रामनगर: ब्रिटिश कालीन स्नानागार उपेक्षा का शिकार

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सिद्धार्थ पपनै, रामनगर। ब्रिटिश सरकार के दौरान कुमाऊं कमिश्नर रहे सर रैमजे ने 1850 में रामनगर को एक तिजारती मंडी के रूप में बसाया था। जब रामनगर को बसाया गया तब उस दौर में नगर में न तो पानी की आपूर्ति थी और न ही बिजली का इंतजाम। ऐसे में लोग कोसी नदी के पानी …

सिद्धार्थ पपनै, रामनगर। ब्रिटिश सरकार के दौरान कुमाऊं कमिश्नर रहे सर रैमजे ने 1850 में रामनगर को एक तिजारती मंडी के रूप में बसाया था। जब रामनगर को बसाया गया तब उस दौर में नगर में न तो पानी की आपूर्ति थी और न ही बिजली का इंतजाम। ऐसे में लोग कोसी नदी के पानी पर ही आश्रित थे। उस दौर में ब्रिटिश हुक्मरानों ने 1926 में जब कोसी नदी से बाढ़ की सुरक्षा के लिए तटबन्ध बनाया तो उसी दौर मे लोगो के स्नान के लिए लल्लू घाट का भी निर्माण किया था।

लल्लू घाट में एक महिलाओं के लिए और एक स्नानागार पुरषों के लिए बनाया गया था। तब इन स्नानागारों में लोग घरों से स्नान करने आया करते थे। और यहीं से नहरों से पीने का पानी अपने घरों को ले जाया करते थे। ब्रिटिश हुक्मरानों के दौर में बनाये गए स्नानागार कोसी किनारे आज भी विद्यमान जरूर हैं।

मगर आज अपनी बदहाली का रोना रो रहे हैं। कहा जा सकता है कि गोरों ने बसाया मगर अपनों ने उसे बिसरा दिया।

सिंचाई विभाग के आधीन दोनो घाट

कभी लल्लू घाट के नाम से विख्यात यह स्थान अब कौशल्या घाट के नाम से जाना जाता है। महिला स्नानागार तो अब जीर्णशीर्ण अवस्था मे पहुंच चुका है। बगल में पुरषों के लिए बना घाट बेशक आज भी प्रयोग में लिया जा रहा है। मगर सिंचाई विभाग के अधीन होने के बाद इसका कोई सुधलेवा नहीं है।

पर्वतीय समाज के लोगों के परिवार के किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो परिजन दस दिनों तक इसी घाट पर तिलांजलि आदि कार्य यहीं करते हैं। गन्दगी से पटे इस घाट पर ही उन्हें तिलांजलि जैसे कार्य मजबूरी में करने पड़ते है। मगर बार बार अवगत कराने के बावजूद इस घाट की स्वच्छता पर विभाग ने कोई ध्यान नही दिया।  घाट में अक्सर चरस गाजा पीने वाले नशेड़ी भी देखे जा सकते हैं। स्थानीय नागरिक अंग्रेजो के समय बनाये इन घाटों के जीर्णोद्धार की मांग हर बार करते हैं मगर विभाग इस ओर पूरी तरह उदासीन है।  सिंचाई विभाग के ईई केसी उनियाल कहते है जल्द इन घाटों को शुन्दर ओर स्वच्छ बनाने का अभियान चलाया जाएगा।

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