आंदोलन में तेजी

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कृषि कानूनों के विरोध में जारी किसान आंदोलन ने एक बार फिर गति पकड़ ली है। गुरुवार को भीषण गर्मी के चलते टिकरी बॉर्डर पर दो और किसानों की मौत हो गई। अब तक अलग-अलग आंदोलन स्थलों पर करीब 500 किसान जान गंवा चुके हैं। किसानों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता के …

कृषि कानूनों के विरोध में जारी किसान आंदोलन ने एक बार फिर गति पकड़ ली है। गुरुवार को भीषण गर्मी के चलते टिकरी बॉर्डर पर दो और किसानों की मौत हो गई। अब तक अलग-अलग आंदोलन स्थलों पर करीब 500 किसान जान गंवा चुके हैं। किसानों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता के बाद फिलहाल बातचीत बंद है।

किसान दिल्ली की सीमाओं पर 26 नवंबर से आंदोलनरत हैं। अगर 26 जनवरी की घटना को छोड़ दिया जाए तो यह आंदोलन अहिंसक रहा है। अब आंदोलन एक बार फिर हिंसा के साये में है। बुधवार को गाजीपुर सीमा पर आंदोलनरत किसानों और भाजपा समर्थकों के बीच हाथापाई औऱ वाहनों को नुकसान पहुंचाने की घटना हुई। गाजीपुर बॉर्डर पर भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ झड़प मामले में गुरुवार को 200 किसानों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।

वहीं, इस मामले पर किसान संगठनों ने कहा कि केंद्र पिछले सात माह से चल रहे उनके शांतिपूर्ण आंदोलन को बदनाम करने के लिए भाजपा और आरएसएस ने यह पूरी साजिश रची है। संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता जगतार सिंह बाजवा ने भी कहा है कि गाजीपुर की घटना सोची समझी साजिश का परिणाम है।

गाजीपुर सीमा पर हुई इस हिंसा ने आंदोलनकारी किसानों को लपेटे में ले लिया है। इस घटना से एक बार फिर आंदोलन को बदनाम करने की कोशिशें शुरू हो सकती हैं। लालकिले की घटना के बाद भी सीधे तौर पर किसानों को हिंसा का जिम्मेदार ठहरा दिया गया था, साथ ही उनकी नीयत पर भी सवाल उठाए गए थे। किसानों को गाजीपुर सीमा से हटाने की पूरी तैयारी हो गई थी, लेकिन तब किसान नेता राकेश टिकैत की आंखों से निकले आंसुओं ने आंदोलन को संजीवनी दे दी थी।

हालांकि पहले आंसू बहा चुके राकेश टिकैत ने इस बार अपने तीखे तेवर दिखाए हैं। उन्होंने कहा है कि पीछे हटना उनकी डिक्शनरी में नहीं है। जनवरी से लेकर जून बीत गया, लेकिन किसान अपनी मांगों के साथ, वहीं डटे हुए हैं। आरोप हैं कि स्वागत के बहाने आंदोलनकारियों के मंच पर कब्जा करने की साजिश थी। यह वाकई गंभीर बात है।

वैसे भी जब पुलिस जानती है कि वहां आंदोलनकारी जमा हैं, तो फिर भाजपा नेता के स्वागत के लिए वहां कार्यकर्ताओं को एकत्र होने से क्यों नहीं रोका गया। राकेश टिकैत के आरोपों को तुरंत खारिज नहीं किया जा सकता। किसान नेताओं के आरोपों की तह तक जांच होनी चाहिए। सच क्या है, ये तभी सामने आएगा।