बरेली: जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास केंद्र में कार्यक्रम का आयोजन, वीर सपूतों को किया गया सम्मानित

बरेली: जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास केंद्र में कार्यक्रम का आयोजन, वीर सपूतों को किया गया सम्मानित

बरेली, अमृत विचार। अब से 23 साल पहले भारत माता के वीर सैनिकों ने जो अदम्य साहस का काम किया उसने कारगिल की चोटी पर कब्जा जमाए बैठे दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए। ऐसे वीर सपूतों को सम्मानित करने के लिए जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास केंद्र में कार्यक्रम का अयोजन किया गया। कार्यक्रम …

बरेली, अमृत विचार। अब से 23 साल पहले भारत माता के वीर सैनिकों ने जो अदम्य साहस का काम किया उसने कारगिल की चोटी पर कब्जा जमाए बैठे दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए। ऐसे वीर सपूतों को सम्मानित करने के लिए जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास केंद्र में कार्यक्रम का अयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिला सैनिक कल्याण बोर्ड के अधिकारी कर्नल राधवेंद्र सिंह राधव रहे।

इस मौके पर उन्होंने बताया जिस तरह से विपरीत परिस्थितियों में हमारे देश के वीर जवानों ने कारगिल पर कब्जा कर दुश्मनों के इरादों को नेस्तानाबूत कर चोटी पर कब्जा पाया। वह ताकत केवल भारतीय सेना के ही जवानों में हैं। कार्यक्रम में मौजूद कारगिल युद्व के गवाह पूर्व सैनिकों को सम्मानित किया गया।

वहां मौजूद कारगिल युद्व का हिस्सा रहे प्रमोद उपाध्याय ने बताया कारगिल चोटी पर मौसम विषम रहता है। हर समय बर्फ पढ़ने के कारण कोई वहां नहीं रहता है। इस बीच 23 साल पहले पाकिस्तान की सेना ने आतंकवादियों के साथ मिलकर कारगिल पर कब्जा कर लिया। वह लोग पूरे इंतजाम से मौजूद थे। पहाड़ी से नीचे मार करना आसान थी।

21 मई को जब सेना को पता चला तो चोटी को दुश्मनों से छुड़ाने के लिए जंग छेड़ दी। चोटी से दुश्मन उनकी हर गतिविधी पर नजर रखे हुए थे। 21 मई से शुरु हुआ युद्व 26 जुलाई तक चला। सेना के साहस के आगे पाकिस्तान फौज व आतकंवादियों ने घुटने टेक दिए। 26 जुलाई को भारत माता के वीर सपूतों ने चोटी पर कब्जा कर अपना तिरंगा झंडा फहरा दिया। सुबेदार सुभाष बाबू ने बताया जंग में करीब 510 जवान शहीद हुए और1300 जवान घायल हो गए। उसके बाद भी उन लोगों ने हार नहीं मानी।

सबसे कम उम्र के जवान को मिला परमवीर चक्र
युद्व के दौरान दुश्मनों को भारत माता के वीर जवान मुह तोड़ जवाब दे रहे थे। सबसे कम उम्र के जाट रेजिमेंट के सिपाही योगेंद्र यादव ने अपने सीने पर 18 गोलियां खाकर दुश्मनों को नाको चने चबा दिए। उनके इस अदम्य साहस के लिए परमवीर चक्र से नवाजा गया।

साथियों के शव देखकर खौला खून
जिस समय युद्व चल रहा था। उस समय की परिस्थितियां दुश्मन खेमें के पक्ष में थी। वह पूरी तैयारी से उन पर घात लगाकर बैठा था। चोटी की खड़ी चढ़ाई उस पर से दुश्मनों की ताबड़तोड़ गोलियों की बरसात ने कत्लेआम मचा रखा था। अपने साथियों के शव देखकर सेना का खून खौल उठा था।

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