बरेली: अनियमित दिनचर्या व विटामिन डी की कमी से युवाओं को हो रही गठिया

बरेली: अनियमित दिनचर्या व विटामिन डी की कमी से युवाओं को हो रही गठिया

  बरेली, अमृत विचार। दो दशक पहले तक गठिया को बुजुर्गों की बीमारी माना जाता था,लेकिन अब यह युवाओं में भी आम हो चुकी है। यह समस्या कितनी व्यापक है, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि ओपीडी में पहुंचने वाले 60 फीसद लोग अर्थराइटिस की समस्या लेकर ही डाक्टर के …

 

बरेली, अमृत विचार। दो दशक पहले तक गठिया को बुजुर्गों की बीमारी माना जाता था,लेकिन अब यह युवाओं में भी आम हो चुकी है। यह समस्या कितनी व्यापक है, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि ओपीडी में पहुंचने वाले 60 फीसद लोग अर्थराइटिस की समस्या लेकर ही डाक्टर के पास पहुंच रहे है। विशेषज्ञों के अनुसार भारतीय जीन में वैसे भी विटामिन डी अवशोषित करने की क्षमता कम है। 70 फीसदी लोगों में कैल्शियम की भी कमी है। कुल मिलाकर 60 फीसदी युवा ऐसे हैं जिनकी हड्डियां उम्र से पहले ही बूढ़ी हो चुकी हैं।

जिला अस्पताल के हड्डी रोग विशेषज्ञों के अनुसार जिंदगी जीने के तौर-तरीके बदलने का सीधा असर हड्डियों पर पड़ रहा है। जोड़ों के दर्द के इलाज में दवाएं बेअसर हो रही हैं। खानपान में पौष्टिकता की कमी से शरीर में कैल्शियम और विटामिन डी की जरूरत पूरी नहीं हो पा रही है। ऊपर से हार्मोन की गड़बड़ी ने गठिया का भी शिकार बना दिया है। उस रुमेटाइड अर्थराइटिस के भी मरीज लगातार बढ़ रहे हैं, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली खुद अपने खिलाफ काम करने लगती है। युवाओं को कमर के गठिया से सबसे ज्यादा जूझना पड़ रहा है। कार्टिलेज खराब होने से घुटना और कूल्हा प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ने के मामले भी बढ़ रहे हैं। गलत खानपान शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ा रहा है जिसकी वजह से जोड़ों में सूजन आ रही है।

हड्डियों को सलामत रखना  है तो अपनाएं नियमित जीवनशैली
बरेली आर्थोपेडिक एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डा. विनोद पागरानी ने बताया कि अर्थराइटिस से बचने के लिए युवाओं व अन्य उम्र के मरीजों को नियमित व्यायाम, प्राणायाम, तले भुने भोजन से दूरी बनाना चाहिए। अर्थराइटिस में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता ही जोड़ों पर हमला करने लगती है। उन्होंने बताया कि गठिया दो प्रकार की होती है, जिसमें 45 से अधिक उम्र वालों को रेड फ्लैग अर्थराइटिस व छोटे बच्चों समेत युवाओं में रेड फ्लेग अर्थराइटिस होती है। उन्होंने बताया कि निजी अस्पतालों की ओपीडी में पहुंचने वाले 60 फीसद मरीज अर्थराइटिस की शिकायत लेकर ही पहुंचते है। इसके लिए नियमित जीवनशैली के साथ ही समय पर डाक्टरों से परामर्श व उपचार से राहत मिल सकती है

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