बिहार के इस गांव में ‘हिंदू’ मनाते हैं ‘मुहर्रम’,100 साल से निभा रहे पूर्वजों का किया वादा

बिहार के इस गांव में ‘हिंदू’ मनाते हैं ‘मुहर्रम’,100 साल से निभा रहे पूर्वजों का किया वादा

पटना। इस्‍लाम में मुहर्रम का बड़ा ही महत्‍व है। इसे मुस्लिम समुदाय हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मनाते हैं। वे पैगंबर मुहम्‍मद के छोटे नवासे थे। इस बार 31 जुलाई से मुहर्रम की शुरुआत हुई है, जिसकी 10वीं तारीख को यौम-ए-आशूरा कहा जाता है। इस दिन इमाम हुसैन की शहादत को …

पटना। इस्‍लाम में मुहर्रम का बड़ा ही महत्‍व है। इसे मुस्लिम समुदाय हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मनाते हैं। वे पैगंबर मुहम्‍मद के छोटे नवासे थे। इस बार 31 जुलाई से मुहर्रम की शुरुआत हुई है, जिसकी 10वीं तारीख को यौम-ए-आशूरा कहा जाता है। इस दिन इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मुस्लिम समुदाय मातम मनाता है। मुस्लिम समुदाय को आपने अक्‍सर मुहर्रम मनाते देखा होगा, लेकिन बिहार में एक गांव है, जहां हिंदू समुदाय के लोग भी मुहर्रम मनाते हैं।

बिहार के हसनगंज प्रखंड के जगरनाथपुर पंचायत का हरिपुर गांव साम्प्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल पेश कर रहा है। अपने पूर्वजों द्वारा किए गए वादे को निभाने के लिए आज भी हसनगंज के महमदिया हरिपुर में हिंदू समुदाय के लोग मुहर्रम मनाते हैं। इसको लेकर करीब 1200 की हिंदू आबादी वाला यह गांव आज भी सुर्खियों में है। बताया जाता है कि इस गांव का हिंदू समुदाय सौ वर्षों से भी अधिक समय से नियम और निष्ठा के साथ मुहर्रम मनाते आ रहे हैं। मुहर्रम को लेकर सभी रीति और परंपराओं का भी बखूबी पालन किया जाता है।

इमाम हुसैन का जयकारा और निशान खड़ा करने के साथ फातिहा भी पढ़ा जाता है। इस दौरान हिंदू समुदाय के लोग झरनी गाते हैं और मजार पर चादरपोशी भी करते हैं। सबसे खास कि मुहर्रम में बड़ी संख्या में हिंदू महिलाएं भी शामिल होती हैं। बता दें कि महमदिया हरिपुर गांव में स्थित स्व. छेदी साह का मजार है। इस गांव में तकरीबन सौ वर्षों से मुहर्रम मनाने की परंपरा चली आ रही है। ग्रामीण बताते हैं कि पूर्वजों द्वारा किए गए वादे को निभाते हुए यह परंपरा निभाई जा रही है। उम्‍मीद जताई जाती है कि आनेवाली पीढि़यां भी यह परंपरा बरकरार रखेंगी।

दरअसल इस गांव में पहले वकील मियां नाम के एक शख्स रहते थे। अपने बेटे के इंतकाल के बाद वो गांव छोड़कर चले गए। जाने से पहले उन्‍होंने अपने मित्र छेदी शाह को गांव में मुहर्रम मनाने को कहा था। चूंकि यह गांव हिंदू बहुल इलाका है और 1200 की आबादी वाले इस गांव में वकील मियां के जाने के बाद कोई मुस्लिम परिवार नहीं बचा है। ऐसे में उनसे किए गए वादे को निभाते हुए इस गांव में हिंदू ही मुहर्रम मनाते आ रहे हैं।

महमदिया हरिपुर गांव में हिंदू समुदाय के लोग मुस्लिमों की तरह ही मुहर्रम मनाते हैं। बड़ी संख्या में हिंदू महिलाएं भी इसमें शामिल होती हैं। हिंदू समुदाय के लोग मजार पर चादरपोशी करते हैं। इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए नारे भी लगाए जाते हैं और फातिहा भी पढ़ा जाता है। इतना ही नहीं, पूरे गांव में ताजिये का जुलूस भी निकाला जाता है। गंगा जमुनी तहजीब वाले इस गांव के लोगों का कहना है कि हम सभी मिल जुलकर यहां मुहर्रम मनाते हैं. इसकी चर्चा दूर-दूर तक होती है। पिछले दो वर्ष से कोरोना के कारण यह परंपरा सादे ढंग से निभाई गई। इस बार फिर से पूरे पारंपरिक तरीके से मुहर्रम मनाया जा रहा है।

बता दें कि करीब 1200 आबादी वाले हिन्‍दू बहुल गांव और इसके आसपास कई किलोमीटर तक कोई भी मुस्लिम परिवार नहीं है, लेकिन पूर्वजों द्वारा किया गए वादे को निभाते हुए मुहर्रम मनाने की यह परंपरा आज भी जारी है।

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