वज्रपात से देश में हर साल मरते हैं 2000 लोग; एक दहाई मौतें उप्र में

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संजय सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। भारी बारिश, बादल फटने और आकाशीय बिजली गिरने से भारत में हर साल तकरीबन 2000 लोग मौत का शिकार होते हैं। इनमें 200 से ज्यादा लोग उत्तर प्रदेश के होते हैं। बीते पचास वर्षों के दौरान ऐसी घटनाओं में मरने वालों की संख्या दो गुनी हो गई है। बीते …

संजय सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। भारी बारिश, बादल फटने और आकाशीय बिजली गिरने से भारत में हर साल तकरीबन 2000 लोग मौत का शिकार होते हैं। इनमें 200 से ज्यादा लोग उत्तर प्रदेश के होते हैं। बीते पचास वर्षों के दौरान ऐसी घटनाओं में मरने वालों की संख्या दो गुनी हो गई है। बीते वर्ष भारत में इन आपदाओं के परिणामस्वरूप 1400 से ज्यादा लोग मारे गए थे। इनमें 268 लोग अकेले उत्तर प्रदेश के थे।

पिछले दो सालों में भारत में तकरीबन 4300 जिंदगियां अनियमित व आकस्मिक मौसमी घटनाओं का शिकार हुई हैं। मौसम विभाग की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में पूरे भारत में 2876 लोगों की मृत्यु वज्रपात या आकाशीय बिजली गिरने के कारण हुई थी। जबकि इससे पहले 2018 में 2357 लोगों की मौत वज्रपात से हुई थी।

अगर अकेले पिछले साल यानी 2020 के आंकड़ों पर गौर करें तो उस दौरान 1415 लोग भारी बारिश, बादल विस्फोट व वज्रपात का शिकार हुए थे। इनमें से 600 मौतें भारी वर्षा, बाढ़ व बादल फटने, जबकि 815 मौतें आकाशीय बिजली गिरने के कारण हुई थीं।
इनमें अधिकांश घटनाओं का संबंध उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, असम, केरल और तेलंगाना से है। उत्तर प्रदेश को लें तो यहां पिछले वर्ष भारी बारिश, बादल फटने व बाढ़ की घटनाओं में 220 लोगों की मौत हुई थी। जबकि आकाशीय बिजली ने 48 लोगों को काल का ग्रास बनाया था।

मौसम विज्ञानियों का कहना है कि आकाशीय बिजली गिरने की ज्यादातर घटनाएं जुलाई के दूसरे पखवाड़े में होती हैं। लेकिन इस बार ये उससे पहले देखने में आ रही हैं। हर साल लाखों बार बिजली गिरती है। लेकिन ज्यादातर मामलों में विद्युत आवेश बिना नुकसान पहुंचाए जमीन में समा जाता है। वर्ष 2019 में 25-31 जुलाई के दरम्यान बिजली गिरने की 4 लाख से ज्यादा घटनाएं रिकॉर्ड की गई थीं। साल दर साल ये आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। इसी के साथ मौतें भी ज्यादा हो रही हैं।

अगर पिछले कुछ दशकों पर गौर करें तो गत 20 वर्षों में बादल फटने व आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं में तकरीबन 40 फीसद का इजाफा हुआ है। जबकि पचास वर्षों के भीतर मरने वालों का आंकड़ा दूने को पार कर गया है। जहां 1970 तक बादल फटने व बिजली गिरने की घटनाओं में सालाना औसतन 1000 लोग मारे जाते थे। वहीं अब ये आंकड़ा 2000 से ज्यादा का है।

अभी तक प्रायः देश के दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम, पूर्व, उत्तर व उत्तर-पूर्व के हिस्सों में इन घटनाओं का ज्यादा प्रकोप देखने में आता था। मगर इस साल राजस्थान समेत देश का उत्तर- पश्चिमी इलाका भी आकाशीय बिजली की चपेट में आ गया है। विशेषज्ञों की माने तो ऐसे पर्यावरणीय तापमान में निरंतर वृद्धि तथा पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ने के कारण हुआ है। इससे पूरी दुनिया के मौसम चक्र में गड़बड़ी देखने में आ रही है।

इसका परिणाम ये है कि अब मानसून से पहले, बीच में और मानसून के बाद प्रायः सभी ऋतुओं में आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं साल बढ़ गई हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। परिस्थितिकी असंतुलन के कारण समुद्री चक्रवातों की निरंतरता भी दिनोदिन बढ़ रही है। पिछले साल समुद्री सतह के तापमान में अनियमितता के कारण उत्तरी हिंद महासागर में 5 समुद्री चक्रवातों का निर्माण हुआ था। इनमें से निसर्ग और अम्फान ने पश्चमी और पूर्वी भारत में भीषण तबाही मचाई थी।

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