शाहजहांपुर: मनरेगा में बजट का टोटा, 50 करोड़ से अधिक की बकायेदारी 

जिले में हैं 2.88 लाख मनरेगा मजदूर, 23.89 करोड़ मजदूरी के शेष

शाहजहांपुर: मनरेगा में बजट का टोटा, 50 करोड़ से अधिक की बकायेदारी 

शाहजहांपुर, अमृत विचार: गांवों से श्रमिकों का पलायन रोकने के लिए शुरू की गई मनरेगा योजना का जिले में हाल खराब है। निर्माण कार्य का 31 करोड़ रुपये और मनरेगा मजदूरों की मजदूरी का 23.89 करोड़ रुपया बकाया चल रहा है। शासन स्तर पर विभाग से कई बार पत्राचार किया जा चुका है, लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि बकाया धनराशि कब तक मिलेगी।

जनपद में 1077 ग्राम पंचायतें हैं, जिनमें गांव के बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए मनरेगा योजना को लागू किया गया है। निर्धारित मजदूरी के साथ ही काम की समय सीमा भी निर्धारित की गई है। गांव में सड़क निर्माण से लेकर मिट्टी कार्य और तालाब आदि कार्य मनरेगा मजदूरों से कराए जाते हैं, ताकि उन्हें काम का अवसर मिलता रहे।

जिले में दो लाख 88 हजार मनरेगा श्रमिक हैं, जिनसे काम तो लिया गया लेकिन उनकी मजदूरी का रुपया शासन स्तर से विभाग के पास नहीं पहुंच गया, यही हाल निर्माण कार्य की सामग्री के लिए भुगतान को लेकर भी निर्माण सामग्री का करीब 31 करोड़ रुपया तीन वर्ष से बकाया चल रहा है।

स्थानीय अधिकारियों के मुताबिक मनरेगा मजदूरों की मजदूरी की देने की लिखापढ़ी जिला स्तर से पूरी कर दी गई है। लेकिन विभाग के पास पैसा नहीं है, जिसके चलते पैसे का भुगतान नहीं हो पा रहा है। शासन को जो पत्राचार मनरेगा सेल की ओर से किया गया है उस पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। अगर यही स्थिति रही तो तब फिर मनरेगा के तहत होने वाले कार्य और ज्यादा प्रभावित होने लगेंगे। साथ ही मजदूरों को मजदूरी के अवसर भी नहीं मिल पाएंगे। ऐसे में उन्हें मजबूरन मजदूरी पाने के लिए दूसरे स्थान पर जाना पड़ेगा।

लगातार घट रहा मनरेगा का क्रेज
जानकारों का मानना है कि इस तरह पैसा फंसने से मनरेगा का क्रेज और घटेगा। पहले ही कम मजदूरी दिए जाने के चलते श्रमिक मनरेगा की जगह प्राइवेट मजदूरी को वरियता दे रहे हैं। अब इस तरह से पैसा फंसने के चलते परिस्थितियां और खराब होंगी। श्रमिकों का रुझान मनरेगा से और घट सकता है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में मनरेगा योजना को लेकर संकट खड़ा हो सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि मनरेगा की स्थिति खराब होने की वजह सरकार की उदासीनता है। सरकार योजना को क्रियान्वित करने पर ध्यान नहीं दे रही है।

हजारों विकास कार्य प्रभावित
समय से मनरेगा में पैसा नहीं आ पा रहा है। ऐसी स्थिति बीते कई साल से बनी रही है। योजना में कभी पैसा आ जाता है और कभी खत्म हो जाता है। श्रमिकों को मजदूरी करने के बाद भी समय से पैसा नहीं मिल पाता है। दूसरी ओर समय से पैसा न आने के चलते वर्तमान में हजारों की संख्या में विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं। इनमें नाला, खड़ंजा आदि का निर्माण कार्य सबसे ज्यादा है। कुछ चक मार्ग बनने हैं तो कुछ तालाबों की खुदाई कराई जानी है। पैसा न होने की वजह से रेत, बजरी, सीमेंट, मौरंग, पत्थर आदि का करोड़ों रुपया ठेकेदारों का विभाग पर बकाया हो चुका है।

सिर्फ भावलखेड़ा का हो गया था चार करोड़
बीते वर्ष सिर्फ ब्लॉक भावलखेड़ा ब्लॉक में चार करोड़ रुपया ठेकेदार, श्रमिक और कर्मचारियों का विभाग पर बकाया हो गया था। जिसके चलते विभागीय अधिकारी और कर्मचारी काफी समय तक परेशान रहे। बाद में जब पैसा आया तो भी पूरा बकाया साफ नहीं हो पाया। यह बकाया आज भी करोड़ों में खड़ा है। ऐसा लगातार विभाग में ऊपर से पैसा कम आने के चलते हो रहा है।

फैक्ट फाइल-
2 लाख 88 हजार कुल श्रमिक पंजीकृत हैं मनरेगा योजना में।
23 करोड़ 89 लाख रुपये हो चुकी है श्रमिकों की बकायादारी।
निर्माण सामग्री के भी 31 करोड़ रुपये हो चुके हैं बकाया।
आठ दिनों के भीतर श्रमिकों को भुगतान का है नियम।
230 रुपये प्रतिदिन की दर से श्रमिकों को दी जाती मजदूरी।

जिले में 2.88 लाख मनरेगा श्रमिक हैं, जिनका कि शासन स्तर से 23.89 करोड़ का भुगतान लटका हुआ है और निर्माण कार्य का भी 31 करोड़ का बकाया चल रहा। जिसके लिए प्रस्ताव बनाकर भेज दिया गया है। बजट आने पर भुगतान कर दिया जाएगा- बाल गोविंद शुक्ला, उपायुक्त मनरेगा।

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