उपेक्षित हैं कोरोना से मुकाबला करने वाले विभाग और संगठन
संजय सिंह, अमृत विचार। स्वास्थ्य क्षेत्र में अनुसंधान को सरकार जरूरी महत्व दे रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कोरोना जैसी भयंकर वैश्विक महामारी के बावजूद स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को पर्याप्त बजट नहीं दिया गया। जबकि ये विभाग और इसके तहत काम करने वाला प्रतिष्ठित संगठन इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल …
संजय सिंह, अमृत विचार। स्वास्थ्य क्षेत्र में अनुसंधान को सरकार जरूरी महत्व दे रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कोरोना जैसी भयंकर वैश्विक महामारी के बावजूद स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को पर्याप्त बजट नहीं दिया गया। जबकि ये विभाग और इसके तहत काम करने वाला प्रतिष्ठित संगठन इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च स्टाफ की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं।
बीमारियों और महामारियों की जड़ का पता लगाने और उनसे बचाव एवं उपचार की दवा, टीके एवं उपकरण तैयार करने के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में स्वास्थ्य अनुसंधान नाम से बाकायदा एक विभाग है।
प्रतिष्ठित इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीसीएमआर) इसी के अंतर्गत काम करता है। ये वही संस्थान है जिसने न केवल देश में अनेक बीमारियों की रोकथाम की है। बल्कि कोरोना वायरस से संबंधित सार्स-कोवि 2 वायरस को आइसोलेट कर इनकी टेस्टिंग किट तैयार करने तथा कोवैक्सीन व कोविशील्ड जैसे टीकों की राह आसान बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
लेकिन कोरोना काल में शानदार भूमिका निभाने के बावजूद सरकार ने 2021-22 में स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को केवल 2663 करोड़ रुपये का बजट दिया। जबकि उसने 3312 करोड़ की मांग की थी। इसका नतीजा ये हुआ कि विभाग भी आइसीएमआर की 2957 करोड़ की मांग के मुकाबले केवल 2358 करोड़ रुपये दे सका।
ये पहला मौका नहीं है जब अनुसंधान विभाग को मांग से कम बजट दिया गया है। पिछले कई सालों से यही स्थिति है। लगातार मांग से कम आबंटन के पीछे सरकार का तर्क है कि अनुसंधान विभाग कभी भी आबंटित बजट को खर्च नहीं कर पाता। इसके बावजूद हर साल उसे पहले से कुछ अधिक आबंटन किया जाता है, भले ही वो उसकी मांग से कम रहता हो। पिछले साल कोरोना के बाद विभाग को 2100 करोड़ का विशेष अतिरिक्त आबंटन किया गया था। जिसे मिलाकर पुनरीक्षित आबंटन 4062 करोड़ का हो गया था। लेकिन विभाग 3000 करोड़ ही खर्च कर पाया। इसलिए 2021-22 में आबंटन घटाना पड़ा है।
लेकिन विभाग और उससे जुड़े आईसीएमआर में स्टाफ की कमी को देखते हुए सरकार के ये तर्क उचित नहीं जान पड़ते। दोनों के पास इतना स्टाफ ही नहीं है कि पूरा बजट खर्च कर सकें। स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग में कुल 42 स्वीकृत पद है। लेकिन उसे केवल 24 लोगों से काम चलाना पड़ रहा है। इनमें से 6 लोगों पर दोहरा कार्यभार है। इस तरह कुल 24 पद खाली पड़े हैं।
इसके अलावा डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारियों और सार्स, कोरोना जैसी महामारियों के बढ़ते प्रकोप के चलते स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग ने 74 और पदों की जरूरत सरकार को बताई हुई है। लेकिन सरकार ने इस पर चुप्पी साध रखी है। और तो और आइसीएमआर में भी आदमियों की कमी है। वो भी 876 स्वीकृत पदों के मुकाबले केवल 600 लोगों से कम चला रहा है।
गनीमत ये है कोरोना की पहली लहर के बाद पिछले साल नवंबर में यहां 221 पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई है। लेकिन इस साल दूसरी लहर से पहले मार्च तक ये प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी। संसदीय समिति ने इस पर भी सरकार को आड़े हाथों लिया था और आइसीएमआर को भी नियुक्तियों के बारे में समुचित दिशानिर्देश तैयार करने की ताकीद की थी। स्वास्थ्य अनुसंधान के प्रति भारत सरकार के इस रवैये की संसदीय समिति ने गहरी आलोचना की है। और उससे स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के बजट के साथ ही उसकी कार्मिक क्षमता में माकूल बढोतरी करने को कहा है।
