मौखिक निर्देश पर अधिवक्ता को किया नजरबंद, जिला न्यायाधीश से हाईकोर्ट ने मांगी रिपोर्ट

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला एवं सत्र न्यायाधीश, आगरा के मौखिक निर्देश पर एक 70 वर्षीय अधिवक्ता को नवंबर 2024 में पुलिसकर्मियों द्वारा कथित तौर पर घर में नजरबंद करने पर चिंता जताते हुए संबंधित जिला न्यायाधीश से रिपोर्ट मांगी और यह भी स्पष्ट करने को कहा कि याची को नोटिस देने या उसकी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने के लिए पुलिस को किसने निर्देश जारी किए थे।

न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने 1988 की एक घटना से संबंधित तीन आपराधिक मामलों के आधार पर नोटिस जारी करने के राज्य के औचित्य को भी खारिज करते हुए कहा कि घटना अदालत परिसर में हुई थी, जिसमें याची सहित 40-50 से अधिक अधिवक्ता शामिल थे। यह स्पष्ट है कि याची को मामले में फंसाया गया है। प्रथम दृष्टया बीएनएसएस, 2023 की धारा 168 के तहत नोटिस जारी करना उचित नहीं लगता है, क्योंकि इसके आधार पर याची द्वारा किसी भी संज्ञेय अपराध के होने के आशंका नहीं जताई गई है। 

दूसरी ओर याची ने दावा किया है कि उन्हें बीएनएसएस की धारा 168 के तहत नोटिस देने के बाद 2 घंटे तक उनके घर में नजरबंद रखा गया, जिससे वह प्रशासनिक न्यायाधीश से न मिल सकें। हालांकि राज्य की ओर से बताया गया कि पुलिसकर्मी केवल नोटिस की तामील कराने के लिए याची के घर गए थे। उन्हें किसी भी प्रकार से नजरबंद नहीं किया गया था। कोर्ट ने याची के मामले में गहन जांच की आवश्यकता महसूस की। इसके अलावा पुलिस आयुक्त ने पुलिस की कार्रवाई का स्पष्टीकरण देते हुए कोर्ट को बताया कि एक अन्य अधिवक्ता द्वारा एक पर्ची वितरित की गई थी, जिसमें याची सहित अन्य अधिवक्ताओं द्वारा प्रशासनिक न्यायाधीश से मिलकर कुछ मुद्दों पर चर्चा करने का जिक्र था। 

पुलिस अधिकारियों को आशंका थी कि याची असंवैधानिक गतिविधियां कर सकता है। इसके कारण अधिकारियों ने शांति बनाए रखने के उद्देश्य से बीएनएसएस की धारा 168 के तहत याची के खिलाफ नोटिस जारी किया। अंत में कोर्ट ने इस असामान्य मामले पर आश्चर्य जताते हुए नोटिस को उचित नहीं माना। कोर्ट ने रजिस्ट्रार (अनुपालन) को पूरे मामले पर जिला न्यायाधीश, आगरा से रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए कहा और मामले की सुनवाई आगामी 28 फरवरी को सुनिश्चित कर दी है।

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