जलवायु कूटनीति

जलवायु कूटनीति

दुनिया जलवायु आपदा के प्रभाव से त्रस्त है। वैश्विक औसत तापमान में लगातार वृद्धि के प्रभाव हमारे सामने हैं जैसे- बाढ़, ग्लेशियरों का सिकुड़ना, समुद्र-स्तर का बढ़ना, तूफ़ान, जंगल में आग, वर्षा के स्वरुप में बदलाव, सूखा और अकाल आदि। नासा के अध्ययन के मुताबिक 97 प्रतिशत वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि जलवायु …

दुनिया जलवायु आपदा के प्रभाव से त्रस्त है। वैश्विक औसत तापमान में लगातार वृद्धि के प्रभाव हमारे सामने हैं जैसे- बाढ़, ग्लेशियरों का सिकुड़ना, समुद्र-स्तर का बढ़ना, तूफ़ान, जंगल में आग, वर्षा के स्वरुप में बदलाव, सूखा और अकाल आदि। नासा के अध्ययन के मुताबिक 97 प्रतिशत वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान बढ़ने का कारण मनुष्य स्वयं ही है। भारत एक उभरती अर्थव्यवस्था, बाजार और विश्व का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है।

जानकारों का मानना है कि भारत जलवायु कूटनीति के संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। दुनिया भर के वैज्ञानिकों और नीति-निर्माताओं के बीच आम सहमति है कि जलवायु परिवर्तन न केवल अंतर्राष्ट्रीय शांति को प्रभावित करता है बल्कि यह राष्ट्रों की सुरक्षा के लिए भी बड़ा खतरा है। पिछले 50 वर्षों में पर्यावरण की चुनौतियों के प्रति बढ़ती जागरुकता के कारण राष्ट्रीय पर्यावरण एजेंसियों और वैश्विक पर्यावरण कानून को बढ़ावा मिला है। इस बीच स्वीकार किया गया कि आर्थिक विकास, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक विकास एक दूसरे पर निर्भर हैं।

जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों को महसूस करते हुए 2015 में संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज के तहत सदस्य राष्ट्रों के संयुक्त नेतृत्व ने पेरिस समझौता साइन किया। पेरिस समझौता सभी 197 राष्ट्रों के स्वैच्छिक राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के आधार पर जलवायु परिवर्तन के संकट को टालने की कोशिश करता है। भारत के एनडीसी के अनुसार सन 2030 तक तीन लक्ष्य हैं। एनडीसी स्पष्ट रूप से हमें बताता है कि जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हमें बड़े स्तर पर नई टेक्नोलॉजी और कम कार्बन वाले तरीकों को अपनाना होगा। परंतु सच्चाई यह है कि हर देश संपूर्ण दुनिया की जगह अपने संकीर्ण हित को देख रहा है।

चीन आज दुनिया का सबसे बड़ा प्रदूषक होने के बावजूद उत्सर्जन में कटौती करने के लिए प्रतिबद्ध नहीं है। देशों के हित और दुनिया का हित, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए, एक सार्थक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए नए तंत्र का निर्माण किया जाए। तकनीक से जुड़ी बाधाओं को पहचानना होगा और उन पर काम करना होगा खासकर उन तकनीकों के लिए जो बहुत ज़रूरी हैं। आवश्यक है कि भारत जलवायु परिवर्तन को अपनी विदेश नीति में प्राथमिकता दे और इसे केवल पर्यावरणीय या आर्थिक दृष्टि से न देखकर इसके रणनीतिक महत्व को भी पहचाने। भारत अपनी ‘प्रथम पड़ोस’ की नीति के माध्यम से पड़ोसी देशों की ओर ध्यान देकर जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है।

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