Prayagraj : संभल जामा मस्जिद मामले में एएसआई को जवाब दाखिल करने के लिए मिला समय

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Published By Vinay Shukla
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Amrit Vichar, Prayagraj : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संभल की शाही जामा मस्जिद की प्रबंधन समिति द्वारा दाखिल उस याचिका पर सुनवाई की, जिसमें मस्जिद में रंगाई-पुताई और मरम्मत की अनुमति मांगी गई थी। मस्जिद समिति की आपत्तियों पर जवाब दाखिल करने के लिए न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकलपीठ ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को 10 मार्च तक का समय दिया है।

मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान विपक्षी संख्या एक के अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने समिति और सरकार के बीच 1927 के समझौते को चुनौती दी। मालूम हो कि इसी समझौते का हवाला देते हुए समिति ने कहा था कि मस्जिद में मरम्मत और रंगाई-पुताई का अधिकार उसके पास है, ना कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पास। विपक्षियों की ओर से अधिवक्ता ने तर्क दिया कि प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के लागू होने के बाद प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 के तहत दोनों पक्षों के बीच हुआ समझौता मान्य नहीं रह जाता है।

इसके अलावा यह भी कहा गया कि समझौते की शर्तों के अनुसार भी एएसआई को मरम्मत का अधिकार है, ना कि मस्जिद समिति को। अधिवक्ता ने कोर्ट को यह भी बताया कि समिति ने एएसआई से अनुमति लिए बिना स्वयं ही इमारत के अंदर बड़े स्तर पर परिवर्तन किए हैं, जिसमें हिंदू चिन्हों और प्रतीकों को छिपाने के लिए दीवारों और स्तंभों पर रंग- रोगन किया गया है। इसके अलावा कोर्ट ने मस्जिद के मूल नाम पर भी चर्चा की। वर्ष 1927 के समझौते में मस्जिद को 'जुम्मा' मस्जिद कहा गया है, जबकि विपक्षी इसे जामी मस्जिद कहते हैं और समिति के अनुसार यह जामा मस्जिद है।

कोर्ट ने समिति की ओर से दाखिल पुनरीक्षण याचिका पर विचार करते हुए पाया कि उक्त याचिका में समिति ने मस्जिद के लिए 'जामी' शब्द का प्रयोग किया है। हालांकि समिति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी ने बताया कि संभल की निचली अदालत में वादियों द्वारा मस्जिद के लिए 'जामी' शब्द का प्रयोग किया गया है, इसलिए समिति ने भी रजिस्ट्री की आपत्तियों से बचने के लिए हाईकोर्ट के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दाखिल करते समय 'जामी' शब्द का प्रयोग ही किया। अंत में मामले की सुनवाई आगामी 10 मार्च यानी सोमवार को सुबह 10 बजे सुनिश्चित कर दी गई।

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