बरेली के स्वतंत्रता सेनानी खान बहादुर

बरेली के स्वतंत्रता सेनानी खान बहादुर

ये बरेली के स्वतंत्रता सेनानी और हाफ़िज़ रहमत खान के पोते नवाब खान बहादुर की कब्र है। मुग़ल सल्तनत पेज के मेम्बर आबिद बेग ने हमे बताया की इनको जो बेड़ियां पहना कर फांसी दी गयी थी उनके जिस्म में बंधी बेड़ियों के साथ उन्हें बरेली जेल में दफना दिया गया था वो बेड़ियां आज …

ये बरेली के स्वतंत्रता सेनानी और हाफ़िज़ रहमत खान के पोते नवाब खान बहादुर की कब्र है। मुग़ल सल्तनत पेज के मेम्बर आबिद बेग ने हमे बताया की इनको जो बेड़ियां पहना कर फांसी दी गयी थी उनके जिस्म में बंधी बेड़ियों के साथ उन्हें बरेली जेल में दफना दिया गया था वो बेड़ियां आज भी मज़ार के बाहर दिखती है। और ये नवमहल्ला मस्ज़िद है जहां खान बहादुर ने क्रांतिकारियों को इकठ्ठा किया था जिसे 1857 क्रांति में अंग्रेजों ने ढहा दिया था बाद में इसकी दोबारा तामीर की गई।

इसी महीने 7 मई 1858 को बरेली की जंग लड़ी गई। 1857 की क्रांति दिल्ली मेरठ से होते हुए बरेली पहुच चुकी थी। मुग़ल कमांडर और रोहिल्ला नवाब हाफ़िज़ रहमत खान के पोते खान बहादुर खान ने भी अंग्रेजों पर हमला कर दिया ब्रिटिश सैनिकों को बरेली छोड़कर भागना पड़ा। नवाब बहादुर खान ने फिर से बरेली अपने कब्जे में लिया था। लेकिन अंग्रेजों ने जल्दी ही 7 मई 1858 को एक बड़ी ब्रिटिश सैन्य टुकड़ी बरेली की ओर भेज कर खान बहादुर खान पर हमला कर दिया।

इस जंग में हजारों क्रांतिकारी मारे गए बरेली पर अंग्रेजों का क़ब्ज़ा हो गया आख़िरकार खान बहादुर खान को भी पकड़ लिया गया अंग्रेजों ने उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया। अपने दादा हाफिज रहमत खान की तरह खान बहादुर भी अंग्रेजो से लड़ते हुए शहीद हो गए। अफसोस ये है इतिहास के पन्नों से इनकी क़ुर्बानियों को गायब कर दिया गया। हाल ये है कि खुद बरेली के लोगो को ही अपने पुरखों की शहादत के बारे मे नही पता…

17 रमज़ान ये वो अज़ीम दिन है जब इस्लाम की ऐतिहासिक जंग जंग-ए-बदर लड़ी गयी। यह जंग कुफ्फार ए कुरैश अबु ज़हल,अबू सुफियान और हज़रत मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) के सहाबा के बीच हुई थी। इस जंग में सिर्फ 2 घोड़े और 70 ऊँट के साथ 313 सहाबी, कुफ़्फ़रो पर भारी पड़े थे। हज़रत हमजा रज़ि. और अली रज़ि. मुसलमानों को लीड कर रहे थे। हज़रत अली ने अकेले 36 दुश्मनों को ठिकाने लगा दिया था जबकि अब्दुल्लाह इब्न मसूद रज़ि के हाथों अबु जहल मारा गया। इस जंग में 14 सहाबी भी शहीद हुए।
ये वो वक़्त था जब अल्लाह की रहमत जमीन पर उतर आई थी।

अल्लाह के फ़रिश्ते कुफ्फारो पर कहर बनकर टूटे थे। इस जंग में मुसलमानों की फतह हुई अबु सुफियान बच गए और वापस क़ुरैश चले गए।ये वही वक़्त था जहाँ से यहूदी, मुसलमानों के खुले दुश्मन हो गए। यहूदी इस इंतेज़ार में थे कि कुफ़्फ़ार की फौज़ आसानी से चंद मुसलमानों को खत्म कर देगी पर ऐसा नही हुआ। यहूदियों को दुख हुआ और अबू सूफ़ियासन से जा मिले और इनके ग़म में मातम भी मनाया। बाद में इस्लाम की बढ़ती ताक़त देख अबु सुफियान ने इस्लाम कुबूल कर लिया था आगे चलकर अबु सुफियान के पोते यज़ीद ने ही कर्बला की जंग में हज़रत हुसैन रज़ि को शहीद कर दिया था

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