जरा याद करो कुर्बानी…भुलाई नहीं जाएगी शौर्य और वीरता की मिशाल 

जरा याद करो कुर्बानी…भुलाई नहीं जाएगी शौर्य और वीरता की मिशाल 

बृजेश तिवारी, अल्मोड़ा। उत्तराखंड राज्य को वीरों की भूमि यूं ही नहीं कहा जाता। देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए देवभूमि के वीर सपूत हमेशा आगे रहते हैं। राज्य का सैन्य इतिहास, वीरता और पराक्रम के असंख्य किस्से अपने आप में समेटे हुए है। यहां के शूरवीरों के पराक्रम के किस्से लोगों की जुबां …

बृजेश तिवारी, अल्मोड़ा। उत्तराखंड राज्य को वीरों की भूमि यूं ही नहीं कहा जाता। देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए देवभूमि के वीर सपूत हमेशा आगे रहते हैं। राज्य का सैन्य इतिहास, वीरता और पराक्रम के असंख्य किस्से अपने आप में समेटे हुए है। यहां के शूरवीरों के पराक्रम के किस्से लोगों की जुबां पर ही नहीं बल्कि यहां की मिट्टी और यहां के लोक में रचे बसे हैं। कारगिल युद्ध की वीरगाथा का बात करें तो वह भी देवभूमि के पराक्रम और बलिदान की भावना के बिना अधूरी है। देवभूमि के 75 जाबांजों ने कारगिल के युद्ध देश की माटी की रक्षा के लिए शहीद होकर अपने खून से विजय की लकीर खींच डाली थी।

वर्ष 1999 में हुए कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने अपने अदम्य साहस और शौर्य के बूते पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की सेना को चारों खाने चित्त कर दिया था। इस युद्ध में दुर्गम घाटियों और पहाडिय़ों पर सीमाओं की रक्षा के लिए भारतीय सेना के 526 रणबांकुरों ने अपनी शहादत दी। जिनमें से 75 जाबांज अकेले उत्तराखंड प्रदेश से थे।

इस युद्ध में गढ़वाल रायफल्स के 47 जवान शहीद हुए थे। जिनमें से 41 उत्तराखंड मूल के थे। वहीं कुमाऊं रेंजीमेंट के सोलह जवानों ने अपनी शहादत देकर देश के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अपना नाम दर्ज कराया। कारगिल युद्ध में देश के इन वीर जवानों ने कारगिल, द्रास, मशकोह, बटालिक जैसी दुर्गम घाटियों में दुश्मन को लोहे के चने चबाने को मजबूर कर दिया। कारगिल युद्ध के दौरान उत्तराखंड जैसे प्रदेश छोटे प्रदेश के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि थी कि इस प्रदेश से सर्वाधिक सैनिकों ने कारगिल युद्ध में अपनी शहादत दी। यही कारण है कि आज ऐसा कोई पदक नहीं जिसे उत्तराखंड के जाबांजों ने पाया न हो।

आज उनकी याद में हजारों आंखे नम तो होती हैं, लेकिन प्रदेश का सीना गर्व से चौड़ा भी हो जाता है। देश सेवा के इसी जज्बे के चलते आज भी यहां के युवा सेना में भविष्य बनाने में रूचि रखते है। हर साल आइएमए से पासआउट होने वाले अधिकारियों में से अधिकांश उत्तराखंड से होते हैं। जबकि देश में जब भी कोई विपदा सामने आती है तो यहां के रणबांकुरे अपनी माटी का कर्ज उतारने से पीछे नहीं हटते।

भुलाई नहीं जाएगी शौर्य और वीरता की मिशाल 
अल्मोड़ा। कारगिल युद्ध में प्रदेश के जाबांजों के शौर्य और वीरता के जज्बे को कभी भुलाया नहीं जा सकता। शूरवीरों यह रणगाथा आम आदमी के लिए रोंगटे खड़े कर देने वाली हो सकती है। लेकिन देश के इन रणबांकुरों ने रण में अपनी जान दे दी, लेकिन कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा।

मई 1999 में शुरू कारगिल युद्ध के दौरान 18 ग्रिनेडियर के मेजर राजेश सिंह अधिकारी ने टोटालिंग पर 30 मई को अपनी कंपनी के साथ चढ़ाई शुरू की। 15 हजार फिट की ऊंचाई पर भारी बर्फ में दुश्मन ने उन पर मशीनगन से हमला कर दिया। जख्मी होने के बाद भी मेजर ने दुश्मन के दो बंकर नष्ट किए और प्वाइंट 4590 पर कब्जा किया।

