बरेली: अधिकारियों में मची खलबली, पेड़ों को काटना बताया मजबूरी
बरेली, अमृत विचार। मिनी बाईपास पर रोडवेज बस अड्डा के लिए प्रस्तावित भूमि के हरे पेड़ों को काटने के विरोध के बाद कई मामले सामने आए हैं। पर्यावरण प्रेमियों के विरोध से प्रशासनिक और वन विभाग के अधिकारियों में खलबली मची है। उनकी हड़बड़ी तब सामने आयी, जब प्रभागीय वनाधिकारी भारत लाल ने पर्यावरण प्रेमी …
बरेली, अमृत विचार। मिनी बाईपास पर रोडवेज बस अड्डा के लिए प्रस्तावित भूमि के हरे पेड़ों को काटने के विरोध के बाद कई मामले सामने आए हैं। पर्यावरण प्रेमियों के विरोध से प्रशासनिक और वन विभाग के अधिकारियों में खलबली मची है। उनकी हड़बड़ी तब सामने आयी, जब प्रभागीय वनाधिकारी भारत लाल ने पर्यावरण प्रेमी डा. प्रदीप कुमार को फोन करके बात करने के लिए अपने कार्यालय बुलाया लेकिन डा. प्रदीप अपने घर पर थे, इसलिए उन्होंने अपने साथी मनोसमर्पण मनोसामाजिक सेवा समिति के अध्यक्ष शैलेश कुमार को डीएफओ से मिलने के लिए भेज दिया।
चर्चा में यह बात निकलकर सामने आयी है कि पेड़ों को ट्रांसलोकेट करने के लिए ज्यादा बजट की जरूरत पड़ती। बजट के अभाव में पेड ट्रांसलोकेट नहीं किए गए। इससे यह बात साफ हो गयी कि सागौन के करीब 22 साल पुराने पेड़ों को भी बलि चढ़ाने से बचाया जा सकता था। दूसरी बात सामने आयी कि यह रोडवेज बस अड्डा मुख्यमंत्री की प्राथमिकता में शामिल है, इसलिए प्रशासनिक अधिकारियों का बस अड्डा का निर्माण शुरू कराने के लिए पेड़ों का कटान कराकर भूमि खाली कराने का भी दबाव था। यदि अधिकारी चाहते तो हरे पेड़ों को कटने से बचा सकते थे।
खट्रांसलोकेट प्रक्रिया से बचने को काटे हरे पेड़
बरेली कॉलेज के विधि विभागाध्यक्ष डा. प्रदीप कुमार अपने कुछ साथियों के साथ पर्यावरण को बचाने के लिए पेड़ों का कटान होने का खुलकर विरोध में उतरे हुए हैं। उन्होंने मिनी बाईपास स्थित भूमि पर काटे जा रहे हरे पेड़ों को बचाने के लिए सोशल मीडिया पर भी मुहिम चलायी है। सेव एनवायरनमेंट नाम से व्हाट्सग्रुप बनाया है। इस ग्रुप से लोगों को जोड़ने के लिए लिंक फेसबुक पर शेयर किया है।
काफी लोग इससे जुड़ गए हैं। डा. प्रदीप ने विरोध और तेज करने के लिए इसी ग्रुप पर पोस्ट शेयर कर कहा है कि सैकड़ों पेड़ों को काटने का फैसला जल्दबाजी में हुआ है। ट्रांसलोकेशन की प्रक्रिया चूंकि खर्चीली और समय लेने वाली थी, इसलिए आनन फानन में पेड़ों को काट डालने का आसान रास्ता चुना गया। जब बजट मिलने पर ट्रांसलोकेशन हो सकता है तो ये कहना कि सागौन ट्रांसलोकेट नहीं होते, यह पूरी तरह झूठ है। सागौन के पेड़ों को बंगलौर में ट्रांसलोकेट करने वाली संस्था जायम प्लांट ट्रांसलोकेशन सर्विसेज फर्म के मालिक जेम्स से फोन पर बात हुई, तब उन्होंने बताया कि 20 से 22 साल तक का सागौन पेड़ आसानी से ट्रांसलोकेट किया जा जाता है। सागौन की उम्र 30 साल होती है, जिसके बाद इसे काटा जा सकता है।

मनोसमर्पण मनोसामाजिक सेवा समिति के पदाधिकारी सोमवार को कमिश्नरी में अपर आयुक्त प्रशासन अरुण कुमार से मिले और उन्हें ज्ञापन सौंपकर हरे पेड़ों को कटने से बचाते हुए बचे पेड़ों को ट्रांसलोकेट कराने की मांग की। ज्ञापन सौंपकर कहा कि हरे पेड़ों को काटना पर्यावरण संरक्षण के हित में नहीं है। बरेली जिले का वन क्षेत्र करीब 0.01 प्रतिशत ही रह गया है। इस दृष्टिकोण से अगर ऐसे कटान होता रहा तो यह पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा हो सकता है। बरेली के विकास के और पर्यावरण संरक्षण के लिए नए बस अड्डे के निर्माण के लिए मिनी बाईपास पर काटे जा रहे पेड़ों के कटान पर रोक लगाने की मांग की। ज्ञापन सौंपने वालों में डा. प्रदीप कुमार, शैलेश कुमार, सुधीर मेहरोत्रा, रजनेश सिंह, प्रतीक के शर्मा, राजेश चौधरी आदि शामिल थे।
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