लखीमपुर-खीरी: हर साल बसते और उजड़ते हैं नदी किनारे के ग्रामीण

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लखीमपुर-खीरी, अमृत विचार। तराई जिले में बहने वाली नदियां ग्रामीणों के लिए अभिशाप बनती जा रही है। बरसात में नदियों के रूख बदलने से नदी के किनारे के ग्रामीण हर साल उजड़ते और फिर बसते हैं। इससे उन्हें आर्थिक नुकसान तो होता ही है। साथ ही में उनकी जान भी जोखिम में रहती है। उनकी …

लखीमपुर-खीरी, अमृत विचार। तराई जिले में बहने वाली नदियां ग्रामीणों के लिए अभिशाप बनती जा रही है। बरसात में नदियों के रूख बदलने से नदी के किनारे के ग्रामीण हर साल उजड़ते और फिर बसते हैं। इससे उन्हें आर्थिक नुकसान तो होता ही है। साथ ही में उनकी जान भी जोखिम में रहती है। उनकी जमीनें नदी निगल लेती हैं। सरकारी मदद भी उन तक नहीं पहुच पाती।

भारत नेपाल सीमा पर बहने वाली मोहाना नदी ने सीमा क्षेत्र का पूरा भूगोल ही बदल दिया है। दस साल के भीतर नदी ने कटान कर सूरतनगर, चौगुरजी सहित करीब एक दर्जन मजरा गावों का असित्व ही समाप्त कर दिया। नदी ने कटान कर चौगुरजी और डॉक्टर घाट को नेपाल की दिशा में छोड़ दिया और अब वह इन्दरगर, रननगर आदि गांवों की ओर कटान कर तेजी से रुख कर रही है।

बरसात समाप्त होने के बाद जब नदी की धार कम होती है तब वह अपना रुख बदल देती है। इस पर कटना व बाढ़ पीड़ित दोबारा बसते तो हैं, लेकिन बरसात आते ही नदी के रूख बदलने से उन्हें घर द्वार फिर छोड़ना पड़ता है। यही हाल शारदा और घाघरा नदी के किनारे बसे गांवों के ग्रामीणों का है।

धौरहरा क्षेत्र के रमियाबेहड़ ब्लाक के रामनगर बगहा, मोटे बाबा, गोडियन पुरवा, बिंजहा, बाछेपारा, ईसानगर के लौकाही मल्लापुर, पोखरा, कैरातीपुरवा, बेलागढ़ी, ओझापुरवा में घाघरा नदी तो वही मिश्रगांव, जमदरी, रैनी, खनवापुर, खड़वा, चहमलपुर सहित कई गांवों में शारदा नदी तबाही मचा रही है। शारदा और घाघरा के लगातार रूख बदलने से ग्रामीण परेशान है। उन्हें हरबार उजडना और बसना पड रहा है।

मोहाना नदी का जल स्तर तो कम हो गया है, लेकिन नदी का कटान तेज है। नदी तेजी से कटान कर इंदर नगर पुरबिया बस्ती की तरफ बढ़ रही है। नदी से गांव की दूरी करीब पांच मीटर ही रह गयी है। इससे ग्रामीण दहशत में है। उन्हें घर मकान नदी में समाने की चिंता सताने लगी है। ग्रामीणों की माने तो यदि नदी इसी तरह कटान कर आगे बढ़ती रही तो सूरतनगर की तरह पुरबिया बस्ती का भी नामोनिशान मिट जाएगा।

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