महिला हिंसा चिंताजनक

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8 मार्च को ही हमने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया लेकिन इस बीच सामने आई संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की यह रिपोर्ट चौकाने वाली है कि दुनिया में 73.60 करोड़ से अधिक महिलाएं शारीरिक और यौन हिंसा का शिकार बनी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस रिपोर्ट पर चिंता जताई है। इस रिपोर्ट में 2008 से …

8 मार्च को ही हमने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया लेकिन इस बीच सामने आई संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की यह रिपोर्ट चौकाने वाली है कि दुनिया में 73.60 करोड़ से अधिक महिलाएं शारीरिक और यौन हिंसा का शिकार बनी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस रिपोर्ट पर चिंता जताई है। इस रिपोर्ट में 2008 से आंकड़ों को एकत्रित किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के खिलाफ विभिन्न तरह की हिंसा किशोरावस्था से ही शुरू हो जाती है। महिलाओं के ऊपर हिंसा का विस्तृत अध्ययन कर बनाई गई रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक तीन में से एक महिला को हिंसा का सामना करना पड़ता है। रिपोर्ट के अनुसार, 15 से 24 आयु वर्ग की अधिकतर महिलाओं को अपने साथी के हाथों ही हिंसा का शिकार होना पड़ा है। डब्ल्यूएचओ के प्रमुख टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने इस रिपोर्ट को जारी करते हुए महिला हिंसा की स्थिति पर बेहद चिंता जताई। उनके अनुसार, मौजूदा कोविड-19 महामारी ने महिलाओं के प्रति हिंसा के हालातों को और अधिक गंभीर बनाने का काम किया है।

दरअसल, लंबे समय से महिलाओं के शोषण के खिलाफ वैश्विक मंचों पर भी आवाज उठती रही है और इसको रोकने के लिए उपाय भी किए गए हैं, इसके बावजूद कोई खास सुधार देखने को नहीं मिला है। यह स्थिति बेहद चिंताजनक तो है ही, सभ्य समाज पर काला धब्बा भी है। एक तरफ तो हम महिलाओं को समान भागीदारी और समान अवसरों की बात करते हैं और दूसरी ओर हमारा समाज ही महिलाओं के साथ हिंसात्मक रवैया अपनाता है तो न्याय कहां है?

रिपोर्ट में बताया गया है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले उन देशों में अधिक हैं, जो निम्न आय वर्ग या गरीबी की श्रेणी में आते हैं। जाहिर है कि जिन देशों का जीवन स्तर बेहतर है, वहां महिला उत्पीड़न कम हैं। ऐसे में यह तथ्य उभरकर सामने आता है कि महिला उत्पीड़न रोकने के लिए हमें जीवन स्तर में सुधार करने की आवश्यकता पर जोर देना होगा। सच तो यह है कि रिपोर्ट में जो आंकड़े सामने आए हैं, वास्तविक स्थिति उससे कहीं अधिक ही होगी, क्योंकि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के अधिकतर मामले सामने नहीं आ पाते हैं।

डब्ल्यूएचओ प्रमुख की इस बात से सहमत हुआ जा सकता है कि कोरोना महामारी को तो वैक्सीन के जरिए रोका भी जा सकता है लेकिन महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को तब तक नहीं रोका जा सकता है, जब तक हम अपने आप में,अपनी सोच में और समाज में परिवर्तन नहीं लाते हैं। इसके लिए हर स्तर पर प्रयास करने की जरूरत है, तभी सफलता संभव है।