संपादकीय: मनरेगा मजदूरी बढ़ाना

Amrit Vichar Network
Published By Deepak Mishra
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केंद्र सरकार की ओर से आम बजट 1 फरवरी को पेश किया जाएगा। बजट में की जाने वाली घोषणाओं को लेकर अनुमान लगाए जा रहे हैं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना को लेकर मांग उठाई जा रही है कि दिहाड़ी मजदूरों का न्यूनतम वेतन बढ़ाया जाए और मनरेगा के तहत काम के समय को दोगुना किया जाए। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए मनरेगा के महत्व के बारे में सभी जानते हैं। मनरेगा  के तहत आने वाला कार्यक्रम सरकार द्वारा संचालित दुनिया का सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता कार्यक्रम है। मनरेगा एक मांग आधारित योजना है। इसके तहत  हर परिवार के वयस्क सदस्यों को अकुशल मैनुअल काम करने के लिए स्वयंसेवा कराई जाती है।  मनरेगा के तहत  हर वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को 100 दिनों का रोज़गार दिया जाता है। इसके तहत रोजगार एक कानूनी अधिकार है।  आवेदन करने के 15 दिनों के अंदर काम नहीं मिलने पर बेरोजगारी भत्ता दिया जाता है। मज़दूरी दर, महंगाई सूचकांक के मुताबिक बढ़ाई जाती है। योजना के तहत जल संचयन, सूखा राहत और बाढ़ नियंत्रण के लिए काम कराए जाते हैं। हालांकि किए जाने वाले कार्यों में संशोधन किया जा सकता है। मनरेगा के तहत अलग-अलग राज्यों में मजदूरी की दर अलग-अलग है। सबसे अधिक मजदूरी हरियाणा में जबकि सबसे कम मजदूरी अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में है। निस्संदेह ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी में कमी लाने में  मनरेगा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। काम की तलाश में शहरों को जाने वाले श्रमिकों की संख्या में कमी के भी आंकड़े सामने आए हैं। ग्रामीण उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति भी बढ़ी है। गौरतलब है कि वार्षिक वित्तीय संकट से जूझ रही मनरेगा योजना के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2024-25 में 86 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए थे। इसके बावजूद 4,315 करोड़ मूल्य का वेतन भुगतान लंबित है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2023-24 में इस योजना के केवल छह माह में ही 6,146 करोड़ का घाटा हुआ था। इसी तरह वर्ष 2022-23 में 89,400 करोड़ का संशोधित धनराशि का आवंटन मूल बजट से 33 प्रतिशत अधिक था। केंद्र सरकार को मनरेगा के प्रति अपना रवैया बदलना होगा। सरकार को मनरेगा के लिए एक व्यावहारिक बजट बनाना चाहिए। आगामी बजट में इस योजना से जुड़ी विसंगतियों को दूर करने के लिए गंभीर प्रयास की जरूरत है। योजना के पारदर्शी क्रियान्वयन के लिए प्रशासनिक बाधाओं को दूर करने को प्राथमिकता देनी चाहिए। योजना की मांग के अनुरूप बजट में पर्याप्त आवंटन एक अच्छी शुरुआत होगी।