मेजर राजेश को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। स्पेशल फोर्सेज 9 पैरा के नायक बृजमोहन की चार्ली टीम ने एक जुलाई को कारगिल के मशकोह सब सेक्टर पर हमला बोला। बेहतरीन पर्वतारोही बृजमोहन ने ऊंचे बंकर पर सभी दुश्मनों को मार गिराया। इन्हें मरणोपरांत वीरता चक्र से सम्मानित किया गया।

2 राजपूताना राइफल्स के मेजर विवेक गुप्ता ने 12 जून को टोटालिंग चोटी पर बैठे दुश्मनों पर हमला किया। गोली लगने के बाद भी उन्होंने दुश्मनों को मार गिराया और बंकर पर तिरंगा फहरा दिया। इन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से नवाजा गया। द्रास सेक्टर के प्वाइंट 4700 पर सबसे अधिक सैनिकों की शहादत के बाद तीस जून को 2 राजपूताना रायफल्स और 18 गढ़वाल राइफल्स ने रणबांकुरों ने इस चोटी पर हमला किया। 18 गढ़वाल के नायक कश्मीर सिंह, राइफलमैन अनुसूया प्रसाद और कुलदीप सिंह इस दल के प्रमुख हिस्सा थे।

तीनों ने गोलियां खाने के बाद भी दुश्मनों को मार गिराया। तीनों वीरों को मरणोपरांत वीर चक्र और राइफलमैन देवेंद्र को सेना मेडल से पुरस्कृत किया गया। जबकि ट्विन बंप पर फतह के लिए प्राण न्यौछावर करने पर नायक देवेंद्र सिंह को मेंशन इन डिस्पैच से अलंकृत किया गया। इन रणबांकुरों के बलिदान की बदौलत 26 जुलाई 1999 का वह दिन हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया। जिस दिन भारतीय जाबांजों ने अपनी बहादुरी से कारगिल पर तिरंगा फहरा दिया था।

ऑपरेशन विजय में अल्मोड़ा के सात जवानों ने दी शहादत 
देश की सीमाओं की निगहवानी और जरूरत पडऩे पर देश के लिए जान देने का जज्बा अल्मोड़ा जनपद के रणबांकुरों में भी कूट कूट कर भरा है। शौर्य और वीरता की मिशाल रहे कारगिल युद्ध में जिले के सेना व अन्य बलों में तैनात सात जवानों ने अपनी शहादत देकर अपनी माटी का कर्ज चुकाया। इनकी शहादत पर आज भी हर किसी सीना यहां गर्व से चौड़ा हो जाता है।

कारगिल युद्ध में अपनी जान की बाजी लगाने वाले 75 जवानों में से सात जाबांज जवान अल्मोड़ा जिले के रहने वाले हैं। कारगिल शहीदों की इस सूची में कैप्टन आदित्य मिश्रा, हवलदार हरी सिंह थापा, नायक हरी बहादुर घले सेना मेडल, तम बहादुर क्षत्री सेना मेडल, लांसनायक हरीश सिंह देवड़ी, पैराट्रपर राम सिंह बोरा, जवान मोहन सिंह सेना मेडल शामिल हैं। इनमें से वर्तमान में शहीद तम बहादुर क्षत्री, हरी बहादुर घले व हरीश देवड़ी का परिवार ही अल्मोड़ा में रह रहा है, जबकि अन्य लोग बाहर बस गए।

शहीद कैप्टन आदित्य मिश्रा मूल रूप से रानीखेत के निवासी थे। लेकिन उनके पिता रिटायर्ड कर्नल गिरिजा शंकर मिश्रा सपरिवार लखनऊ में बस गए। सेना मेडल सिपाही मोहन सिंह की पत्नी उमा देवी हल्द्वानी, ताड़ीखेत निवासी राम सिंह बोरा की पत्नी बागेश्वर जबकि शहीद हवलदार हरि सिंह की पत्नी सपरिवार देहरादून में बस गई हैं।

देश सेवा में जान देने वाले इन सात जवानों में से तीन के परिवार को हल्द्वानी, अल्मोड़ा और सोमेश्वर मं पेट्रोल पंप आवंटित किए गए हैं। जबकि चार परिवारों ने इसके लिए आवेदन नहीं किया। उन्होंने अन्य सुविधाएं उपलब्ध हैं। जिले के इन शहीदों को सर साल शौर्य दिवस के मौके पर याद किया जाता है।