोर्ट में कहा कि महामारी से हुए नुकसान से पूरी तरह उबरने में भारतीय अर्थव्यवस्था को 12 साल लग सकते हैं।

रिपोर्ट में कोरोना महामारी के प्रभाव का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में प्रस्तावित सुधारों का ब्लूप्रिंट आर्थिक प्रगति के सात पहियों अर्थात् समग्र मांग, समग्र आपूर्ति, संस्थानों, मध्यस्थों और बाजारों, समष्टि आर्थिक स्थिरता और नीति समन्वय, उत्पादकता और तकनीकी प्रगति, संरचनात्मक परिवर्तन और धारणीयता के इर्द-गिर्द घूमता है।

रिपोर्ट अर्थव्यवस्था के समक्ष मौजूद सभी खतरों को न केवल चिह्नित करती है बल्कि उन्हें रेखांकित भी करती है। रिपोर्ट में कहा गया कि महामारी के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग 52 लाख करोड़ रुपये के उत्पादन का नुकसान हुआ है। अगर भारत अभी से सालाना 7.5 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल करना शुरू कर दे तो उसे कोविड-19 के कारण हुए समस्त नुकसान से राहत पाने में 2034-35 तक का वक्त लगेगा।

गौरतलब है कि महामारी ने वैश्विक और भारतीय अर्थव्यवस्था पर जो असर डाला वह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), बेरोजगारी तथा अन्य आर्थिक आंकड़ों में आसानी से देखा जा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था को भविष्य में जो जरूरी गति चाहिए वह राजकोषीय नीति से हासिल करनी होगी। महत्वपूर्ण है कि दो वर्ष बीतने के बाद कारोबार तो सुधरे हैं लेकिन आम परिवारों की हालत नहीं सुधरी है।

महामारी के कारण आम परिवारों के पूंजी निर्माण में तेजी से गिरावट आई है। विश्लेषण किया जाना चाहिए था कि महामारी के चलते तकनीक और स्वचालन का चलन बढ़ने से भारत में रोजगार सृजन को किस तरह के खतरे उत्पन्न हुए हैं। रिपोर्ट की खास बात है कि उसने सरकार और काफी हद तक केंद्रीय बैंक के सामने मौजूदा मुद्दों का सही ढंग से आकलन किया।

देखना होगा कि क्या सरकार इन बिंदुओं को हल करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा सकती है। रिपोर्ट में उल्लेखित ढांचागत समस्याओं को तत्काल हल करने की आवश्यकता है। चूंकि डिजिटलीकरण और ई-कॉमर्स, स्टार्टअप, अक्षय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में नए निवेश के बढ़ते अवसरों को देखते हुए भारत आर्थिक विकास की पटरी पर धीरे-धीरे लौट सकता है।